Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

चुनाव नहीं लड़ा, MLA भी नहीं… फिर भी CM बन गए Nitish Kumar, जानिए संविधान का वो खास नियम

Nitish Kumar Oath Ceremony: नीतीश कुमार बिना चुनाव लड़े और MLA न होते हुए भी 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं। जानिए संविधान के उस खास नियम के बारे में जिससे वह CM की गद्दी पर बैठे हैं।

2 min read
Google source verification

पटना

image

Rahul Yadav

Nov 20, 2025

Nitish Kumar Oath Ceremony

Nitish Kumar Oath Ceremony (Image: Patrika.com)

Nitish Kumar Oath Ceremony: बिहार के इतिहास में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार ने आज फिर से एक बार सीएम की शपथ ले ली है। यह 10वीं बार है जब वे मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीतीश कुमार ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है इसलिए वह वर्तमान में विधायक भी नही हैं फिर भी वे मुख्यमंत्री बन गए हैं। आमतौर पर लोगों को यह पता होता है कि विधायक दल का नेता ही मुख्यमंत्री बनता है। चलिए जानते हैं संविधान का वह खास नियम, जिससे मुख्यमंत्री बनने के लिए MLA होना जरूरी नहीं है।

क्या MLA होना अनिवार्य है?

बहुत से लोगों की यह गलतफहमी होती है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए चुना हुआ विधायक होना ही अनिवार्य है। वास्तव में ऐसा नहीं है। भारत का संविधान यह स्पष्ट करता है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए व्यक्ति का केवल 'विधानमंडल का सदस्य' होना पर्याप्त है, चाहे वह विधानसभा (MLA) हो या विधान परिषद (MLC)। बिहार में दो सदन हैं, इसलिए यहां एमएलसी रहते हुए भी कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है।

संविधान का नियम

भारत के संविधान का अनुच्छेद 164(4) इस प्रश्न का सीधा उत्तर देता है। इस प्रावधान के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बनते समय विधानसभा या विधान परिषद किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो भी वह 6 महीने तक मुख्यमंत्री पद पर कार्य कर सकता है बशर्ते वह इन 6 महीनों के भीतर किसी एक सदन का सदस्य बन जाए। इस नियम का उद्देश्य यह है कि सरकार के गठन में देरी न हो और प्रशासनिक कामकाज बाधित न हो।

नीतीश कुमार MLA नहीं, लेकिन MLC हैं

नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, इसलिए वे MLA नहीं हैं। लेकिन वे विधान परिषद (MLC) के सदस्य हैं और यह भी वैध विधायी सदस्यता है। इसलिए वे संविधान के नियमों के अनुसार मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं।

यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि भारत के कई राज्यों में MLC रहते हुए भी मुख्यमंत्री बनने की परंपरा रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह एक सामान्य प्रक्रिया है, क्योंकि यहां द्विसदनीय विधानमंडल मौजूद है।

विधान परिषद का महत्व

जहां विधान परिषद होती है, वहां मुख्यमंत्री या मंत्री बनने के लिए नेता के पास एक अतिरिक्त विकल्प होता है। यदि वे चुनाव नहीं लड़ते या विधानसभा में नहीं जीतते, तो भी वे विधान परिषद से सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं। यही वजह है कि ऐसे मामलों में MLC रहकर मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह संवैधानिक और वैध माना जाता है।

यह नियम क्यों बनाया गया?

संविधान के निर्माताओं ने यह नियम प्रशासनिक स्थिरता के लिए बनाया था। मान लीजिए किसी दल के पास बहुमत है, लेकिन उनके नेता ने चुनाव नहीं लड़ा या किसी कारणवश तुरंत चुनाव जीत नहीं सकते, तब भी वे सरकार चला सकते हैं। बस शर्त इतनी कि छह महीने के अंदर वे किसी एक सदन के सदस्य बन जाएं। यह नियम लोकतंत्र और शासन को गतिशील बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस तरह यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नीतीश कुमार का MLA न होते हुए भी मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह से संवैधानिक, वैध, और प्रक्रियागत रूप से सही है। भारत का संविधान यह सुनिश्चित करता है कि सरकार का गठन बिना रुकावट हो और राज्य के प्रशासन पर किसी प्रकार का संकट न आए।