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सात साल बाद भी नहीं मिला उड़द का भुगतान, इसलिए भावांतर पर भरोसा नहीं जता रहे किसान, जो आ रहे वे गिरदावरी में उलझे

ग्राम सिंहपुर के किसान शैलेंद्र तिवारी कहते हैं 2017-18 में उड़द खरीदी में भावांतर का पैसा असली किसानों तक नहीं पहुंचा। व्यापारी और मंडी कर्मचारियों की मिलीभगत से भुगतान हड़प लिया गया।

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mandi

मंडी में खरीदी

राज्य सरकार किसानों की उपज को उचित मूल्य दिलाने के लिए भावांतर भुगतान योजना का व्यापक प्रचार कर रही है, लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। किसानों का कहना है कि सात साल पहले उड़द की खरीदी में जो भावांतर योजना लागू की गई थी, उसका भुगतान आज तक नहीं हुआ, इसलिए वे अब इस योजना पर भरोसा नहीं जता पा रहे।

किसानों का आरोप - भुगतान व्यापारियों की जेब में गया

ग्राम सिंहपुर के किसान शैलेंद्र तिवारी कहते हैं 2017-18 में उड़द खरीदी में भावांतर का पैसा असली किसानों तक नहीं पहुंचा। व्यापारी और मंडी कर्मचारियों की मिलीभगत से भुगतान हड़प लिया गया। जांच रिपोर्टों में यह भी सामने आया कि उस वर्ष 45 हजार किसानों के नाम पर फर्जी खरीदी दर्ज की गई थी, जिनमें कई ऐसे थे जिन्होंने उड़द की खेती ही नहीं की थी। कई किसानों की खरीदी दमोह, सागर, पन्ना और इंदौर तक दिखाई गई, जबकि योजना का लाभ छतरपुर जिले से उठा लिया गया। यह पूरा खेल रसूखदारों की मिलीभगत से रचा गया और बाद में मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

व्यापारी फिर सक्रिय, गांव-गांव करवा रहे पंजीयन

पुराने घोटाले की याद अब भी किसानों के मन में ताजा है। ऐसे में कई किसान भावांतर योजना में पंजीयन कराने से बच रहे हैं।

वहीं, व्यापारी एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं और गांव-गांव जाकर किसानों के नाम पर पंजीयन करा रहे हैं। इस बार सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5328 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है, जबकि योजना 24 अक्टूबर से 15 जनवरी तक चलेगी। अब तक जिले में 565 किसानों ने पंजीयन कराया है।

भावांतर योजना में गड़बड़ी से किसानों में नाराजग़ी — 767 किसान वंचित, सिर्फ 460 बेच सके उपज

24 अक्टूबर से जब मंडियों में खरीदी शुरू हुई, तब से किसानों का असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। पटवारियों द्वारा गिरदावरी सही ढंग से न करने से सैकड़ों किसान योजना से बाहर हो गए हैं। छतरपुर मंडी में बड़ी संख्या में किसान पहुंचे — इनमें 38 पंजीकृत और 50 अपंजीकृत किसान शामिल थे। पंजीकृत किसानों की उपज 1091 क्विंटल रही जबकि अपंजीकृत किसानों की 847 क्विंटल। अपंजीकृत किसानों को 2800 से 4000 रुपए प्रति क्विंटल तक का भाव मिला, जबकि भावांतर योजना में पंजीकृत किसानों की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य 5328 रुपए प्रति क्विंटल के आधार पर खरीदी जानी है।

पटवारी की लापरवाही से किसान हुए बाहर

किसानों का आरोप है कि पटवारी और सर्वेयर ने गिरदावरी में उनकी फसल दर्ज ही नहीं की, जिससे उनका पंजीयन नहीं हो सका।

ग्राम बरौहां के किसान रिंकू साहू ने बताया कि उन्हें सिर्फ 4060 रुपए प्रति क्विंटल का भाव मिला, जबकि ग्राम खौंप के देवीदीन सिंह बुंदेला ने कहा कि मंडी में उन्हें मात्र 4000 रुपए प्रति क्विंटल का दाम मिला। कदारी के किसान रमेश साहू ने कहा कि मंडी में बोली सिर्फ 3780 रुपए तक पहुंची, इसलिए उन्होंने माल बेचने से इनकार कर दिया।

आंकड़ों में योजना की सच्चाई

-जिले में भावांतर योजना के तहत 6439 किसानों ने पंजीयन कराया है।

-अब तक सिर्फ 460 किसानों ने 11,252 क्विंटल उपज बेची है, जबकि 767 अपंजीकृत किसानों ने 21873 क्विंटल सोयाबीन बेची — यानी आधे से ज़्यादा किसान सरकारी योजना से बाहर रह गए।

-पंजीकृत किसानों के खातों में भावांतर की राशि 7 नवंबर के बाद से जमा होनी शुरू होगी।

व्यापारी कर रहे मनमानी, किसान हो रहे शोषित

मंडी परिसर में अधिकतर ढेर अपंजीकृत किसानों के हैं। व्यापारी इन किसानों से कम दाम में उपज खरीदकर अपने नाम से भावांतर में बेच रहे हैं। उतराई से लेकर तुलाई तक के खर्च भी किसानों से वसूले जा रहे हैं। मंडी सचिव शिवभूषण निगम ने दावा किया मंडी में पूरी पारदर्शिता के साथ खरीदी हो रही है। यदि कोई व्यापारी गड़बड़ी करेगा, तो कार्रवाई की जाएगी।

किसानों की मांग कागज़ी नहीं, नकदी न्याय चाहिए

किसानों ने सरकार से समर्थन मूल्य पर सीधी खरीदी की मांग की है ताकि बिचौलियों और गिरदावरी की गड़बड़ी से बचा जा सके।

वे कहते हैं कि जब तक सात साल पुराने उड़द भुगतान मामले में न्याय नहीं होता और दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक नई योजनाओं पर भरोसा करना कठिन है। कृषि विभाग के उप संचालक रवीश सिंह का कहना है इस बार पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन और पारदर्शी है। किसानों को भुगतान सीधे खाते में मिलेगा।