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यूपी में अखिलेश कांग्रेस को सिर्फ इतनी ही सीट देंगे? बिहार की हार ने कम किया कांग्रेस का दबदबा

बिहार में कांग्रेस की हार के बाद यूपी में सीटों का फॉर्मूला बिगड़ता दिख रहा है। सपा 340 सीटों पर लड़ने को तैयार है। कांग्रेस सभी जिलों में दावेदारी ठोके बैठी है।अब समझौता होगा या टकराव बढ़ेगा। यही सवाल बना है।

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राहुल गाँधी और अखिलेश यादव फोटो सोर्स X अकाउंट

राहुल गाँधी और अखिलेश यादव फोटो सोर्स X अकाउंट

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन ने यूपी की राजनीति में नए समीकरण खड़े कर दिए हैं। बिहार में 61 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस केवल छह सीटें ही जीत सकी और उसका स्ट्राइक रेट 10 प्रतिशत के आसपास रहा। विपक्षी गठबंधन में उसकी इस कमजोर स्थिति ने यूपी में सपा की रणनीति को सीधे प्रभावित किया है। क्योंकि यहां भी महागठबंधन को भाजपा-एनडीए के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरना है।

सपा का मुख्य वोट आधार एम-वाई समीकरण रहा है। ठीक वैसे ही जैसे बिहार में राजद का। वहीं कांग्रेस के पास यूपी में कोई ठोस और स्थायी जनाधार मौजूद नहीं है। यही वजह है कि सपा किसी बड़े राजनीतिक जोखिम से बचना चाहती है। सीटों का बंटवारा अपने पक्ष में रखने की तैयारी में है।

कांग्रेस प्रदेश के सभी 75 जिलों में एक सीट पर चुनाव लड़कर अपनी मौजूदगी दर्ज करना चाह रही

सपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पार्टी यूपी की 403 सीटों में से लगभग 340 सीटों पर खुद मैदान में उतरने का प्लान तैयार कर चुकी है। ऐसे में सहयोगी दलों को कुल मिलाकर 60–63 सीटों से ज्यादा देने का सवाल ही नहीं उठता। इसके उलट कांग्रेस पूरे प्रदेश के 75 जिलों में कम से कम एक-एक सीट पर दावेदारी जताकर अपनी मौजूदगी मजबूत करना चाहती है।

पिछले चुनाव में जहां सपा ने सीटें जीती वह सीट कैसे दे पाएगी

मगर सीटों की यह मांग कई जगहों पर टकराव पैदा करती है। उदाहरण के तौर पर आजमगढ़, अम्बेडकरनगर, कौशाम्बी और शामली की सभी सीटें पिछली बार सपा ने जीती थीं। इसलिए इन जिलों में कांग्रेस को जगह देना सपा के लिए आसान नहीं है। इसी तरह अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों की 10 विधानसभा सीटों पर भी कांग्रेस लड़ना चाहती है, जबकि इनमें भी कई सीटों पर सपा के विधायक हैं।

यूपी में कांग्रेस की क्षमता मोलभाव करने की नहीं

पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने रालोद और सुभासपा समेत कई छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था। और लगभग 50 सीटें सहयोगियों को दी थीं। शिवपाल यादव की पार्टी अब सपा में विलय हो चुकी है। जबकि अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल के हालिया बयानों से गठबंधन की स्थिति स्पष्ट नहीं है। कुल मिलाकर, बिहार में कांग्रेस की गिरती ताकत ने यूपी की सियासत में इसकी मोल-भाव की क्षमता को सीमित कर दिया है। इसी कारण सपा इस बार सीटों को लेकर कड़ा रुख अपनाए हुए है। ताकि चुनावी मुकाबले में उसकी स्थिति मजबूत बनी रहे।