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साधु की प्रत्येक प्रवृत्ति में आत्म कल्याण के साथ परोपकार

बेंगलूरु. आचार्य अरिहंत सागर सूरीश्वर की निश्रा में शंकरपुरम में मुमुक्षु भव्य शाह की दीक्षा के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय संसार परिहार उत्सव के शुभारंभ के अवसर आचार्य ने दीक्षा लेने वालों के सामाजिक योगदान के पहलुओं से रूबरू कराया।उन्होंने कहा कि जैन साधु की प्रत्येक प्रवृत्ति में आत्मकल्याण के साथ परोपकार जुड़ा हुआ […]

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बेंगलूरु. आचार्य अरिहंत सागर सूरीश्वर की निश्रा में शंकरपुरम में मुमुक्षु भव्य शाह की दीक्षा के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय संसार परिहार उत्सव के शुभारंभ के अवसर आचार्य ने दीक्षा लेने वालों के सामाजिक योगदान के पहलुओं से रूबरू कराया।उन्होंने कहा कि जैन साधु की प्रत्येक प्रवृत्ति में आत्मकल्याण के साथ परोपकार जुड़ा हुआ है। जब सुशिक्षित युवा, घर-परिवार-व्यापार को छोड़ यदि दीक्षा लेते हैं तो आम जनमानस में कई तरह के सवाल उठते हैं। जवाब समझने के लिए पहले हमें दीक्षा के सच्चे स्वरूप और वास्तविक व्याख्या को समझना पड़ेगा। दीक्षा तमाम जीव सृष्टि के साथ आत्मिक नाता जोड़ने का नाम है और मात्र सामाजिक कर्तव्य के दायरे से मुक्त होकर आत्मिक कर्तव्यों का स्वीकार करना है। इस दृष्टि से देखा जाए तो एक मुनि का कार्यक्षेत्र मात्र समाज तक सीमित न रहकर समस्त जीव सृष्टि के प्रति आत्मिक कर्तव्य होने से और व्यापक बन जाता है। एक साधु जीव सृष्टि के प्रति अपना कर्तव्य अदा करने जा रहा हो तो उसे छोटे कर्तव्यों से मुक्त होना ही पड़ता है।

इससे पूर्व पालकी में विराजित भगवान, संतों और मुमुक्षु का सामैयापूर्वक दीक्षा मंडप तक प्रवेश हुआ। शंकरपुरम संघ के पदाधिकारियों ने दीक्षा मंडप का उद्घाटन किया। साथ ही दीक्षार्थी भव्य शाह और उनके परिवार के सदस्यों ने दीक्षा जीवन में अनुशासन और औचित्य को दर्शाती चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। प्रदर्शनी में संघ के युवा सदस्य आगंतुकों को चित्रों की रोचक समझ प्रदान कर रहे थे। आदिनाथ जैन संघ, शंकरपुरम के पदाधिकारियों ने आचार्य से केसरिया आदिनाथ मंदिर की प्रथम वर्षगांठ पर ध्वजारोहण के अवसर पर निश्रा प्रदान करने की विनती की। इसके बाद शक्रस्तव अभिषेक, हितशिक्षा, मंगलगीत, वस्त्र रंगाई, संयम उपकरणों की छाब भराई, बहुमूल्य द्रव्यों से गुरु पूजन आदि दीक्षा की रस्में भी अदा की गईं।लोगों के हृदय को निर्मल बनाते हैं संत

आचार्य ने कहा कि साधु के जीवन में परोपकार अनायास ही गूंथा हुआ है। वह समाज में अपने उपदेश द्वारा संस्कारों का सींचन कर लोगों के हृदय को निर्मल बनाता है और इससे सामाजिक संतुलन बना रहता है। वह दिन-रात मेहनत करके, बड़ी लगन से, धैर्य से शास्त्रों का पठन करके, चिंतन-मनन करके, एक पैसा लिए बगैर अपने और समाज के मनोविकारों से लड़ते हैं। सही-गलत, अच्छे-बुरे का भेद बताकर, कर्तव्यों का एहसास दिलाकर, न सिर्फ व्यक्ति की सोच का बल्कि उसके हृदय का भी परिवर्तन करके उसे जीने की सही दिशा दिखाते हैं।

संयम के गीतों की प्रस्तुति

शाम को संयम सिम्फनी नामक कार्यक्रम में मुंबई के संगीतकार और गायक भाविक शाह, पारस गडा एवं देवांश दोशी ने वैराग्य और संयम के गीतों की प्रस्तुति से समा बांधा। दीक्षा महोत्सव के व्यवस्थापक कल्याण मित्र परिवार के सदस्य अभिषेक बंब ने बताया कि त्याग एवं वैराग्य का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से शनिवार को मुमुक्षु का वर्षीदान वरघोडा आयोजित किया जाएगा। विदाई समारोह में संचालक अमन सोमावत और दीक्षार्थी भव्य शाह के बीच संवाद के माध्यम से दीक्षा जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराया जाएगा।.................बॉक्स..........इसमें प्रदर्शनी वाली फोटो लगाएं...............

एहसास फील द एग्जिबिट का शुभारंभ

इस मौके पर आचार्य के सान्निध्य में एहसास फील द एग्जिबिट का शुभारंभ श्रद्धा और उत्साह के साथ हुआ। इस आयोजन का नेतृत्व श्रद्धा सुराणा और भाविका जैन ने संभाला। प्रदर्शनी का संचालन कल्याण मित्र परिवार और युवा स्वयंसेवकों द्वारा किया गया। आयोजन का उद्देश्य जैन धर्म के गूढ़ ज्ञान को आधुनिक शैली में प्रस्तुत करना था। प्रदर्शनी के भीतर एक विशिष्ट थिएटर बनाया गया। इसमें गुरुदेव पर आधारित एक लघु फिल्म सैंड आर्ट के माध्यम से दिखाई। जानो और चमको नामक खंड में 50 रोचक जैन तथ्य प्रस्तुत किए गए। प्रदर्शनी में जीवन और मोबाइल फोन के बीच अनोखी समानताएं भी दर्शाई गईं। प्रदर्शनी जैन धर्म के अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह जैसे मूल्यों को उजागर करती है। आयोजन स्थल पर शांत, सकारात्मक और प्रेरणादायक वातावरण बना रहा।