
पत्रिका फाइल फोटो
Rajasthan News: राजस्थान के चर्चित आनंदपाल सिंह एनकाउंटर मामले में पुलिस को बड़ी कानूनी जीत मिली है। पुनरीक्षण न्यायालय ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस फैसले को पूरी तरह पलट दिया, जिसमें सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का संज्ञान लिया गया था। अदालत ने स्पष्ट रूप से माना कि पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी निभा रहे थे और यह एनकाउंटर सेल्फ डिफेंस में हुआ था।
कोर्ट ने कहा कि मृतक आनंदपाल ने खुद ऑटोमैटिक हथियार से फायरिंग की थी, जिससे पुलिस टीम का एक सदस्य गंभीर रूप से घायल हो गया। इस फैसले से राजस्थान पुलिस का मनोबल बढ़ा है, जबकि आनंदपाल के परिजनों ने हाई कोर्ट में अपील करने की बात कही है।
घटना 24 जून 2017 की है, जब चूरू जिले के मालासर गांव में एक खेत के मकान में पुलिस ने कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह को घेर लिया। आनंदपाल राजस्थान का मोस्ट वांटेड अपराधी था, जिस पर हत्या, लूट और फिरौती जैसे दर्जनों मामले दर्ज थे। पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और आरएसी की टीम ने हरियाणा से आनंदपाल के भाई रुपींद्र पाल सिंह और उसके करीबी दोस्त देवेंद्र सिंह को पहले गिरफ्तार किया। इनकी निशानदेही पर ही टीम मालासर पहुंची।
एनकाउंटर के समय रुपींद्र पाल और देवेंद्र मौके पर मौजूद थे। पुलिस ने आनंदपाल को सरेंडर करने के लिए ललकारा, लेकिन उसने AK-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें आनंदपाल मारा गया। इस मुठभेड़ में कमांडो सोहन सिंह की रीढ़ की हड्डी में गोली लगी, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। तत्कालीन इंस्पेक्टर सूर्यवीर सिंह राठौड़ को भी चोटें आईं। पुलिस का दावा था कि यह एनकाउंटर ड्यूटी के दौरान हुआ और सेल्फ डिफेंस में गोलियां चलाई गईं।
मामला तब तूल पकड़ा जब आनंदपाल के परिजनों ने इसे फेक एनकाउंटर बताया। जुलाई 2024 में एसीजेएम कोर्ट ने सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का संज्ञान लेते हुए केस चलाने के आदेश दिए। इनमें तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ, कुचामन सर्किल के डीएसपी विद्या प्रकाश, एसओजी इंस्पेक्टर सूर्यवीर सिंह राठौड़, आरएसी हेड कांस्टेबल कैलाश, कांस्टेबल धर्मवीर, सोहन सिंह और धर्मपाल शामिल थे। परिजनों का आरोप था कि पुलिस ने आनंदपाल को सरेंडर के बाद मार डाला।
पुलिस की ओर से पुनरीक्षण याचिका दाखिल की गई। वरिष्ठ अधिवक्ता विनीत जैन, राहुल चौधरी और उमेशकांत व्यास ने कोर्ट में मजबूत दलीलें पेश कीं। उन्होंने सीबीआई की वैज्ञानिक जांच और फॉरेंसिक सबूतों का हवाला दिया, जिसमें साबित हुआ कि आनंदपाल ने खुद फायरिंग की और उसी की गोली से सोहन सिंह घायल हुए। कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते समय इस निर्णायक तथ्य को नजरअंदाज किया।
दूसरा बड़ा बिंदु गवाहों का था। आनंदपाल का भाई रुपींद्र पाल ने जांच के दौरान खुद को चश्मदीद नहीं बताया, लेकिन करीब छह साल बाद आरोप लगाए। ये आरोप बिना सबूत के थे और सीबीआई जांच ने इन्हें झूठा साबित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोनों तरफ से फायरिंग हुई, फिर केवल पुलिस पर हत्या का आरोप लगाना तथ्यों से परे है।
वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र किया, जिसमें कहा गया कि पुलिसकर्मी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करते हैं। उनके खिलाफ बिना गहन जांच के संज्ञान लेना मनोबल गिराता है। पुनरीक्षण कोर्ट ने सहमति जताते हुए मजिस्ट्रेट का फैसला रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए।
Updated on:
13 Nov 2025 01:36 pm
Published on:
13 Nov 2025 01:26 pm
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