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Mangarh Dham Diwas Today : ‘भगत परम्परा’ ब्रिटिश शासन को लगी थी नागवार, 1500 आदिवासियों को गोलियों से भूना, जानिए क्या था मामला?

Mangarh Dham Diwas Today : राजस्थान के बांसवाड़ा में मानगढ़ धाम दिवस आज मनाया जा रहा है। आज भी आदिवासियों को भगत परम्परा बुराइयों से बचा रही है। हाड़ौती से लेकर मारवाड़-मेवाड़ व मालवा तक फैली भगत परम्परा, वागड़ में आज भी मजबूत है। जानें क्या है भगत परम्परा?

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Mangarh Dham Diwas Today Bhagat tradition was not acceptable to British rule 1500 tribals were shot dead know what was matter

मानगढ़ धाम स्मारक और सम्प सभा व भगत परम्परा के प्रणेता गोविंद गुरु। फोटो पत्रिका

Mangarh Dham Diwas Today : बांसवाड़ा में मानगढ़ धाम पर 17 नवंबर 1913 को ‘सम्प सभा’ में सुधारों के लिए जुटे करीब चार हजार भीलों में से डेढ़ हजार को ब्रिटिश सरकार ने गोलियों से मौत के घाट उतार दिया था। मांस-मदिरा जैसी राजस्व आधारित कुरीतियों को छोड़ने की जनएकजुटता शासन को नागवार लगी।

गोविन्द गुरु की प्रेरित ‘भगत परम्परा’ तब से आज तक लाखों जनजातीय परिवारों को संयम, सामाजिक सुधार और नशामुक्ति की राह दिखा रही है। वागड़ क्षेत्र, विशेषकर बांसवाड़ा के गांवों में इन दिनों लगातार बैठकें हो रही हैं, जिनमें नशाखोरी, दहेज, खर्चीली शादियों, हिंसा और अन्य बुराइयों पर सामूहिक फैसले लिए जा रहे हैं। इनका प्रभाव भगत परम्परा से जुड़ा माना जा रहा है, हालांकि कुछ इन्हें राजनीतिक सक्रियता से भी जोड़ते हैं।

कुशलगढ़ कॉलेज के इतिहास व्याख्याता कन्हैयालाल खांट बताते हैं कि चुनाव पूर्व ऐसी बैठकों की परंपरा रही है, लेकिन सुखद यह है कि इनमें सुधार पर सहमति बन रही है।

झोपड़ों पर सफेद, गेरूए और हरे झंडों के संकेत

आदिवासी घरों पर लगे सफेद झंडे मांस-मदिरा त्याग का प्रतीक हैं। गेरूए झंडे संयम, त्याग और नैतिक जीवन के संकल्प को दर्शाते हैं। हरे झंडे प्रकृति-प्रेम व खेती से प्रगति का संकेत देते हैं। वाद-विवाद, चोरी-डकैती-हिंसा से बचना, सद्मार्ग पर चलना, अतिभौतिकतावाद का त्याग, खर्चीली शादियों व दहेज प्रथा पर नियंत्रण व गलत को गलत कहने का साहस बैठकों में मंथन का विषय हैं।

मानगढ़ धाम : भीलों का जलियांवाला बाग

17 नवंबर 1913 को अन्याय और दमन के खिलाफ भील समुदाय मानगढ़ पहाड़ी पर इकट्ठा हुआ। ब्रिटिश शासन ने इसे विद्रोह करार देकर मेजर सटन की अगुवाई में निहत्थे भीलों पर गोलियां चलवा दीं। करीब 1500 भील मारे गए। यह नरसंहार ‘भीलों का जलियांवाला बाग’ कहा जाता है।

कौन थे गोविन्द गुरु

भील धर्म सुधार आंदोलन, सम्प सभा और भगत परम्परा के प्रणेता, समाज सुधारक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और स्वतंत्रता सेनानी। शिक्षा, नशा मुक्ति, सत्य, समानता व आत्मसम्मान पर आधारित जीवन का अभियान चलाया।

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