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7 हजार से ज्यादा टीबी मरीज, 2500 नए केस, छतरपुर में टीबी रोकथाम अभियान पिछड़ा

इस वर्ष जिले की 65 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त पंचायत घोषित किया गया है। इनमें से 7 पंचायतों को सिल्वर और 58 को ब्रोंज मेडल मिला है।

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टीबी

देशभर में क्षय रोग (टीबी) को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य के साथ केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 की समयसीमा तय कर रखी है। स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के संयुक्त प्रयासों के बीच टीबी उन्मूलन को लेकर बड़े-बड़े कार्यक्रमों की घोषणाएं होती रही हैं। परंतु जमीनी स्थिति इससे उलट नजर आती है। छतरपुर जिले का हाल इसी का सटीक उदाहरण है—जहां टीबी मरीजों की संख्या घटने के बजाय लगातार बढ़ती दिख रही है। जिले में अब तक 7 हजार से अधिक संक्रमितों की पहचान की जा चुकी है। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से अकेले इसी साल 2500 नए मरीज सामने आए हैं।

एमडीआर टीबी सबसे बड़ी समस्या

सबसे बड़ी समस्या है, इलाज के बीच 20 फीसदी मरीजों का दवाएं छोड़ देना, जिससे संक्रमण न केवल बढ़ता है बल्कि रोगी मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) टीबी की गंभीर श्रेणी में पहुंच जाते हैं। केंद्र सरकार ने छतरपुर सहित मध्यप्रदेश के 23 जिलों को विशेष निगरानी में रखते हुए सघन टीबी उन्मूलन अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि लक्ष्य हासिल करना अभी भी काफी मुश्किल है।

65 पंचायतें टीबी मुक्त घोषित, लेकिन चुनौतियां बरकरार

इस वर्ष जिले की 65 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त पंचायत घोषित किया गया है। इनमें से 7 पंचायतों को सिल्वर और 58 को ब्रोंज मेडल मिला है। स्वास्थ्य विभाग ने दावा किया था कि 67 पंचायतें मानदंडों पर खरी उतरी हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने दो पंचायतों को सूची से निकाल दिया। पिछले साल केवल 11 पंचायतें ही टीबी मुक्त घोषित हुई थीं, इसलिए यह संख्या प्रगति का संकेत भी है। पंचायतों में टीबी के संदिग्ध मरीजों की पहचान के लिए नियमित स्क्रीनिंग से लेकर घर-घर जाकर जांच की व्यवस्था की गई। संयुक्त टीम ने सभी डेटा की जांच के बाद ही पंचायतों को टीबी मुक्त का दर्जा दिया।

तीन साल तक लगातार निगरानी, तभी मिलेगी गोल्ड मुहर

टीबी मुक्त ग्राम पंचायतों में मरीजों की तीन साल तक लगातार मॉनिटरिंग की जाती है।

पहला वर्ष - ब्रोंज सर्टिफिकेट

दूसरा वर्ष - सिल्वर सर्टिफिकेट

तीसरा वर्ष - गोल्ड सर्टिफिकेट

यदि कोई पंचायत दूसरे साल की शर्तें पूरी नहीं कर पाती है, तो उसे सिल्वर श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता। आंकलन के लिए 1000 आबादी वाली पंचायत में 30 लोगों की जांच अनिवार्य है।

बीमारी छिपाना और इलाज में अनियमितता — सबसे बड़ा कारण

टीबी के मरीज अक्सर सामाजिक संकोच, जानकारी के अभाव और सरकारी योजनाओं की जानकारी न होने के चलते समय पर इलाज नहीं लेते। जिले में टीबी का एकमात्र अस्पताल नौगांव में है, जहां एमपी और यूपी दोनों राज्यों के मरीज पहुंचते हैं। इलाज बीच में छोड़ देने से कई मरीज एमडीआर टीबी के शिकार हो जाते हैं, जिसमें दवाएं असर नहीं करतीं। यह संक्रमण परिवार और आसपास के लोगों तक फैलने का भी खतरा बढ़ाता है।

डॉट सेंटरों में लापरवाही, कई सेंटर बंद रहने की शिकायतें

जिले में कुल 17 डॉट सेंटर हैं, लेकिन शिकायत है कि कई सेंटर अक्सर बंद मिलते हैं। मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की जांच के लिए मरीजों को खुद खकार का सैंपल लेकर छतरपुर भेजा जाता है, जो नियमों के खिलाफ है और संक्रमण फैलाने का जोखिम बढ़ाता है। सरकारी निर्देशों के अनुसार, मरीज को न दवा लेने और न जांच के लिए कहीं भेजा जाना चाहिए। सारा प्रबंधन स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध कराया जाना जरूरी है।

सही इलाज मिले तो 6 से 9 महीने में बीमारी पूरी तरह ठीक

टीबी के प्रमुख लक्षण

लगातार 2-3 हफ्ते तक खांसी

बलगम में खून

बुखार

रात में पसीना

वजन कम होना

लगातार थकान

जिले में टीबी के आंकड़े कम हुए हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अब भी कम

डॉ. रविंद्र पटेल, नोडल अधिकारी, क्षय रोग विभाग के अनुसार पिछले वर्षों की तुलना में टीबी मरीजों की संख्या में कमी आई है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। अभियान लगातार चल रहे हैं और इनके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।


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