
पत्नी को मिले पैसे पर कोई टैक्स नहीं लगता है। (PC: AI)
इनकम टैक्स बचाने के लिए लोग कई तरह के तरीके आजमाते हैं। इनमें से एक तरीका यह है कि लोग अपनी पत्नी के खाते में पैसे ट्रांसफर कर देते हैं। क्या ऐसा करने से वाकई उनका टैक्स बचता है या फिर किसी नए टैक्स के जंजाल में फंसने का खतरा पैदा हो जाता है। इनकम टैक्स कानून में इसकी इजाजत दी गई है या नहीं। अगर पति अपनी पत्नी को कोई एसेट ट्रांसफर करना चाहता है, तो उसका सही तरीका क्या है? साथ ही, ये भी समझेंगे कि पति और पत्नी मिलकर कैसे टैक्स में बचत की प्लानिंग कर सकते हैं।
अगर पति अपनी पत्नी के खाते में पैसे ट्रांसफर करता है, तो इनकम टैक्स कानून में इसकी इजाजत है। IT एक्ट के तहत पत्नी को मिले पैसे पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता है। यानी पति जितना मर्जी चाहे पत्नी के खाते में पैसे ट्रांसफर कर सकता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इस पर किसी तरह से टैक्स नहीं बनेगा।
इनकम टैक्स का कानून कहता है कि अगर एक दंपत्ति कोई एसेट अपने जीवनसाथी को ट्रांसफर करता है और उस एसेट से कोई इनकम आ रही, है तो ये इनकम एसेट ट्रांसफर करने वाले की आय के साथ क्लब्ड (Clubbed) कर दी जाएगी यानी जोड़ दी जाएगी। इनकम टैक्स कानून में इसे क्लबिंग प्रॉविजन कहा जाता है। जिस पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। इस केस में अगर पति अपनी पत्नी को एसेट ट्रांसफर करता है और उससे कोई आय होती है, तो पति को उस पर टैक्स देना होगा, क्योंकि ये आय पति की मानी जाएगी न कि पत्नी की।
अपनी पत्नी के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने के बाद अगर पति अपनी पत्नी के नाम पर फिक्स्ड डिपॉजिट करता है या फिर शेयर्स में निवेश करता है तो क्या पत्नी को इस पर मिलने वाले रिटर्न पर टैक्स देना होगा। तो इसका जवाब है -नहीं। ऐसे केस में जो भी रिटर्न या आय होगी, वो पति की आय के साथ क्लब्ड कर दी जाएगी और उसकी ही टैक्स देनदारी बनेगी। अगर इस निवेश से किसी तरह का नुकसान होता है, तो ये भी पति की आय के साथ ही एडजस्ट किया जाएगा।
अगर पति अपनी पत्नी को कोई प्रॉपर्टी टांसफर करता है, तो इस केस में तुरंत कोई टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन इस प्रॉपर्टी से कोई रेंटल इनकम होती है, तो क्लबिंग प्रॉविजन लागू होगा। रेंटल इनकम को पति की आय में जोड़ा जाएगा और उस पर टैक्स देनदारी पति की बनेगी।
अगर पति अपने पैसों से कोई प्रॉपर्टी खरीदता है, लेकिन रजिस्ट्रेशन पत्नी के नाम पर करता है, भविष्य में जब उस प्रॉपर्टी को बेचा जाएगा तो उस पर जो भी कैपिटल गेंस होगा, क्लबिंग प्रावधानों के मुताबिक इसे पति की आय में जोड़ दिया जाएगा, उस पर टैक्स की देनदारी पति की होगी।
अगर पति अपनी पत्नी जो कि हाउसवाइफ है, उनको घर के खर्चों के लिए नियमित रूप से पैसे ट्रांसफर करता है, तो इस पर कोई टैक्स नहीं लगता है। मगर, उस पैसे को पत्नी के खाते में रखने से जो भी ब्याज बनेगा, उस पर टैक्स की देनदारी पति की होगी।
अभी तक आपने ये समझ लिया कि अगर पति अपनी पत्नी के नाम पर असेट ट्रांसफर करके या पैसे ट्रांसफर करके टैक्स बचाने की कोशिश करता है, तो उसके लिए क्या प्रावधान हैं। कब टैक्स लगेगा और कब नहीं। ऐसे में क्या ऐसा कोई तरीका नहीं, जिससे आपकी पत्नी आपकी टैक्स सेविंग्स में मदद कर सकें। बिल्कुल है, नीचे समझिए -
सेक्शन 112A के तहत, इक्विटी शेयरों या इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स से होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) पर प्रति वर्ष 1.25 लाख रुपये तक की टैक्स छूट को क्लेम किया जा सकता है। ये छूट दोनों पति-पत्नी द्वारा शेयरों या स्कीम्स में ज्वाइंट निवेश करके हासिल की जा सकती है। अगर गेंस तय सीमा 1.25 लाख रुपये से ज्यादा है, तो उस पर 12.5% के हिसाब से टैक्स लगेगा। साथ में सरचार्ज और 4% सेस भी।
जब पति-पत्नी प्रॉपर्टी के जॉइंट ओनर हों और होम लोन के को-बॉरोअर भी हों, तो वे दोनों अलग-अलग डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं। इससे दोनों को दोगुनी टैक्स बचत मिलती है। जैसे 80C के तहत प्रिंसिपल अमाउंट पर दोनों ही अलग-अलग 1.5 लाख रुपये क्लेम कर सकते हैं। 24(b) के तहत 2 लाख के ब्याज पर अलग अलग क्लेम ले सकते हैं।
हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम के लिए सेक्शन 80D के तहत कोई इंडिविजुअल 25,000 रुपये तक का क्लेम ले सकता है। अगर हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम इससे ज्यादा का है, तो पति और पत्नी दोनों ही इस तरह से पॉलिसी खरीद सकते हैं कि इस लिमिट का पूरा इस्तेमाल करते हुए ज्यादा से ज्यादा टैक्स बचा सकते हैं।
मोटे-मोटे यही कुछ तरीके हैं, जहां से पति और पत्नी मिलकर टैक्स की बचत कर सकते हैं। मगर ये कहना कि पति-पत्नी के बीच पैसे के लेन-देन से टैक्स की बचत हो जाएगी, ऐसा नहीं होता है। टैक्स बचाने के लिए एक उचित निवेश योजना की जरूरत होती है।
Published on:
20 Nov 2025 03:07 pm
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