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870 वर्ष से बेजोड़ स्थापत्य की मिसाल बना हुआ है सोनार दुग… सालाना 10 लाख लोग आ रहे निहारने

करीब 870 वर्ष से पीत पाषाणों से निर्मित और बेजोड़ स्थापत्य शिल्प के लिए दुनिया भर में मशहूर जैसलमेर के बुजुर्ग किले का आकर्षण आज भी जवां है, जिसे निहारने हर वर्ष 10 लाख से अधिक देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं।

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करीब 870 वर्ष से पीत पाषाणों से निर्मित और बेजोड़ स्थापत्य शिल्प के लिए दुनिया भर में मशहूर जैसलमेर के बुजुर्ग किले का आकर्षण आज भी जवां है, जिसे निहारने हर वर्ष 10 लाख से अधिक देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। सोनार किले को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सामाजिक संगठन (यूनेस्को) की ओर से साल 2013 में विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया था। सोनार दुर्ग विश्व में उन चुनिंदा किलों में शामिल है, जिनके भीतर आज भी हजारों लोग रहते हैं और पारंपरिक जीवन शैली कायम है।

संघर्ष, समृद्धि और संस्कृति के संगम से भरा किले का इतिहास

वर्ष 1156 में महारावल जैसलदेव ने इस दुर्ग की स्थापना की थी और उनके बाद अन्य राजाओं ने समय-समय पर इस किले का निर्माण और विकास किया। ऐतिहासिक सोनार दुर्ग का इतिहास संघर्ष, समृद्धि और संस्कृति के अनूठे संगम से भरा है। सोनार दुर्ग की ऊंची प्राचीरें, 99 बुर्ज और घुमावदार गलियां स्थापत्य कला की मिसाल हैं।

चुनौतियां भी कम नहीं

यूनेस्को की मान्यता के बाद से किले के संरक्षण कार्यों में तेजी अवश्य आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बढ़ते पर्यटक दबाव और जल निकासी संबंधी चुनौतियों के कारण किले की संरचना को नियमित संरक्षण की जरूरत है।

  • विगत कुछ सालों की अवधि में किले को सबसे ज्यादा मार पानी के रिसाव से पड़ी है। निर्माण कार्यों की अनुमति दिए जाने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सख्त नियमों के चलते कई जरूरी कार्यों में बाधा पहुंचती रही है।
  • किले के भीतर पुरातात्विक नियमों का सख्ती से पालन, जल निकासी व्यवस्था में सुधार और पर्यटक संख्या के संतुलन जैसे कदम आवश्यक हैं।
  • करीब साढ़े 3 हजार की आबादी सोनार दुर्ग को जीवंतता प्रदान करती है और इस वजह से यह अन्य विश्व धरोहर स्थलों से विशिष्ट पहचान रखता है।

सिल्क रूट का था अहम ठिकाना

जैसलमेर दुर्ग का महत्व केवल स्थापत्य तक सीमित नहीं, बल्कि यह राजपूताना शौर्य, व्यापारिक समृद्धि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी प्रतीक रहा है। कभी सिल्क रूट का अहम केंद्र रहा यह दुर्ग मध्य एशिया से आने-जाने वाले काफिलों का महत्वपूर्ण ठिकाना था, जिसकी वजह से जैसलमेर व्यापार, कला और संगीत का बड़ा केंद्र बना।
फैक्ट फाइल -

  • 1156 में सोनार दुर्ग की स्थापना
  • 03 हजार से ज्यादा लोग निवासरत
  • 02 वार्डों में विभक्त है किला
  • 2013 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिलएक्सपर्ट व्यू: सैकड़ों वर्षों से अजेय है सोनार दुर्गपर्यटक स्वागत केन्द्र के सहायक निदेशक कमलेश्वरसिंह का कहना है कि यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल जैसलमेर का सोनार दुर्ग सुदृढ़ स्थापत्य की एक ऐसी मिसाल है, जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। दुर्ग में हजारों की संख्या में लोग निवास करते हैं। इतिहास साक्षी है कि कितने ही आक्रमणों के बावजूद यह दुर्ग अजेय बना रहा। आज भी इसके आकर्षण में कहीं कमी नहीं आई है। दुर्ग निर्माण में अनोखी इंजीनियरिंग को एक आश्चर्य की तरह देखा जाता है। दुर्ग की देखादेखी शेष जैसलमेर में भी सैकड़ों साल से पीले पत्थर पर दिलकश कारीगरी का काम किया गया। वर्तमान समय में भी भवन निर्माणों में दुर्ग का आर्किटेक्ट उदाहरण के रूप में काम आता है। सोनार दुर्ग जैसलमेर आने वाले सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इसका स्वर्णिम सौंदर्य हमें याद दिलाता है कि सभ्यताओं का इतिहास केवल संरचनाओं में नहीं, बल्कि उन संरचनाओं को जीवित रखने वाली संस्कृति, कला और लोगों में भी निवास करता है।