
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तक ‘कृष्ण तत्व की वैज्ञानिकता’ पर विद्वानों ने रखे विचार
Patrika National Book Fair: जयपुर: जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में आयोजित नौ दिवसीय पत्रिका नेशनल बुक फेयर का रविवार को समापन हुआ। सेंट्रल हॉल में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तक ‘कृष्ण तत्व की वैज्ञानिकता’ पर विद्वानों ने विचार रखे।
कार्यक्रम में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी भी मौजूद रहे। वक्ता के रूप में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष शास्त्री कोसलेन्द्रदास व वेद विभाग के प्रो. शंभु कुमार शामिल हुए।
शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने पुस्तक की दार्शनिक दृष्टि से व्याख्या करते हुए कहा कि कृष्ण हर जगह हैं और वही इस ब्रह्मांड की चेतन शक्ति के रूप में हमें सीख देते हैं। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं और बुद्धि के बिना ज्ञान पूर्ण नहीं है। विद्या का फल विवाद नहीं है, विद्या का फल विवेक है। पुस्तक इसी दिव्य सीख को आधुनिक भाषा में समझाने वाली कृति है, जिस ब्रह्मांड में हम सांस लेते हैं, उसके कण-कण में कृष्ण विद्यमान हैं।
प्रो. शंभु कुमार झा ने ‘कृष्ण-तत्व की वैज्ञानिकता’ पुस्तक को ऐसी चिंतनधारा बताया, जिसका मूल स्रोत स्वयं श्रीकृष्ण हैं। उन्होंने कहा कि यह ग्रंथ पांच अध्यायों में रचा गया है। इसकी संरचना में वैदिक विज्ञान की अवधारणा ‘पंचीकरण’ को केंद्र में रखा गया है। आज पृथ्वी पर बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं संकेत देती हैं कि पंचतत्वों का संतुलन बिगड़ने पर सृष्टि किस प्रकार संकट में पड़ सकती है।
उन्होंने कहा कि अर्जुन को विराट स्वरूप में जिन कृष्ण का दर्शन हुआ, वही ब्रह्मांडीय ऊर्जा इस ग्रंथ की आधारभूमि है। कृष्ण कहते हैं कि मुझे समझोगे तो स्वयं को भी समझ पाओगे। सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार वर्मा ने किया।
सवाल: पुस्तक में कृष्ण को अलग-अलग रूप में क्यों परिभाषित किया गया है?
गुलाब कोठारी: ‘कृष्ण-तत्व’ सृष्टि का प्रथम आधार ‘अव्यय भाग’ है। वह चेतन सत्ता जो न जन्म लेती है न नष्ट होती है। इसी स्तर पर ‘महामाया’ का वर्णन आता है, जो अदृश्य होते हुए भी प्राण-ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में क्रियाशील है।
उन्होंने कहा कि सृष्टि को देखने, समझने और अनुभव करने के लिए दृष्टि का होना अनिवार्य है, क्योंकि ब्रह्म एक होते हुए भी विभिन्न माता-पिता के रूपों से प्रकट होकर जन्म जैसा प्रतीत होता है। संसार में ब्रह्म और माया एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। कृष्ण-तत्व का यही सार है कि जीवन में चेतना का प्रकाश बढ़ाते ही भ्रम, भय और अज्ञान की परतें सहज ही विलीन होने लगती हैं।
सृष्टि में केवल ब्रह्म और माया है, यह दोनों कभी नष्ट नहीं होते। पश्चिम का विज्ञान मानता है कि जगत में केवल पदार्थ और ऊर्जा है। इनका स्वरूप परिवर्तित होता है। यह समाप्त नहीं होते। अगर हमारे शास्त्रों में वर्णित संकेतों को ठीक ढंग से समझा जाए यानी डी-कोड करके पढ़ा जाए तो हमें उनकी वैज्ञानिकता का पता चल सकता है।
बुक फेयर का मुख्य प्रायोजक महात्मा ज्योतिराव फुले यूनिवर्सिटी रही। नॉलेज पार्टनर राजस्थान नॉलेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (आरकेसीएल) और आईआईएस (डीड टू बी यूनिवर्सिटी) जयपुर एसोसिएट स्पॉन्सर रही। इवेंट मैनेजमेंट आइएफएफपीएल की ओर से किया गया।
सत्र में महात्मा ज्योतिबा फुले यूनिवर्सिटी के चेयरपर्सन निर्मल पंवार मौजूद रहे। उन्होंने यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की दो पुस्तकों को शामिल करने की घोषणा की।
Updated on:
24 Nov 2025 10:40 am
Published on:
24 Nov 2025 10:38 am
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