
वन भूमि कब्जा हटाते हुए
जिले में वनभूमि पर बढ़ रहा अतिक्रमण अब पर्यावरण, वन्यजीव संरक्षण और प्रशासनिक व्यवस्था तीनों के लिए बड़ा संकट बन चुका है। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि जिले में करीब 12937.68 हेक्टेयर वनभूमि पर अवैध कब्ज़े दर्ज हैं। इनमें से अधिकांश भूमि पर लोगों ने खेत तैयार कर लिए हैं, कई जगह पक्के मकान, कुएं, कमरे, नलकूप और बाड़े तक बना दिए गए हैं। दो साल में वन विभाग सिर्फ 986 हेक्टेयर भूमि ही मुक्त करा पाया है, जो कुल अतिक्रमण का बहुत छोटा हिस्सा है। यह स्थिति बताती है कि वनभूमि पर कब्जा हटाना कितना चुनौतीपूर्ण और जटिल होता जा रहा है।
1. गांवों के विस्तार के साथ वनभूमि में खेती का फैलाव
ज्यादातर अतिक्रमण गांवों के किनारे या उनसे सटे जंगल क्षेत्रों में हैं। धीरे-धीरे खेती करते-करते किसानों ने वनभूमि में भी हल चलाना शुरू कर दिया। लंबा समय बीतने पर खेत स्थायी हो गए और उन्हें वन भूमि मानने से इनकार शुरू हो गया।
2. वर्षों तक सतत निगरानी की कमी
वन विभाग की सीमित जनशक्ति और संसाधनों के कारण कई वर्षों तक जंगलों की निगरानी लगातार नहीं हो सकी। इसी का लाभ उठाकर अतिक्रमणकारियों ने बड़े क्षेत्रों पर निर्माण और खेती फैला दी।
1. पर्यावरणीय खतराजंगल कम होने से तापमान वृद्धि, वर्षा में कमी और मिट्टी का कटाव बढऩे लगा है। जलसंकट भी गहरा सकता है।2. वन्यजीवन पर असर
प्राकृतिक आवास नष्ट होने से तेंदुआ, चिंकारा और जंगली सुअर जैसे जानवर मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे टकराव बढ़ रहा है।
3. जैव-विविधता को नुकसानस्थानीय प्रजातियों के पौधे और झाडिय़ां खत्म हो रही हैं। पर्यावरण विदों के अनुसार इसका असर आने वाले दशकों तक महसूस किया जाएगा। केवल 986 हेक्टेयर ही क्यों मुक्त हो पाए?
पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत संवेदनशील प्रकरण
वन मंडल छतरपुर के वन कक्ष क्रमांक क्क-700 में पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत ग्राम कनेरी के विस्थापित लोगों के लिए 140 हेक्टेयर भूमि के मामले में आवेदन वन विभाग को प्राप्त हुआ। इस आवेदन में सामने आया कि 125 हेक्टेयर भूमि पर अवैध पट्टों का आवंटन किया गया और अतिक्रमण हुआ है। अधिकारियों ने बताया कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है। यह मामला जिले के वन संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा के दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है, क्योंकि पन्ना टाइगर रिजर्व का क्षेत्र वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए संवेदनशील माना जाता है।
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अतिक्रमण हटाने के अभियान में कई चुनौतियां सामने आती हैं। इनमें शामिल हैं:
-लंबे समय से कब्जाधारकों द्वारा किए गए अवैध निर्माण
- सामाजिक और स्थानीय विरोध
- राजस्व और वन भूमि के रिकॉर्ड में पेच
- संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण वन्यजीव सुरक्षा का ध्यान
शेष अतिक्रमण हटाने के लिए नए अभियान, टास्क फोर्स की निगरानी और डिजिटल मैपिंग प्रणाली का उपयोग किया जाएगा। इस प्रक्रिया में स्थानीय अधिकारियों और वन विभाग के अधिकारी मिलकर कार्रवाई करेंगे।
सर्वेश सोनवानी, डीएफओ, छतरपुर
Published on:
19 Nov 2025 10:40 am
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