
पुस्तक 'गीता विज्ञान उपनिषद' पर संवाद
Patrika National Book Fair: जयपुर: भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि जीवन में मोह नहीं छूट सकता। मन की व्याकुलता को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि उसे परिष्कृत करना है और उसकी लंबी प्रक्रिया है।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु प्रो. रामसेवक दुबे ने गीता के विज्ञान भाव का जिक्र करते हुए कहा कि आज कॉमर्स वाले भी गीता के प्रबंधन को मान्यता देते हैं। आज परिवार, विश्वविद्यालय और संस्थान में स्वजन लड़ने को सामने खड़े हैं। गीता ही है, जिसमें इन परिस्थितियों में अर्जुन की तरह हमारे मन के ऑटोमेटिक लॉक को खोलने की ताकत है।
पत्रिका नेशनल बुक फेयर में शनिवार को पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तक 'गीता विज्ञान उपनिषद' पर संवाद किया गया। इस दौरान पुस्तक के लेखक गुलाब कोठारी ने भी सवालों के जवाब देकर लोगों की जिज्ञासाओं को शांत किया।
प्रो. मिश्र ने उपनिषदों की गाय से तुलना करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने इस मामले में गाय दोहने जैसा कार्य किया, इसी कारण गीता सभी उपनिषदों का सार है। गीता को ज्ञानपरक ग्रंथ माना गया। पं. मधुसूदन ओझा ने अध्ययन-विवेचन के आधार पर बताया कि यह केवल ज्ञान नहीं, बल्कि विज्ञान है।
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने गहन अध्ययन कर इसे सरलता से लोगों को समझाने का कार्य किया। गीता विज्ञान उपनिषद में सरलता को कहीं छोड़ा नहीं गया है। इस तरह के ग्रंथों का अध्ययन-अध्यापन भारतीय परंपरा के लिए महत्वपूर्ण है, जो हमें जड़ों से जोड़ता है। भाषा और विचार की गंभीरता से जो गीता तक नहीं पहुंच सकते, उनके लिए गीता विज्ञान उपनिषद बहुत उपयोगी है।
प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालयों दर्शन पढ़ने वाले घट रहे हैं और विज्ञान पढ़ने वाले बढ़ रहे हैं। ऐसे में गीता विज्ञान उपनिषद की उपयोगिता और बढ़ जाती है। गीता, उपनिषदों में बताई जाने वाली कहानियां इस बात को सिखाती हैं कि ज्ञान एक सरल प्रक्रिया नहीं है। इसे समझने के लिए सही दृष्टिकोण चाहिए।
गुलाब कोठारी : सबसे पहले कृष्ण का जीवन देखना होगा, उनके पास क्या नहीं था। हमने गीता को एक विषय बना लिया है, जो दुःखद है। विषय के रूप में पढ़कर इसे समझ नहीं सकते। जब आप इसे पढ़ते हैं तो कृष्ण कहते हैं मैं ही वासुदेव हूं, मैं ही अर्जुन हूं।
जब हम स्वयं को कृष्ण समझेंगे तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं रह जाएगा और कोई शास्त्र इतना विस्तार से इस विषय पर नहीं समझाता। जीव निर्माण के लिए मां बाहर से कोई सामग्री नहीं ला रही। चाहे मां की मां हो या उनकी मां, मां एक ही है। इसी तरह पिता भी एक ही हैं। यह भी समझना होगा कि पुरुष और स्त्री अलग-अलग नहीं हैं।
प्रो. सच्चिदानंद मिश्र : परिवार के प्रति हमारी जिम्मेदारी होती है और जन्म से ही हम पर तीन तरह के ऋण होते हैं, कर्तव्य का निर्वहन कर उन ऋणों को चुकाना होता है।
गुलाब कोठारी : भक्ति कर्म से अलग नहीं है। भक्ति को कर्म मानने पर यह प्रश्नः स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। आज हम जैसा अन्न खा रहे हैं, वैसा ही मन बनेगा और यह सब हम पर निर्भर है।
प्रो. सच्चिदानंद मिश्र : जब हम चिड़ियाघर में शीशे के अंदर बंद जहरीले सांप के सामने खड़े होते हैं, तो उसके फुफकार मारने पर पीछे हो जाते हैं। हालांकि, पता होता है वह हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। अर्जुन की भी यही समस्या थी, वे बार-बार मोह में पड़ जाते थे।
Updated on:
23 Nov 2025 08:44 am
Published on:
23 Nov 2025 08:43 am
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