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इंदौर से खंडवा दो घंटे में…’ लेकिन कब?

Indore: इंदौर-खंडवा रेल लाइन को ब्रॉडगेज में बदलने का काम अब ‘लंबी प्रतीक्षा’ का दूसरा नाम, 2024 में होना था पूरा, अब 2028 का लक्ष्य लेकिन 2030 तक बढ़ सकता है इंतजार

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Indore Khandwa Broad gauge conversion deadline

Indore Khandwa Broad gauge conversion deadline(फोटो: सोशल मीडिया)

Indore: ‘इंदौर से खंडवा 2 घंटे में...’ यह सपना दिखाने वाला रेल प्रोजेक्ट खुद दूसरा दशक पूरा होने तक मंजिल पर पहुंचता नहीं दिख रहा। इंदौर-खंडवा रेल लाइन को ब्रॉडगेज में बदलने का काम अब ‘लंबी प्रतीक्षा’ का दूसरा नाम बन चुका है। तकनीकी स्वीकृति के साथ कागज पर 2008 में शुरू हुई यह परियोजना लगातार और बार-बार समय सीमा बदलने के बाद अब 2030 तक भी मुश्किल से जमीन पर उतरती दिख रही है।

लक्ष्य था 2024 फिर, 2026, और अब 2028 का

पहले लक्ष्य वर्ष 2024 था, फिर 2026, उसके बाद 2028 लेकिन जिस गति से काम चल रहा है, यह डेडलाइन भी मुश्किल ही नहीं, असंभव लग रही है। इस बीच, जिस नैरो गेज लाइन ने वर्षों तक दोनों शहरों को जोड़े रखा, उसे बंद हुए 8 साल से ज्यादा हो चुके हैं। नतीजतन, निमाड़-इंदौर क्षेत्र के लाखों यात्रियों को सड़क मार्ग, महंगे किराए और घंटों की यात्रा पर निर्भर रहना पड़ रहा है। सड़क मार्ग पर भी निर्माण चलने से यह यात्रा दिन-प्रतिदिन दुरुह होती जा रही है।

सिंहस्थ 2028 तक की आस बेमानी !

इंदौर सांसद शंकर लालवानी सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा बार-बार यह भरोसा दिलाया जाता रहा है कि उज्जैन सिंहस्थ (2028 ) से पहले इस रूट पर ट्रेन दौड़ने लगेंगी। यह मांग भी उठती रही है कि कम से कम खंडवा-सनावद या ओंकारेश्वर तक का हिस्सा शुरू किया जाए। इधर, रेलवे का मानना है कि घाट सेक्शन के बिना प्रोजेक्ट का कोई हिस्सा ऑपरेशनल करना संभव नहीं। यानी 2028 तक किसी भी सूरत में इस रूट के शुरू होने की संभावना नहीं बनती।

देरी और काम का गणित

रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार इस रूट पर 36 बड़े और 76 छोटे पुल, 12 अंडर-ब्रिज, 3 ओवर-ब्रिज बनने हैं। 19 सुरंगें बनना हैं। घाट सेक्शन में एक बहुत लंबी (4.1 किमी लंबी) सुरंग भी प्रस्तावित है। नर्मदा घाटी का भू-भाग अत्यंत संवेदनशील होने के कारण सर्वे, पुन:सर्वे और डिजाइन सुधारों में ही वर्षों बीत गए। घाट सेक्शन इस प्रोजेक्ट का दिल है, और यहीं सबसे ज्यादा जटिलताएं हैं।

लागत 5393 करोड़ तक पहुंची

बार-बार रिवाइज्ड डीपीआर बनने के बाद इस परियोजना की लागत बढ़कर करीब 5393 करोड़ रुपए बताई जा रही है। स्टील, सीमेंट, मशीनरी और तकनीकी उपकरणों की महंगाई भी लागत बढ़ाने में प्रमुख कारण बनी है।

... और रेलवे यह कहता है

गेज कन्वर्जन की परियोजना कुल 160 किलोमीटर लंबी है, पर रेलवे के निर्माण रिकॉर्ड बताते हैं कि लगभग 60 किमी हिस्सा आज भी पूर्ववत् ही पड़ा है। यानी यहां॒ पत्ता भी नहीं हिला। वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण-पत्र हासिल करना इस प्रोजेक्ट की एक बड़ी लंबी लड़ाई रही, लेकिन एनओसी जारी होने के बाद भी उम्मीद के मुताबिक गति नहीं दिख रही है।

सबसे ज्यादा दिक्कतें महू-पातालपानी के आगे

सबसे ज्यादा दिक्कतें महू-पातालपानी के आगे से मुख्तियारा तक आ रही हैं। जंगल और पहाड़ी वाले इस हिस्से में ‘इन्तजार’ पनपता ही दिख रहा है। अभी भी कुछ टेंडर होना बाकी हैं। कुछ तकनीकी दिक्कतें भी हैं। इस बीच, घाट सेक्शन में कई बार डिजाइन बदले गए। दो ठेकेदार कंपनियां बीच में काम छोड़कर जा चुकी हैं।

संघर्ष समाप्ति की घोषणा के साथ तेजी से काम की उम्मीद

अफसर और जनप्रतिनिधि अब तमाम ‘संघर्ष समाप्ति’ की घोषणा के साथ तेजी से काम की उम्मीद जगा रहे हैं। हालांकि इन सबके बीच अब गेज कन्वर्जन के साथ डबलिंग (दो ट्रैक की तैयारी) का नया विचार इस प्रोजेक्ट के विलंब को डबल ना कर दे, यह नया और बड़ा प्रश्न है।

और असर देखिए...

--छोटी लाइन बंद, छोटे कस्बे ठप... स्थानीय अर्थव्यवस्था को झटका

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--पहले नैरो गेज लाइन मोरटक्का, सिमरोल, सनावद, बगलामुखी के स्थानीय बाजारों को सहारा देती थी। ट्रेन बंद होने के बाद यह हुआ-

--छोटे व्यापारी और विद्यार्थियों की आवाजाही प्रभावित हुई।

--बस किराए में कई रूटों पर 2 से 3 गुना वृद्धि हुई।

--गांवों से शहरों तक रोजगार और सामान लाने-ले जाने की प्रक्रिया महंगी हो गई।

क्या कहते हैं जिम्मेदार... इंदौर सांसद शंकर लालवानी से सीधी बात

Q. क्या आपको लगता है कि 2028 तक इंदौर- खंडवा ब्रॉडगेज प्रोजेक्ट पूर्ण हो पाएगा?

A.उम्मीद तो की जाना चाहिए। हालांकि यह सही है कि विलंब काफी हो चुका है। 2028 नहीं तो उसके एक-डेढ़ साल बाद तक तो निश्चित रूप से ट्रेन इस रूट पर दौड़ने लगेगी।

Q. वन विभाग की एनओसी के बाद अब सभी बाधाएं क्या सचमुच खत्म मानी जाए?

A. बिल्कुल। सरकार की तरफ से सब क्लीयर है। जैसे-जैसे काम होता जाएगा, फंड भी मिलता जाएगा। कुछ टेंडर होना है, वह भी जल्दी हो जाएंगे। कुछ तकनीकी दिक्कतें हैं। हालांकि रेलवे अफसरों ने तेजी से काम का भरोसा दिलाया है।

Q.क्या गेज-कन्वर्जन के साथ डबलिंग की भी योजना है?

A. हां, ऐसे प्रयास हैं और ऐसा किया जाना चाहिए। भविष्य में जब इंदौर-मनमाड़ जैसी अन्य परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी, तो यह लाइन उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक महत्वपूर्ण और सीधी रेल लिंक बन जाएगी, जिससे यात्रा की दूरी और समय दोनों कम होंगे।

Q. क्या इससे विलंब और नहीं बढ़ जाएगा?

A.फिलहाल सिर्फ इसकी तैयारी की बात है। दूसरा ट्रैक बाद में भी डाला जा सकता है। सुरंग-ओवरब्रिज वगैरह के काम बार-बार नहीं खोले जा सकते, इसलिए ऐसा सोचा जा रहा है। इससे कोई बहुत विलंब नहीं होगा।

अब काम तेजी से हो रहा है

अब काम तेजी से हो रहा है। कोई बाधा नहीं है। पथरीली जमीन होने से तकनीकी समस्याएं आती हैं। समय पर काम पूरा होने की उम्मीद है।

- खेमराज मीना, रेलवे पीआरओ, इंदौर