
चित्तौड़गढ़ सांवलियाजी सेठ मंदिर, पत्रिका फोटो
Sanwaliya Seth Temple Chittorgarh: चित्तौड़गढ़। सांवलियाजी मंदिर मंडल की ओर से मातृकुंडिया तीर्थ स्थल के विकास के लिए 18 करोड़ रुपए की राशि जारी करने को लेकर 12 अप्रेल 2018 को लिए गए प्रस्ताव को सिविल न्यायालय मंडफिया ने निरस्त घोषित कर दिया है। न्यायालय ने मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 के प्रावधानों के प्रतिकूल होने से साथ ही प्रतिवादी मुख्य कार्यपालक अधिकारी व सांवलिया मंदिर मंडल ट्रस्ट के अध्यक्ष को स्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद किया गया है कि वे इस प्रस्ताव के अनुसरण में मन्दिर निधि से किसी भी प्रकार की राशि खर्च या जारी नहीं करें। जो राशि जारी हुई है, उसे वापस मंदिर मंडल के खाते में जमा कराना होगा।
जानकारी के अनुसार मंडफिया निवासी मदनलाल जैन सहित करीब आधा दर्जन लोगों ने सिविल न्यायालय मंडफिया में नवंबर 2018 में सांवलियाजी मंदिर मंडल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी व अध्यक्ष सहित 49 लोगों के खिलाफ जनहित वाद पेश किया था। जिसमें बताया था कि मंदिर की व्यवस्थाओं का सुचारू संचालन करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 1992 में सांवलियाजी मंदिर मंडल अधिनियम बनाया था। भगवान सांवलिया सेठ के भंडार से प्राप्त धन राशि से श्रद्धालुओं और यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था, आसपास के 16 गांवों से सांवलियाजी तक सड़क निर्माण कार्य, शिक्षण संस्थाओं व मंदिर परिसर का विस्तार अक्षरधाम की तर्ज पर करने की योजना तथा वर्तमान में 39 परियोजनाएं निर्माणाधीन है। इन सभी योजनाओं की अनुमानित लागत करीब ढ़ाई से तीन अरब रुपए है।
वाद में कहा गया कि मंदिर मंडल की जनहित की योजनाएं लंबित होने के बाद भी मंदिर मंडल परिक्षेत्र के 16 गांवों को छोड़कर बाहरी गांवों में 47 लाख रुपए के काम करवाने का अनुमोदन कर दिया गया। जिसके बारे में देव स्थान विभाग ने भी कहा है कि यह कार्य नहीं करवाए जा सकते। प्रतिवादीगण मंदिर मंडल अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए भण्डार की राशि में से 18 करोड़ रुपए मातृकुंडिया की सरकारी योजनाओं में देने को तत्पर हो रहे हैं। प्रतिवादी गण ने मंदिर की राशि का दुरुपयोग करते हुए अन्य कार्यों के लिए जारी कर दी है।
पीठासीन अधिकारी विकास कुमार अग्रवाल ने सुनवाई के बाद 17 नवंबर 2025 को दिए अपने फैसले में मंदिर मंडल की ओर से मातृकुंडिया तीर्थ स्थल के विकास के लिए 18 करोड़ रुपए की राशि जारी करने के संबंध में लिए गए प्रस्ताव को निरस्त घोषित कर दिया। आदेश में प्रतिवादी मंदिर मंडल अध्यक्ष व मुख्य कार्यपालक अधिकारी को स्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद किया गया है कि वे प्रस्ताव के अनुसरण में मंदिर निधि से किसी भी प्रकार की राशि खर्च या जारी नहीं करें।
यदि कोई धन राशि जारी की गई है तो उस राशि को इस फैसले की तारीख से से दो माह के भीतर वापस मंदिर निधि में जमा करवाया जाए। दोनों प्रतिवादियों सहित सांवलियाजी मंदिर मंडल बोर्ड को स्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद किया गया है कि वह सांवलियाजी मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 में वर्णित प्रावधानों से परे जाकर मंदिर निधि का किसी भी रूप में दुरूपयोग नहीं करें।
Published on:
19 Nov 2025 11:16 am
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