
फोटो सोर्स: पत्रिका
MP News:एमपी के भोपाल शहर में 25 फीसदी कामकाजी युवाओं को भरी जवानी में बुढ़ापे के रोग ने घेर लिया है। उन्हें कमर दर्द, गर्दन में दर्द, शरीर में अकड़न और इसकी वजह से अन्य शारीरिक व्याधियों ने घेर रखा है। जीएमसी और एम्स के न्यूरोलॉजी और आर्थोपोडिक डिपार्टमेंट में इस तरह की बीमारियों के मरीजों में तेजी से इजाफा हुआ है। इनमें 25 प्रतिशत वे युवा हैं जिनकी उम्र 20 से 35 वर्ष के बीच है।
चिकित्सकों का कहना है कि इतनी कम उम्र में स्लिप डिस्क जैसी बीमारी की वजह खराब पोश्चर है। बैठे-बैठे घंटों मोबाइल पर रील देखना, गेम खेलना, कंप्यूटर पर झुककर काम करना और व्यायाम से दूरी इसकी बड़ी वजह है।
शहर के प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आइडी चौरसिया ने बताया कि लगातार कमर दर्द आगे चलकर गंभीर स्पाइन प्रॉब्लम में बदल सकती है। रीढ़ में विकृति, डिस्क के जल्दी घिसने, समय से पहले गठिया, दर्द, सांस या नसों की समस्याओं का कारण बन सकती है। डिस्क से जुड़ा पैर या हाथ का दर्द (जैसे सायटिका या सर्वाइकल रेडिकुलोपैथी) पेचीदा होने पर बीमारी क्रॉनिक बन जाती है।
शहर में स्लिप डिस्के के मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर स्पाइन केयर से जुड़े क्लिीनिक की संख्या तेजी से बढ़ी है। यहां बिना चीर-फाड़ वाली सर्जरी, रोबोटिक्स, होलिस्टिक थेरैपी,रीजनरेटिव थेरेपी,पीआरपी थेरैपी और आयुर्वेद और पंचकर्म जैसी तकनीक मरीजों को दर्द से राहत दिलाने का दावा किया जाता है।
चिकित्सकों के अनुसार स्लिप डिस्क में रीढ़ की हड्डियों के बीच का नरम हिस्सा उभर आता है। इससे नसों पर दबाव पड़ता है। इसकी वजह से लोअर बैक पेन या कमर दर्द, गर्दन में दर्द होता है। रीढ़ की हड्डी शरीर का स्तंभ है। यह नसों का हाइवे है। दिमाग और शरीर के बाकी हिस्सों के बीच संदेश पहुंचाने का यह मुख्य रास्ता है। इसलिए यहां का दर्द चलने-फिरने, नसों के खिंचाव और रोजमर्रा के कामों पर दिखता है।
Updated on:
17 Nov 2025 04:34 pm
Published on:
17 Nov 2025 04:33 pm
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