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अब घर, क्लीनिक व निजी अस्पतालों में मरीजों का उपचार नहीं कर सकेंगे

राज्य सरकार ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों और उनसे जुड़े अस्पतालों की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए बड़ा कदम उठाया है।

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representative picture (patrika)

राज्य सरकार ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों और उनसे जुड़े अस्पतालों की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नए दिशा-निर्देश जारी कर स्पष्ट किया है कि अब कॉलेजों में पदस्थ प्रधानाचार्य, नियंत्रक और अधीक्षक सहित सभी प्रशासनिक पदों पर कार्यरत चिकित्सक अपने घर, निजी क्लीनिक या निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे।

विभाग ने एम्स की तर्ज पर यह व्यवस्था लागू की है। ऐसे चिकित्सकों को प्रशासनिक पदों पर पूर्णकालिक रूप से कार्य करना अनिवार्य होगा। दरअसल, प्रशासनिक पदों पर बैठे कई चिकित्सक निजी प्रैक्टिस भी कर रहे हैं। वे कॉलेज और अस्पतालों को पूरा समय नहीं दे पाते। अस्पताल रेजिडेंट चिकित्सक व अन्य स्टाफ के भरोसे चल रहे हैं। अब सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एम्स की तर्ज पर चिकित्सक पूर्णकालिक सेवाएं देंगे।

गाइड-लाइन में ये निर्देश भी

प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक के पद के लिए चयन मुय सचिव की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति करेगी। समिति में अतिरिक्त मुय सचिव (कार्मिक विभाग), अतिरिक्त मुय सचिव या प्रमुख शासन सचिव (चिकित्सा शिक्षा विभाग) और संबंधित विश्वविद्यालय के कुलपति सदस्य होंगे।

यह समिति पात्र अभ्यर्थियों के साक्षात्कार के बाद प्रत्येक महाविद्यालय के लिए तीन नामों का पैनल तैयार करेगी। पैनल अनुमोदित होने के बाद संबंधित चिकित्सक को नियुक्त किया जाएगा।

नियुक्त व्यक्ति को प्रारंभिक रूप से तीन वर्ष के लिए पद पर रखा जाएगा, जिसे आवश्यकता अनुसार दो वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकेगा। प्रशासनिक या लोकहित में पदस्थ व्यक्ति का स्थानांतरण किसी अन्य महाविद्यालय में किया जा सकेगा।

नए दिशा-निर्देशों के तहत प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक अब विभागाध्यक्ष या यूनिट हेड के पद पर एक साथ नहीं रह सकेंगे। वे अपने शैक्षणिक कार्यों (वरिष्ठ आचार्य/आचार्य) पर एक-चौथाई से अधिक समय व्यतीत नहीं करेंगे। निजी प्रैक्टिस पूरी तरह प्रतिबंधित होगी और चयनित अभ्यर्थी को इस संबंध में घोषणा पत्र देना होगा। इसके अलावा चयनित प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक को पदभार ग्रहण करने से पहले एक माह तक पीएमसी डेजिगनेट के रूप में कार्य करना होगा।

इस अवधि में सभी प्रशासनिक कार्य उनके माध्यम से वर्तमान प्रधानाचार्य या नियंत्रक को प्रस्तुत किए जाएंगे। इसके बाद दो माह तक नया पदाधिकारी पुराने पदाधिकारी से आवश्यक परामर्श ले सकेगा। वहीं, गंभीर आरोप या प्रशासनिक अक्षमता की स्थिति में राज्य सरकार द्वारा जिला कलक्टर, संभागीय आयुक्त या अन्य सक्षम अधिकारी से जांच कराकर नियुक्ति को निरस्त किया जा सकता है।

नई गाइडलाइन के अनुसार, राजकीय या राजमेस चिकित्सा महाविद्यालयों में कार्यरत वरिष्ठ आचार्य 57 वर्ष की आयु तक प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक पद के लिए आवेदन कर सकेंगे। आवेदक के पास अधीक्षक या अतिरिक्त प्रधानाचार्य के रूप में कम से कम तीन वर्ष और विभागाध्यक्ष के रूप में दो वर्ष का अनुभव आवश्यक होगा। वहीं, उपयुक्त उमीदवार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में अनुभव की शर्तों में शिथिलता दी जा सकेगी।