
संभाग के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल के डी-वार्ड आइसीयू में मंगलवार को आयोजित मॉक ड्रिल ने अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था की अनेक कमजोरियां सामने ला दीं। सुबह 11 बजे एसी में धुआं उठने और आग लगने की काल्पनिक सूचना उप अधीक्षक डॉ. गौरीशंकर जोशी को दी गई। उन्होंने सुरक्षा कर्मियों को लेकर मौके पर पहुंचकर तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना दी। फायर ब्रिगेड तो दस मिनट में पहुंच गई, लेकिन अस्पताल परिसर में लटकते खुले तारों की वजह से वाहन आग वाले स्थान तक नहीं पहुंच सका। आखिरकार 500 मीटर लंबा पाइप बिछाकर आग पर नियंत्रण करने का अभ्यास किया गया। इस दौरान जयपुर से आई टीम ने भी इन व्यवस्थागत कमियों को नोट किया।
मरीजों की शिफ्टिंग में दिखी तेजी
आग की सूचना मिलते ही सुरक्षा कर्मियों ने डी-वार्ड के पांच मरीजों को तुरंत दूसरे आइसीयू में शिफ्ट किया।मरीजों को कैनुला सहित सुरक्षित स्थानांतरित किया गया। नर्सिंग स्टाफ दवाइयों और उपकरणों की व्यवस्था में तुरंत सक्रिय हुआ। इस प्रक्रिया ने मॉक ड्रिल के दौरान स्टाफ की त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता को दर्शाया। हालांकि अस्पताल की भौतिक सुरक्षा संरचना पर सवाल भी उठे।
ट्रॉमा सेंटर: समन्वय की कमी उजागर
मॉक ड्रिल के दूसरे चरण में टीम ट्रॉमा सेंटर पहुंची, लेकिन यहां गंभीर समन्वयहीनता देखी गई। चिकित्सकों को सेंटर भेजा गया, लेकिन किसे रिपोर्ट करनी है, क्या करना है, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई। चिकित्सक बाहर बैठे रहे, जबकि सेंटर प्रभारी डॉ. एल.के. कपिल अंदर उनका इंतजार करते रहे। यह दृश्य विभागीय संवाद और प्रोटोकॉल के कमजोर क्रियान्वयन को दर्शाता है। ऐसा तब है, जब हाल ही जयपुर में ट्रॉमा सेंटर हादसा सामने आ चुका है। बहरहाल, उप अधीक्षक डॉ. जोशी ने कहा कि मॉक ड्रिल का उद्देश्य इसी तरह की कमियों को पहचानना है। ड्रिल के दौरान जो खामियां सामने आईं, उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
Published on:
25 Nov 2025 11:47 pm
बड़ी खबरें
View Allबीकानेर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
