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गीता-रामायण से लेकर सामान्य ज्ञान तक, बच्चों ने बढ़ाया ज्ञान

शहर के गब्बुर गली स्थित रामदेव मंदिर के सामने स्थित रामदेव भवन में बच्चों के लिए संस्कार शाला का विशेष आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य बच्चों को अपने धर्म, संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोडऩा रहा। कार्यक्रम के दौरान बच्चों को धार्मिक ग्रंथों श्रीमद्भागवत गीता, रामचरितमानस, हनुमान चालीसा आदि के महत्वपूर्ण प्रसंगों और शिक्षाओं से अवगत कराया गया। प्रशिक्षकों ने बच्चों को सरल और रोचक तरीके से बताया कि इन ग्रंथों की सीख जीवन में कैसे उपयोगी होती है।

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संस्कार शाला में प्रसन्न मुद्रा में शामिल बच्चे।

संस्कार शाला में प्रसन्न मुद्रा में शामिल बच्चे।

शहर के गब्बुर गली स्थित रामदेव मंदिर के सामने स्थित रामदेव भवन में बच्चों के लिए संस्कार शाला का विशेष आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य बच्चों को अपने धर्म, संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोडऩा रहा। कार्यक्रम के दौरान बच्चों को धार्मिक ग्रंथों श्रीमद्भागवत गीता, रामचरितमानस, हनुमान चालीसा आदि के महत्वपूर्ण प्रसंगों और शिक्षाओं से अवगत कराया गया। प्रशिक्षकों ने बच्चों को सरल और रोचक तरीके से बताया कि इन ग्रंथों की सीख जीवन में कैसे उपयोगी होती है।

व्यक्तित्व विकास और बौद्धिक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान
संस्कार शाला में केवल धार्मिक जानकारी ही नहीं, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास और बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया गया। इस अवसर पर सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें बच्चों ने उत्साहपूर्वक मौखिक प्रश्न-उत्तर दौर में भाग लिया। इसके साथ ही बच्चों ने प्रार्थना, प्रेरक कथाएं, नैतिक मूल्य और दैनिक जीवन में अपनाए जा सकने वाले छोटे-छोटे सकारात्मक व्यवहारों के बारे में भी सीखा।

कई बच्चों को हनुमान चालीसा कंठस्थ
संस्कारशाला के प्रमुख पंडित जेठमल श्रीमाली ने बताया कि पिछले छह महीने से हर रविवार को सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक डेढ़ घंटे के लिए संस्कार शाला लगाई जा रही है। संस्कार शाला के तहत बच्चों को श्लोक कंठस्थ करवा रहे हैं। पुस्तकें पढऩे को लेकर प्रेरित किया जा रहा है। दो बार हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। कई बच्चों को हनुमान चालीसा कंठस्थ हो चुकी है। ऐसे कार्यक्रम बच्चों में आत्मविश्वास, अनुशासन और भारतीय संस्कारों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करते हैं।

संस्कृति की नींव मजबूत
श्रीमाली ने बताया कि ऐसे आयोजन निरंतर जारी रहेंगे ताकि समाज के नन्हे बच्चों में नैतिक मूल्यों और संस्कृति की नींव मजबूत हो सके। संस्कार शाला निशुल्क है। संस्कार शाला में तीन वर्ष से लेकर 16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे उपस्थित रहे और पूरे जोश के साथ विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया।

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