
Nitish Kumar Oath Ceremony (Image: Patrika.com)
Nitish Kumar Oath Ceremony: बिहार के इतिहास में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार ने आज फिर से एक बार सीएम की शपथ ले ली है। यह 10वीं बार है जब वे मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीतीश कुमार ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है इसलिए वह वर्तमान में विधायक भी नही हैं फिर भी वे मुख्यमंत्री बन गए हैं। आमतौर पर लोगों को यह पता होता है कि विधायक दल का नेता ही मुख्यमंत्री बनता है। चलिए जानते हैं संविधान का वह खास नियम, जिससे मुख्यमंत्री बनने के लिए MLA होना जरूरी नहीं है।
बहुत से लोगों की यह गलतफहमी होती है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए चुना हुआ विधायक होना ही अनिवार्य है। वास्तव में ऐसा नहीं है। भारत का संविधान यह स्पष्ट करता है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए व्यक्ति का केवल 'विधानमंडल का सदस्य' होना पर्याप्त है, चाहे वह विधानसभा (MLA) हो या विधान परिषद (MLC)। बिहार में दो सदन हैं, इसलिए यहां एमएलसी रहते हुए भी कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 164(4) इस प्रश्न का सीधा उत्तर देता है। इस प्रावधान के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बनते समय विधानसभा या विधान परिषद किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो भी वह 6 महीने तक मुख्यमंत्री पद पर कार्य कर सकता है बशर्ते वह इन 6 महीनों के भीतर किसी एक सदन का सदस्य बन जाए। इस नियम का उद्देश्य यह है कि सरकार के गठन में देरी न हो और प्रशासनिक कामकाज बाधित न हो।
नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, इसलिए वे MLA नहीं हैं। लेकिन वे विधान परिषद (MLC) के सदस्य हैं और यह भी वैध विधायी सदस्यता है। इसलिए वे संविधान के नियमों के अनुसार मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं।
यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि भारत के कई राज्यों में MLC रहते हुए भी मुख्यमंत्री बनने की परंपरा रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह एक सामान्य प्रक्रिया है, क्योंकि यहां द्विसदनीय विधानमंडल मौजूद है।
जहां विधान परिषद होती है, वहां मुख्यमंत्री या मंत्री बनने के लिए नेता के पास एक अतिरिक्त विकल्प होता है। यदि वे चुनाव नहीं लड़ते या विधानसभा में नहीं जीतते, तो भी वे विधान परिषद से सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं। यही वजह है कि ऐसे मामलों में MLC रहकर मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह संवैधानिक और वैध माना जाता है।
संविधान के निर्माताओं ने यह नियम प्रशासनिक स्थिरता के लिए बनाया था। मान लीजिए किसी दल के पास बहुमत है, लेकिन उनके नेता ने चुनाव नहीं लड़ा या किसी कारणवश तुरंत चुनाव जीत नहीं सकते, तब भी वे सरकार चला सकते हैं। बस शर्त इतनी कि छह महीने के अंदर वे किसी एक सदन के सदस्य बन जाएं। यह नियम लोकतंत्र और शासन को गतिशील बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस तरह यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नीतीश कुमार का MLA न होते हुए भी मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह से संवैधानिक, वैध, और प्रक्रियागत रूप से सही है। भारत का संविधान यह सुनिश्चित करता है कि सरकार का गठन बिना रुकावट हो और राज्य के प्रशासन पर किसी प्रकार का संकट न आए।
Updated on:
20 Nov 2025 12:38 pm
Published on:
20 Nov 2025 09:11 am
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