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अलीगढ़ की महिला तीन साल से खुद को ज़िंदा साबित करने सरकारी दफ्तरों में भटक रही, आधार हुआ ब्लॉक

अलीगढ़ की 58 वर्षीय सरोज देवी एक clerical गलती के कारण पिछले तीन वर्षों से खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं। ग्राम पंचायत ने गलती से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया, जिससे उनका आधार कार्ड ब्लॉक हो गया और सभी सरकारी सुविधाएं रुक गईं।

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तीन साल से जिंदा होने का सबूत लेकर भटक रही हैं दफ्तरों के चक्कर (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group )

तीन साल से जिंदा होने का सबूत लेकर भटक रही हैं दफ्तरों के चक्कर (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group )

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में रहने वाली 58 वर्षीय सरोज देवी की ज़िंदगी पिछले तीन वर्षों से किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं रही। विडंबना यह है कि जीवित होते हुए भी उन्हें सरकारी कागजों में मृत घोषित कर दिया गया है। स्वयं को जिंदा सिद्ध करने के लिए वह लगातार ग्राम पंचायत से लेकर तहसील और ब्लॉक कार्यालयों तक के चक्कर लगा रही हैं, लेकिन अभी तक उनकी त्रासदी का समाधान नहीं हो सका है। एक छोटी सी clerical mistake ने उनका पूरा जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है।

गलती से मिला ‘अपना’ मृत्यु प्रमाण पत्र

मामला अलीगढ़ जिले के खैर ब्लॉक के चमन नागरिया गांव का है। तीन वर्ष पूर्व सरोज देवी अपने पति के मृत्यु प्रमाण पत्र (Death Certificate) के लिए ग्राम पंचायत कार्यालय गई थीं। उन्हें उम्मीद थी कि प्रक्रिया सहज होगी, क्योंकि यह सरकारी स्तर पर एक साधारण दस्तावेज़ है। लेकिन कर्मचारी की एक लापरवाही उनके जीवन की सबसे बड़ी मुसीबत बन गई। सरोज देवी को उनके पति के बजाय उनका स्वयं का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। पहली नज़र में उन्हें लगा कि शायद यह किसी प्रकार की छोटी त्रुटि है, जिसे एक-दो दिनों में ठीक कर दिया जाएगा। परंतु उन्हें यह अंदाज़ा नहीं था कि यही गलती आगे चलकर उनकी पहचान छीन लेगी।

आधार कार्ड हुआ ब्लॉक-बंद हो गईं सारी सुविधाएँ

सरोज देवी बताती हैं कि कुछ महीनों बाद उनका आधार कार्ड अचानक ब्लॉक हो गया। जब उन्होंने कारण पूछा, तब पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें मृत दर्ज कर दिया गया है, जिससे उनकी पहचान निष्क्रिय हो गई है। आधार कार्ड बंद होने से उन्हें मिलने वाली सारी सरकारी सुविधाएँ रुक गईं,चाहे वह राशन कार्ड संबंधी लाभ हों, पेंशन हो, या अन्य कल्याणकारी योजनाएँ। सरोज देवी बताती हैं, “मेरे जीवित होने का सबसे बड़ा प्रमाण मैं खुद हूँ, लेकिन क्या करें! अधिकारियों के रिकॉर्ड में तो मैं मृत हूँ। कोई सुनने को तैयार नहीं। सरकारी दफ्तरों में पहचान से जुड़े दस्तावेज अनिवार्य होने के कारण वह किसी भी प्रकार का आधिकारिक काम नहीं करा पा रही हैं।

तीन साल से दौड़-दफ्तर दर दफ्तर

सरोज देवी लगभग तीन वर्षों से चमर नागरिया ग्राम पंचायत, खैर ब्लॉक कार्यालय, तहसील और जिला स्तर तक की कई सीढ़ियाँ चढ़ चुकी हैं। कहीं उन्हें कहा गया कि सुधार करवाने के लिए आवेदन दे दिया गया है, कहीं बताया गया कि फाइल ऊपर भेज दी गई है, और कहीं अधिकारियों ने यह कहकर टाल दिया कि कल या अगले सप्ताह आ जाइए। भ्रष्टाचार, लापरवाही और उदासीनता का ऐसा चक्र बना कि उनकी समस्या का समाधान आज तक नहीं हो पाया। एक ग्रामीण ने बताया कि सरोज देवी रोज़ सुबह उम्मीद लेकर घर से निकलती हैं, पर शाम तक निराशा हाथ लगती है। गांववाले भी उनकी परेशानी से भलीभांति परिचित हैं, लेकिन समाधान उनके हाथ में नहीं है।

आखिरकार SDM से गुहार

निराशा के बाद भी हिम्मत न हारते हुए सरोज देवी ने बीते शनिवार को खैर उपजिलाधिकारी (SDM) शिशिर कुमार से मिलकर अपनी औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने SDM को बताया कि वह कई महीनों से इस गलती को सही कराने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन ही मिला है, समाधान नहीं।

SDM शिशिर कुमार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि हाँ, सरोज देवी मेरे कार्यालय आई थीं। यह वास्तव में गंभीर मामला है। हमने जांच के लिए एक कमेटी गठित कर दी है, जो पूरी स्थिति की रिपोर्ट जल्द सौंपेगी। उसके बाद आवश्यक सुधार की कार्रवाई की जाएगी।

कागज़ी लापरवाही, पर इंसान की जिंदगी दांव पर

हर सरकारी दफ्तर में छोटी से छोटी गलती भी कई बार बड़े संकट लेकर आती है। मृतक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों में त्रुटि का मतलब सिर्फ एक एंट्री की गलती नहीं होती,यह किसी व्यक्ति की कानूनी पहचान, अधिकार और जीवन पर सीधा प्रभाव डालती है। सरोज देवी के मामले से यह साफ होता है कि ग्रामीण स्तर पर डेटा एंट्री और सत्यापन की प्रक्रिया अभी भी पर्याप्त मजबूत नहीं है। निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी कई बार दस्तावेज़ों को पूरा पढ़े बिना ही प्रक्रिया पूरी कर देते हैं, जिससे इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं।

कौन उठाएगा जिम्मेदारी

  • अब प्रश्न यह है कि इस लापरवाही की जिम्मेदारी किसकी है। 
  • क्या ग्राम पंचायत सचिव।
  • डेटा एंट्री ऑपरेटर।

या वह पूरी तंत्र जो एक वृद्ध महिला को स्वयं को जीवित साबित करने के लिए तीन साल तक चक्कर कटवा रहा है. क्या ऐसी गलती के लिए किसी अधिकारी पर कार्रवाई होगी? क्या सरोज देवी को अब तक हुए मानसिक तनाव और आर्थिक नुकसान के लिए कोई मुआवजा मिलेगा? यह प्रश्न भी उठना स्वाभाविक है।

देश में इससे पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले

यह कोई अकेला मामला नहीं है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और देश के अन्य राज्यों से भी कई बार ऐसे किस्से सामने आए हैं जहाँ लोगों को सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित कर दिया गया। कई लोगों ने अदालतों का दरवाजा खटखटाया, कुछ मामलों में वर्षों तक लड़ाई चली। यह घटनाएँ यह बताती हैं कि डिजिटल इंडिया की मुहिम के बीच अगर डेटा एंट्री में गलतियाँ हों, तो आम नागरिक को कितनी बड़ी परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है।

सरोज देवी को अब भी है उम्मीद

लंबे संघर्ष के बावजूद सरोज देवी अब भी उम्मीद की किरण लिए बैठी हैं। वह चाहती हैं कि जल्द से जल्द उनकी पहचान बहाल हो ताकि वे फिर से सामान्य जीवन जी सकें और सरकारी लाभ प्राप्त कर सकें,जिन पर उनका पूर्ण अधिकार है। गांव के लोग भी उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन अब सक्रिय होकर मामले को गंभीरता से लेगा और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करेगा।