
CG News: डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया में दुर्ग पुलिस को ऐसी फाइलें मिलीं, जिनकी स्याही अब भी उर्दू में सांस ले रहीं थी। ये वे हिस्ट्रीशीट थीं जिनमें दर्ज अपराधी दशकों पहले मर चुके थे, मगर सरकारी रिकॉर्ड में अब तक ‘फरार’ चले आ रहे थे। जब भी इन हिस्ट्रीशीट को खोला गया, उर्दू ने महकमे को उलझा कर रख दिया।
आखिरकार अब जाकर एसएसपी विजय अग्रवाल के निर्देश पर पुलिस ने इन फाइलों की जांच की। उर्दू जानकारों की मदद ली गई। तब जाकर ऐसे मामलों को नस्तीबद्ध (बंद) करने की कार्रवाई शुरू की।
सबसे पुरानी फाइल राजबहादुर पिता जालम सिंह (85) की निकली। वह मूल रूप से अमृतसर (पंजाब) का निवासी था। 1950 के दशक में पंजाब पुलिस ने उसके खिलाफ हिस्ट्रीशीट उर्दू में दर्ज की थी। बाद में वह दुर्ग के सुपेला क्षेत्र में आकर रहने लगा और यहां भी अपराध में लिप्त हो गया। पुलिस की नजर में चढ़ते ही वह फरार हो गया।
12 जुलाई 1961 को सुपेला पुलिस ने पंजाब पुलिस को जानकारी मांगी, जिसके जवाब में उन्हें उर्दू में लिखी फाइल भेजी गईं। इसके बाद पुलिस ने जब भी यह फाइल खोली, मियाद बढ़ाते गए। किसी ने भी मामले को समझने की जहमत नहीं उठाई। आखिरकार 1970 में उसे फरार घोषित कर दिया। अब जब पुलिस ने ऐसे मामलों को गभीरता से लिया तो उर्दू के जानकारों की मदद ली गई। काफी मशक्कत की। तब जाकर फाइलों को औपचारिक रूप से बंद कर दिया है।
आज की कंप्यूटर युग की पुलिस शायद यह सोच भी नहीं सकती कि कभी गुनाह को उर्दू भाषा में दर्ज किया जाता था। आजादी के शुरुआती दौर तक पुलिस के अभिलेखों में उर्दू ही आधिकारिक लिपि हुआ करती थी। उसी दौर के कुछ रिकॉर्ड अब दुर्ग पुलिस के रिकॉर्ड से निकले हैं। इनमें अपराधियों की फरारी, वारदात और बयान सब उर्दू में दर्ज थे।
एक हिस्ट्रीशीटर 1970 से फरार दर्ज था। 1951 में उसकी हिस्ट्रीशीट पंजाब प्रांत में उर्दू में खोली गई थी। उर्दू के कारण फाइलों को देखने में किसी ने ज्यादा रुचि नहीं ली। ऐसे और मामले थे। अब जाकर मामलों का नस्तीबद्ध किया गया है।
विजय अग्रवाल, एसएसपी
Published on:
08 Nov 2025 11:26 am
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