
(Photo Source- Patrika)
MP News: नए और पुराने शहर के 200 से ज्यादा कवर्ड कैंपस में सपनों का घर खरीदने वाले लाखों लोग जल्द ही कॉलोनी हैंडओवर की समस्या से मुक्त हो सकते हैं। प्राइवेट डेवलपर और बगैर चुनाव के बने रहवासी संगठनों के बीच बीते सालों से चला आ रहा विवाद नगर निगम की मध्यस्थता के बाद समाप्त होगा। इन कॉलोनियों में इन्वेस्टमेंट करने वाले लोग वर्तमान में बिल्डर से कॉर्पस फंड मांग रहे हैं जबकि बिल्डर्स मेंटेनेंस और बकाया राशियों के चलते फंड रिलीज ही नहीं कर रहे थे।
साथ ही फंड की कमी के चलते 200 से ज्यादा कॉलोनियों में सिक्योरिटी गार्ड, सीसीटीवी, लिफ्ट, पावर बैकअप जैसी जरूरी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही थीं। क्रेडाई ने इस समस्या से निपटने के लिए निगमायुक्त संस्कृति जैन से मिलकर विस्तृत प्लान पर चर्चा की। नगर निगम अब इन सुझाव के आधार पर हेंडओवर प्रक्रिया को सरल बनाने प्रयासरत है। कॉरपस फंड का विवाद खत्म करने के लिए नगर निगम जोनल ऑफिसर की अध्यक्षता में रहवासी संगठन एवं डेवलपर के संयुक्त बैंक खाते खोलने का भी प्रावधान किया जाएगा, ताकि खर्च पर कोई आरोप नहीं लग सकें।
-मकान देखने दिखाने से शुरू होने वाले सौदे की बातचीत आकर्षक लोक लुभावन वायदे और रजिस्ट्री पर समाप्त होती है।
-शहर के ज्यादातर कैंपस में प्राइवेट बिल्डर 2 साल की समय अवधि तक नि:शुल्क सुविधाएं देते हैं। इसमें कॉरिडोर्स की साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट, लिट, गार्डन, सिक्योरिटी गार्ड शामिल हैं।
-ये अवधि बीतने के बाद इन सुविधाओं के बदले हर माह 1 से 2000 तक मंथली मेंटेनेंस राशि की डिमांड शुरू होती है।
-अधिकांश रहवासियों द्वारा मेंटेनेंस राशि जमा करने के बावजूद दी जाने वाली सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जातीं और आखिर में रहवासी संगठन चुनाव कराए जाने की शर्त रख दी जाती है।
-चुनाव के बाद निगम हैंडओवर की प्रक्रिया बिल्डर द्वारा कॉरपस फंड की राशि जोनल अधिकारी और रहवासी संगठन के संयुक्त खाते में जमा नहीं कराने के चलते शुरू ही नहीं हो पाती।
-रहवासी द्वारा सवाल जवाब किए जाने पर बिल्डर द्वारा बकाया मेंटेनेंस राशि पहले जमा करने की शर्त रखते हैं। निगम, कलेक्ट्रेट और थाने के चक्कर काटने के बाद मामला कोर्ट पहुंच जाता है।
-क्रेडाई मेंबर्स ने कॉलोनी विकास एवं हेंडओवर को लेकर अनेक सुझाव दिए हैं। विवादों को समाप्त कर हेंडओवर को आसान बनाने नए सिरे से प्लानिंग कर रहे हैं। - संस्कृति जैन, निगमायुक्त
बिल्डर की लापरवाही, कॉरपस फंड विवाद और निगम हैंडओवर पूरी नहीं होने की प्रक्रिया में नए शहर के सर्वाधिक कवर्ड कैंपस उलझे हैं। कटारा हिल्स, बागसेवनिया, गुलमोहर, बागमुगलिया, जाटखेड़ी, बावड़िया, कोलार, त्रिलंगा, अवधपुरी, पिपलानी, पटेल नगर जैसे इलाकों में करीब 200 से ज्यादा कैंपस हैं।
नगरीय आवास एवं पर्यावरण विभाग ने मप्र नपा अधिनियम 1998 (कॉलोनाइजर का रजिस्ट्रीकरण एवं शर्त) और मप्र ग्राम पंचायत नियम 2014 (कालोनियों का विकास) में प्राइवेट डेवलपर के दायित्व साफ किए हैं। स्पष्ट किया कि प्राइवेट डेवलपर अपने प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा निगम के पास विकास कार्य पूरा होने तक बंधक रखेंगे।
प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद निगम ग्राहक और विक्रेता के बीच हुए सभी वादों के पूरे होने की पुष्टि करने के बाद इनको मुक्त करेगा। प्राइवेट डेवलपर समय अवधि के बाद खरीदारों से ली गई सिक्योरिटी डिपाजिट की राशि नगर निगम एवं रहवासी संगठन के संयुक्त खाते में जमा करने के उपरांत ही कैंपस से अपना आधिपत्य छोड़ेंगे। बकाया मेंटेनेंस की राशि कॉर्पस फंड में समायोजित नहीं की जा सकेगी।
Published on:
01 Dec 2025 11:19 am
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