
जैसलमेर सोनार दुर्ग के अखे प्रोल...। दोनों ओर सडक़ों पर रखा गया सामान, सजावट के पाटे और रास्ता रोककर बनाए गए सेल्फी पाइंट। जहां सैलानियों को इतिहास की अनुभूति होनी चाहिए, वहां धक्का-मुक्की और अव्यवस्था का माहौल दिखता है।दृश्य 2: सोनार किले के भीतर बनी वाहनों की अघोषित पार्किंग...। इससे न केवल रास्ते सिकुड़ गए हैं, बल्कि भीड़ के बीच सैलानियों को दमघोटू भीड़ में आगे बढऩा पड़ रहा है। वाहनों की लंबी कतारों के बीच फोटोग्राफी तो दूर, कई पर्यटक खुद को भीड़ से अलग होकर आगे बढ़ते हैं।
दृश्य 3 —बेरीसाल बुर्ज के पास घाटी पर दुकानदारों ने सामान फैला दिए हैं। यहां रास्ता रोककर लगाई गई दुकानों और उनके आगे जमा भीड़ ने रास्ता पूरी तरह घेर लिया है। सैलानी एक-एक कदम बढ़ाकर खुद को मशक्कत करते हुए भीड़ से निकालते नजर आते हैं।
दृश्य 4 — सूरज प्रोल से आगे बढ़ते समय लोक कला के नाम पर भीड़ को रोकने का खेल चलता है। खतरे से अनजान सैलानियों की भीड़ एक जगह रुक जाती है, जिससे भगदड़ का खतरा बना रहता है। कोई नियंत्रण नहीं, कोई व्यवस्था नहीं। कुछ ही दूरी पर सुरक्षा के लिहाज से नियुक्त कार्मिक मौन मूक होकर यह नजारा देखते रहते हैं।स्वर्णनगरी में पर्यटन सीजन के उफान पर होने के दौरान इन दिनों सोनार दुर्ग पर रोजाना हजारों पर्यटक पहुंच रहे हैं। इनमें गुजरात से आने वाले पर्यटक सबसे ज्यादा हैं। भीड़ के कारण दुर्ग की घाटियां सिमट गई हैं। जिम्मेदारों ने आवागमन को सुगम बनाने के लिए घाटियों को दो भागों में बांटने की औपचारिकता निभा दी, लेकिन अस्थायी कब्जों और बाहर से आए व्यापारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
गुजरात से आए पर्यटक गुंजन पटेल ने कहा- इतिहास देखने आए थे, पर हर कदम पर अव्यवस्था मिली। फोटो लेने की जगह नहीं। पैदल चलने के बाद भी परेशानी नहीं थम रही। अहमदाबाद की निधि जोशी ने कहा-इतनी दूर आए कि जैसलमेर की खूबसूरती देखें, पर यहां तो दम घुटने लगता है। न कोई दिशा बताने वाला, न कोई व्यवस्था। सूरत से आए परिवार प्रमुख अमृतलाल देसाई बोले-इतना प्रसिद्ध किला और इतनी लापरवाही... हम बच्चों को लेकर आए थे, लेकिन भीड़ में उन्हें संभालना ही मुश्किल हो गया।
सोनार किला हमारा घर है। हम सैलानियों को यहां आकर खुश देखना चाहते हैं, लेकिन वे व्यवस्थाओं के बीच परेशान हो रहे हैं। पर्यटकों की भीड़ के बीच जगह-जगह घाटियों पर अस्थाई अतिक्रमण होने से दिन भर जाम की स्थिति रहती है। पर्यटक यहां शांति व सुकून के पल बिताने आते हैं, यहां अव्यवस्थाओं से वे मायूस होकर लौटते हैं।-विमल गोपा, दुर्गवासी, जैसलमेरसवाल- जिम्मेदार चुप क्यों... आखिर मजबूरी क्या है?जिम्मेदारों ने तिपहिया और दुपहिया वाहनों की एंट्री रोक दी है, लेकिन घाटियों पर बने अवैध कब्जे नहीं हटाए।
सवाल यही है — जब खतरा साफ नजर आ रहा है, हादसे की आहट सुनाई दे रही है, तो जिम्मेदार अनदेखी क्यों कर रहे हैं? आखिर मजबूरी क्या है?
Published on:
25 Oct 2025 11:28 pm
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