
रोज पोर्टफोलियो चेक करने के भी नुकसान हैं। (PC: Pixabay)
क्या आप भी अपना इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो रोज चेक करते हैं? यह आपके रिटर्न में गिरावट का कारण बन सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है। भला पोर्टफोलियो चेक करने का और रिटर्न का क्या लेना-देना है। लेकिन ऐसा है। ऐसा ह्यूमन बिहेवियर के चलते होता है। इस आर्टिकल में हम आपको वे 5 बातें बता रहे हैं, जो आपके रोज पोर्टफोलियो चेक करने से निवेश के रिटर्न को कम कर सकती हैं।
कई बार ऐसा होता है कि न्यूज, सेंटीमेंट या ट्रेडर्स के मूड के चलते शेयर मार्केट में अच्छी-खासी तेजी आ रही होती है, लेकिन आपका पोर्टफोलियो नहीं बढ़ता। आपके पास जिन सेक्टर्स के शेयर हैं, वहां तेजी नहीं आने या आपके पोर्टफोलियो के शेयरों में खरीदारी नहीं आने से ऐसा हो सकता है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आपके पोर्टफोलियो के शेयर बेकार हैं। रोज पोर्टफोलियो चेक करने वाले लोग ऐसे में FOMO का शिकार हो जाते हैं और जल्दबाजी में पोर्टफोलियो में बदलाव कर देते हैं, जिससे उनका लॉन्ग टर्म के लिए किया गया इन्वेस्टमेंट प्रभावित हो जाता है।
जब निवेशक हर रोज अपना पोर्टफोलियो चेक करते हैं, तो वे अस्थायी उतार-चढ़ाव को भी महत्वपूर्ण मानना शुरू कर देते हैं। रोज की तेजी-मंदी को वे गलती से मीनिंगफुल इन्फॉर्मेशन मान लेते हैं।
कम अवधि में कीमतें बिना किसी फंडामेंटल चेंज के काफी ऊपर-नीचे हो सकती हैं। लेकिन महीनों या वर्षों में कीमत का यह अंतर काफी कम होता जाता है।
निवेशक धैर्य के अभाव में लॉन्ग टर्म वेल्थ क्रिएशन का मौका खो देते हैं। बार-बार पोर्टफोलियो देखने से गिरावट के समय कुछ करने की इच्छा बढ़ जाती है।
अगर कोई फंड आज 2% गिर गया है, तो लंबे समय के निवेशक के लिए इसका कोई खास मतलब नहीं होता। रोज के उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया देना अधिकांश समय आपके लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल गोल्स के खिलाफ होता है।
Updated on:
19 Nov 2025 05:34 pm
Published on:
19 Nov 2025 05:32 pm
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