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Rajasthan : पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ बेटियों ने कायम की मिसाल, मां की अर्थी को दिया कंधा व मुखाग्नि

Rajasthan : डूंगरपुर के कोकापुर के पादरा गांव में अंतिम संस्कार में पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए बेटियों ने एक मिसाल कायम की है। जब मां की अर्थी उठी तो पूरा गांव स्तब्ध रह गया। बेटियों ने अपनी मां की अर्थी को कंधे का सहारा दिया फिर मुख़ाग्नि देकर अंतिम रस्में पूरी कीं।

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Rajasthan Dungarpur Breaking traditional stereotypes daughters set an example mother bier shouldering and lighting funeral pyre

कोकापुर. पादरा में मां की अंर्थी को बेटियो ने दिया कंधा। फोटो पत्रिका

Rajasthan : डूंगरपुर के कोकापुर के पादरा गांव अंतिम संस्कार में पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए बेटियों ने एक मिसाल कायम की है। जब मां कर अर्थी उठी तो पूरा गांव स्तब्ध रह गया। बेटियों ने अपनी अपनी मां की अर्थी को कंधे का सहारा दिया फिर मुख़ाग्नि देकर अंतिम रस्में पूरी कीं।

चारों बेटियों ने लिया एक बड़ा फैसला

कोकापुर के पादरा गांव में उस दिन एक नई हवा चली। घर का आंगन खामोश था, पर उस खामोशी में एक अनकही हलचल थी। मां शांति मानशंकर उपाध्याय की मृत्यु हो गई। सब जगह एक ही चर्चा कौन करेगा अंतिम संस्कार। शांति मानशंकर उपाध्याय की चार बेटियां थी। चारों बेटियों ने एक बड़ा फैसला लिया।

एक नई सोच ने लिया जन्म

बेटियों ने अपनी मां के अंतिम संस्कार में पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए एक मिसाल कायम की है। बेटियों ने, बेटों की तरह ही, अपनी मां की अर्थी को कंधा दिया। श्मशान में चिता सज चुकी थी। पंडित जी इंतजार कर रहे थे। बेटियों ने कहा, हम देंगे मुखाग्नि। मशाल जली। मां के चेहरे को अंतिम बार देखा और मुख़ाग्नि दी। लपटें उठीं, और साथ में एक नई सोच ने जन्म लिया। यह घटना आज के समाज में बेटा-बेटी की समानता को सशक्त रूप से दर्शाती है।

ग्रामीणों ने पहल की सराहना की

पादरा गांव की इस घटना ने समाज की उन पुरानी धारणाओं को तोड़ा है जो मानती थीं कि अंतिम संस्कार केवल पुरुष ही कर सकते हैं। पादरा गांव की बेटियों में नीमा, पुष्पा, रंजना, दक्षा की इस पहल की ग्रामीणों ने सराहना की। बेटियों के इस कदम ने साबित कर दिया है कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं है और वे हर फ़र्ज़ निभाने में पूरी तरह सक्षम हैं।