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विमान निर्माता कंपनी एचएएल करेगी उपग्रहों का प्रक्षेपण

इसरो, इन-स्पेस और एन-सिल के साथ एसएसएलवी तकनीकी हस्तांतरण के लिए करार स्वतंत्र अंतरिक्ष इकाई स्थापित करने की दिशा में एचएएल अंतरिक्ष सुधारों के तहत इसरो ने उठाया बड़ा कदम

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सार्वजनिक क्षेत्र की विमान निर्माता कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) अब उपग्रहों का प्रक्षेपण भी करेगी। वैश्विक अंतरिक्ष कारोबार की जरूरतों के हिसाब से विकसित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नए रॉकेट एसएसएलवी की तकनीक अब एचएएल को सौंप दी जाएगी। एचएएल इस रॉकेट का बड़े पैमाने पर उत्पादन और अधिकतम 500 किलोग्राम भार वाले उपग्रहों के प्रक्षेपण की जिम्मेदारी उठाएगा। इसरो ने इसे अंतरिक्ष सुधारों के तहत एक बड़ा कदम बताया है, जो भारतीय अंतरिक्ष इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रक्षेपण जरूरतों को पूरी करेगा।

एचएएल की ओर से कहा गया कि उसने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस), न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एन-सिल) और इसरो के साथ करार किया है। इस करार के तहत एचएएल अगले दो वर्षों के दौरान एसएसएलवी तकनीक को पूरी तरह अपने अधीन कर लेगा। उसके बाद 10 वर्षों का उत्पादन चरण शुरू होगा। समझौते के तहत एचएएल को नन-एक्सक्लूसिव और गैर-हस्तांतरणीय लाइसेंस मिलेगा। इसमें एसएसएलवी के व्यापक डिजाइन, निर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण, इंटीग्रेशन, प्रक्षेपण, संचालन और प्रक्षेपण के पश्चात उड़ान संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण एवं उसके दस्तावेजीकरण का पूरा अधिकार मिलेगा। इसमें प्रशिक्षण और सहायता भी शामिल है। एचएएल को भारत के साथ-साथ वैश्विक मांगों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर एसएसएलवी का उत्पादन करना होगा।

हर साल 20-25 मिशन लांच करने की उम्मीद

इसरो की योजना हर साल 20 से 25 एसएसएलवी मिशन लांच करने की है। शुरू में यह रॉकेट श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल से लांच किया जाएगा। देश का दूसरा लांच पैड तमिलनाडु स्थित तूतीकोरिन जिले के कुलशेखरपट्टिनम में दिसम्बर 2026 तक तैयार हो जाएगा। उसके बाद इस प्रक्षेेपण केंद्र से हर साल 20-25 मिशन लांच करने की योजना है। तीन चरणों वाले इस रॉकेट की खासियत यह है कि इसे तैयार करने के लिए भारी-भरकम वैज्ञानिकों, इंजीनियरों की टीम आवश्यक नहीं है। पीएसएलवी को तैयार करने में जहां 30 से 45 दिन और 600 वैज्ञानिकों-इंजीनियरों टीम लगती है, वहीं एसएसएलवी को 6 इंजीनियरों की टीम केवल एक सप्ताह में तैयार कर सकती है। इसे अत्यंत कम बुनियादी सुविधाओं के साथ प्रक्षेपित किया जा सकता है और यह काफी किफायती भी है। यह रॉकेट अधिकतम 500 किलोग्राम वजनी उपग्रहों के प्रक्षेपण में सक्षम है।

देश और वैश्विक जरूरतों को पूरी करेगा एचएएल: डीके सुनील

एचएएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. डीके सुनील ने कहा कि एचएएल एसएसएलवी तकनीक को पूरी तरह आत्मसात करेगी। प्रक्षेपण सेवाओं में गुणवत्ता और विश्वसनीयता के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करेगी और देश-विदेश की प्रक्षेपण जरूरतों को पूरा करने के लिए इन-स्पेस, इसरो और एन-सिल के साथ मिलकर काम करेगी। संचार, भू-अवलोकन, नौवहन आदि क्षेत्रों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग काफी बढ़ी है। इसे पूरा करने में एसएसएलवी के रणनीतिक महत्व से एचएएल अवगत है। इस तकनीकी हस्तांतरण के जरिए एचएएल के पास अब प्रक्षेपण यान के निर्माण, स्वामित्व और संचालन की स्वायत्तता होगी। यह कदम एक समर्पित अंतरिक्ष इकाई स्थापित करने की उसकी दीर्घकालिक रणनीति के अनुरूप है। गौरतलब है कि एचएएल और एलएंडटी कंसोर्टियम को 5 पीएसएलवी के निर्माण की भी जिम्मेदारी दी गई है। एचएएल निर्मित निजी क्षेत्र का पहला पीएसएलवी (एन-1) इसी साल लांच होने की उम्मीद है। इसके अलावा भविष्य में जीएसएलवी प्रक्षेपण की जिम्मेदारी भी एचएएल को मिलने की उम्मीद है।