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नेशनल लेवल पदक जीते फिर लगी सरकारी नौकरी, पति को भी ऐसे बढ़ाया आगे, प्रेरणादायक है झुंझुनूं के युवाओं की कहानी

Inspirational Story: कई स्वस्थ्य व्यक्ति भी छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेते हैं। कभी खुद को तो कभी भाग्य को कोसने लगते हैं। जिले में कई युवा ऐसे हैं, जो दिव्यांगता को हराकर समाज को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं। जिले में कई दिव्यांग ऐसे हैं जो हमेशा सकारात्मक रहे।

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International Day of Persons With Disabilities: झुंझुनूं के बुहाना के उदामांडी गांव की बीना कुमारी बचपन से दिव्यांग है। लेकिन परिजनों ने हमेशा सकारात्मक रहना सिखाया। शादी के बाद काम काज बढ़ गया, लेकिन खेल मैदान पर जाना जारी रखा। पहले वह एथलेटिक्स मेें थी, लेकिन ससुराल में एथलेटिक्स के अच्छे मैदान नहीं होने के कारण वॉलीबॉल खेल चुना। अब पैरा सीटिंग वॉलीबॉल में वर्ष 2017, 21 व 22 में लगातार नेशनल लेवल पर पदक जीत रही है।

साथ ही अपनी टीम को स्वर्ण पदक जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। खेल कोटे से उद्योग विभाग में सरकारी नौकरी लग गई। इसके बाद दिव्यांग पति विकास को प्रेरित किया। वॉलीबॉल के गुर सिखाए। विकास भी पैरा सीटिंग वॉलीबॉल में नेशनल लेवल पर कांस्य पदक जीत चुके। अब बीना अन्य खिलाडि़यों के लिए प्रेरक का कार्य कर रही है।

नेशनल स्तर पर ऐसे बनाई पहचान

राजस्थान के झुंझुनूं जिले की पूनम चौधरी ने अपने जीवन की कठिनाइयों को चुनौती बना कर ताइक्वांडो में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। पूनम के बचपन से दोनों हाथों में पूरी दस अंगुलियां नहीं थीं, लेकिन इससे उनकी हिम्मत और जज्बा कम नहीं हुआ। वो नेशनल लेवल पर कई पदक जीत चुकी है।

उदावास गांव की रहने वाली पूनम चौधरी के बचपन से दोनों हाथों में दस अंगुलियां नहीं है। उसने बताया कि मां सुलोचना, पिता सुरेंद्र सिंह जाखड़ तथा कोच सुभाष योगी और संगीता ने प्रेरित किया और ताईक्वांडो सिखाया। अब वह नेशनल लेवल पर पदक जीत रही है। अब तक वह तीन बार नेशनल खेल चुकी।

सुरेश कुमार: बचपन में कोई साथ नहीं खिलाता था, अब दे रहे ट्रेनिंग

खेतड़ी के पास सुनारी गांव के रहने वाले सुरेश कुमार चौधरी पुत्र बहादुर सिंह ने बताया कि बचपन में दिव्यांगता के कारण कोई अपने साथ नहीं खिलाता था। कहते थे यह कैसे खेलेगा। मां व पिता कहते थे ऐसी बातों को अनसुना करो और आगे बढ़ो। इस मूल मंत्र को अपनाया। पढाई में ध्यान दिया। खेल मैदान पर भी मेहनत की। बेंगलुरु में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में उन्होंने कांस्य पदक जीता। अब खेल कोटे से जिला कलक्ट्रेट में सरकारी नौकरी कर रहे हैं। सुरेश अब दूसरे खिलाडि़यों को जिला स्वर्ण जयंती स्टेडियम में निशुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं।


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