मरुधरा की धरती पर वर्षों तक अकाल, सूखा और पलायन जैसे शब्द ही जीवन का पर्याय बने रहे, लेकिन अब रेगिस्तान की यह तस्वीर बदल चुकी है। यहां जल के रूप में च्लक्ष्मीज् अवतरित हुई है। कभी धूलभरी आंधियों और झाड़-झंखड़ों से ढके रहने वाले इस क्षेत्र में अब भू-जल की धारा बहने लगी है। यही जल अब समृद्धि का प्रतीक बन चुका है। किसानों की मेहनत और नलकूप आधारित कृषि ने इस धरती की तकदीर ही पलट दी है।
भू-जल की उपलब्धता ने सिर्फ कृषि ही नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दी है। खेतों में उत्पादन बढऩे के साथ ही गांवों में कुटीर उद्योगों की बहार आ गई। मोटर पंप रिपेयरिंग, स्प्रिंकलर मरम्मत, खाद-बीज की दुकानें और कृषि उपकरणों की मांग ने ग्रामीण बाजारों को जीवंत बना दिया है। कभी सुनसान गांव अब छोटे कस्बों का रूप ले रहे हैं। ग्रामीण अंचलों के बुजुर्ग आज भी वे दिन याद करते हैं जब जैसलमेर को च्काले पानीज् जैसी उपमा दी जाती थी। अब वह अंधकारमय पहचान हरियाली में बदल गई है।
कभी यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पशुपालन पर निर्भर थी। अकाल और सूखे ने लोगों को खानाबदोश बना दिया था। रोज़ी-रोटी के लिए पलायन सामान्य बात थी। स्वतंत्रता के बाद पर्यटन से थोड़े बदलाव के संकेत मिले, पर वह शहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा। ग्रामीण जीवन में असली परिवर्तन तब आया जब प्रशासन ने अस्सी के दशक में भू-जल आधारित कृषि को प्रोत्साहित किया। चांधन, राजमथाई और ओला क्षेत्र से शुरू हुई इस पहल ने पूरे जिले का चेहरा बदल दिया। कुएं खुदवाने की पहल ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाया और अकाल के भय को मिटा दिया।
नलकूप आधारित कृषि ने मरुप्रदेश का पर्यावरणीय परिदृश्य पूरी तरह बदल दिया है। अब जहां कभी रेत के धोरे और कंटीली झाडिय़ां नजर आती थीं, वहां सरसों, जीरा, मूंगफली और चने की फसलें लहलहा रही हैं। नकदी फसलों के उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि हुई है और जीवन स्तर सुधरा है। अब यह क्षेत्र केवल रेगिस्तान नहीं, बल्कि मेहनत, नवाचार और प्रकृति की कृपा का अद्भुत उदाहरण बन गया है।
Published on:
12 Oct 2025 11:34 pm
बड़ी खबरें
View Allजैसलमेर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग