
नौकरी जाने पर अब री-स्किलिंग फंड भी मिलेगा। (PC: Pexels)
नए श्रम कोड (New Labour Codes) 21 नवंबर 2025 से लागू हो गए हैं. कर्मचारियों की सैलरी, ग्रेच्युटी, PF को लेकर काफी कुछ छप चुका है और कहा जा चुका है, लेकिन एक बात का जिक्र बहुत कम मिलता है कि अगर किसी की नौकरी चली जाए तो क्या होगा? क्योंकि यही वो समय होता है, जब किसी को सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. नए लेबर कोड में एक ऐसा प्रावधान है, जो नौकरी जाने पर आपके दर्द को थोड़ा कम कर सकता है। यहां हम इसी के बारे में बात करेंगे।
नए लेबर कोड के मुताबिक, अगर किसी कर्मचारी को छंटनी (Retrenchment) के तहत नौकरी से निकाला जाता है, तो उसे अब दो चीज़ें मिलेंगी-
1- छंटनी मुआवजा (Retrenchment Compensation): यह वह पैसा है जो पहले से ही मिलता रहा है।
2- री-स्किलिंग फंड (Re-skilling Fund): यह एक अतिरिक्त पैसा है जो कर्मचारी को नए कौशल (new skills) सीखने में मदद करेगा, ताकि वह जल्द ही नई नौकरी ढूंढ सके.
सरकार ने इस फंड के लिए कुछ नियम बनाए हैं।
कौन पैसा देगा: कंपनियां या औद्योगिक संस्थान देंगे, जहां पर कर्मचारी नौकरी करता है।
कितना पैसा मिलेगा: हर उस कर्मचारी के लिए, जिसे निकाला गया है, कंपनी को 15 दिनों का वेतन इस फंड में जमा करना होगा।
पैसे से क्या होगा: इस पैसे का इस्तेमाल छंटनी के तहत निकाले गए कर्मचारी को ट्रेनिंग देने के लिए किया जाएगा।
ये पैसा कब मिलेगा: छंटनी होने के 45 दिनों के अंदर यह पैसा सीधे कर्मचारी के बैंक खाते में जमा कर दिया जाएगा।
यह नया नियम, जो औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020) का हिस्सा है, कंपनियों के लिए अनिवार्य है। यह 21 नवंबर, 2025 से लागू हो चुका है। इसका मतलब है कि नौकरी से निकाले गए हर कर्मचारी को अब मुआवजे के साथ-साथ स्किल डेवलपमेंट के लिए अलग से पैसा मिलेगा, ताकि वो नई नौकरी के लिए खुद को तैयार कर सकें।
दरअसल, पहले जब किसी को नौकरी से निकाला जाता था, तो कर्मचारी को एक मुआवजा दिया जाता था, लेकिन अब जिस हिसाब से चीजें बदल रही हैं, तो सरकार ने यह माना है कि आजकल ऑटोमेशन की वजह से नौकरियां जल्दी बदलती या ख़त्म हो जाती हैं। इसलिए, सिर्फ एक बार मुआवजा देने से काम नहीं चलेगा, कर्मचारी को नई स्किल सीखने की जरूरत होगी, ताकि वह जल्दी से दूसरी नौकरी पा सके।
ET Wealth में छपी रिपोर्ट में सिरिल अमरचंद मंगलदास की पार्टनर अंकिता रे बताती हैं कि छंटनी का मोटे तौर पर मतलब अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा किसी भी कारण से नौकरी खत्म होना है। इसमें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (voluntary retirement), अधिवर्षिता (superannuation), कॉन्ट्रैक्ट का नवीनीकरण नहीं होना, निश्चित अवधि का कार्यकाल पूरा होना या खराब स्वास्थ्य के कारण नौकरी खत्म होना शामिल नहीं है.
रे बताती हैं, "सर्विस के हर पूरे किए गए वर्ष के लिए 15 दिनों के औसत वेतन पर गणना किए गए वैधानिक छंटनी मुआवजे के अलावा, नियोक्ताओं पर अब 15 दिनों की आखिरी निकाली गई सैलरी के रूप में गणना किए गए एक अतिरिक्त योगदान को फंड में जमा करने की दोहरी ज़िम्मेदारी है, जिसे छंटनी के 45 दिनों के भीतर जमा किया जाना चाहिए"।
एसकेवी लॉ ऑफिसेज के सीनियर पार्टनर, प्रणव भास्कर ने ईटी वेल्थ ऑनलाइन को बताया कि किसी भी कर्मचारी को दिया जाने वाला छंटनी मुआवजा री-स्किलिंग फंड को शामिल नहीं कर सकता है. री-स्किलिंग फंड की गणना कर्मचारी को भुगतान करने के लिए अलग से की जानी चाहिए. श्रम कानून के मुताबिक न्यूनतम छंटनी मुआवजा निरंतर सेवा के हर पूरे किए गए वर्ष के लिए 15 दिनों का औसत वेतन होता है'.
भास्कर कहते हैं कि यह रि-स्किलिंग फंड, किसी श्रमिक को दिए जाने वाले छंटनी मुआवज़े को न तो बदलता है, न कम करता है, और न ही उसका हिस्सा बनता है. री-स्किलिंग फंड इसलिए जरूरी है, क्योंकि आज की अर्थव्यवस्था में श्रमिकों को नए क्षेत्रों या भूमिकाओं के लिए खुद को फिर से प्रशिक्षित करने और नए कौशल हासिल करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की ज़रूरत होती है.
रिपोर्ट के मुताबिक भास्कर कहते हैं कि छंटनी तब होती है जब कोई नियोक्ता कर्मचारियों की सेवा समाप्त करता है, लेकिन यह किसी दुर्व्यवहार या खराब प्रदर्शन की सजा के तौर पर नहीं होता. यह तब होता है जब कंपनी को लागत कम करना हो, कोई रीस्ट्रक्चरिंग करनी हो, कोई नई टेक्नोलॉजी लानी हो या फिर किसी डिपार्टमेंट का साइज कम करना हो. मुख्य कानूनी अंतर यह है कि छंटनी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं है. यह कर्मचारी के प्रदर्शन को नहीं दर्शाती, बल्कि यह कंपनी की वित्तीय या परिचालन आवश्यकताओं की वजह से लिया गया फैसला है.
भास्कर बताते हैं कि री-स्किलिंग फंड समय के साथ श्रमिकों को कई तरह से मदद करता है. यह नौकरियों के बीच संक्रमण काल के दौरान तुरंत अतिरिक्त वित्तीय मदद के रूप में आता है, जो कि 45 दिनों के भीतर श्रमिक के खाते में जमा कर दी जाती है. इससे वित्तीय दबाव कम होता है और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि श्रमिकों को केवल जीविका के लिए कोई भी काम करने के लिए मजबूर न होना पड़े.
Updated on:
26 Nov 2025 02:33 pm
Published on:
26 Nov 2025 02:32 pm
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