
nagar nigam meeting in katni
कटनी. स्टेशन चौराहा में नगर निगम द्वारा प्रमोटर खुशीराम एंड कंपनी से 2001 में बनवाया गया शॉपिंग कॉम्पलेक्स न सिर्फ खामियों से घिरा है बल्कि प्रमोटर व नगर निगम के बीच चल रहे विवाद के बीच सप्तम जिला न्यायाधीश ने अहम फैसला सुना दिया है। आर्बिटेटर द्वारा 2012 में दिए गए निर्णय अनुसार प्रमोटर को 22.60 करोड़ रुपए न चुकाने के चलते नगर निगम के दो बैंक खाते कुर्क किए जाएंगे। बैंक खातों की राशि प्रमोटर को दिलाई जाएगी। यह राशि अब 22.60 करोड़ नहीं बल्कि 2012 से अबतक 12 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ लगभग 60 करोड़ रुपए पहुंच गई है। न्यायालय के इस आदेश से हडक़ंप मच गया है। सप्तम जिला न्यायाधीश की अदालत के निर्णय अनुसार नगर निगम की बैंक में जमा राशि एफडीआर जिनका स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मुड़वारा का खाता क्रमांक-23900202407 व स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मुड़वारा का खाता क्रमांक 33619106717, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मुड़वारा कटनी का खता क्रमांक 31800803203, डीसीबी बैंक का डिपोजिट खाता क्रमांक 39425200002943 है। न्यायालय के अग्रिम आदेश तक उक्त एवार्ड के निष्पादन के लिए कुर्क किया जाना न्यायहित में उचित बताया गया है।
आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि पूर्व में पत्र प्रेषित कर निर्णीतऋणी को सूचना दी जा चुकी है लेकिन निर्णीतऋणी के द्वारा कोई जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई। ऐसे स्थिति में बैंक खातों को कुर्क किया जाना कहा गया है। डिक्रीधारी के द्वारा उक्त खातों की कुर्की के लिए इस संबंध में आदेश दिनांक से 5 कार्य दिवस के अंदर तलवाना अदा किए जाने पर उक्त खातों को कुर्क किए जाने के लिए कुर्की वारंट जारी करने कहा गया है। खाते कुर्क करने की जानकारी कलेक्टर को भेजने के साथ यह भी जानकारी देने कहा गया है कि निर्णीतऋणी की चल व अचल संपत्ति के फंड, जमा राशि, एफडीआर का विवरण जिसमें निर्णीतऋणीके अतिरिक्त किसी अन्य तृतीय व्यक्ति, संस्था का प्रत्यक्ष रूप से हित न हो आदि विवरण मांगा गया है। इसकी सूचना अपर मुख्य सचिव नगरीय प्रशासन विभाग को भी भेजने कहा गया है।
2012 में आर्बिटेटर ने फैसले में प्रमोटर को 22 करोड़ 60 लाख रुपए अदायगी का अवार्ड पारित किया। यह राशि नगर निगम को 6 माह में अदा करनी थी। राशि अदा नहीं की जाती है तो 12 प्रतिशत ब्याज के साथ राशि अदा करनी पड़ेगी। यह राशि अब लगभग 60 करोड़ रुपए राशि पहुंच गई है। अब इस मामले में जनता के खून-पसीने की कमाई जो टैक्स के रूप में जमा की जा रही है वह नगर निगम अब प्रमोटर को चुकाएगा। यह पूरा घटनाक्रम नगर निगम के अफसरों की गंभीर लापरवाही का जीवंत उदाहरण है, जिसमें वे समय पर अपनी बात नहीं रख पाए और निराकरण नहीं करा पाए।
जानकारी के अनुसार स्टेशन के बाहर लोक निर्माण विभाग के सरकारी रेस्ट हाउस की जमीन पर शॉपिंग काम्पलेक्स निर्माण के लिए वर्ष 2000 में योजना बनाकर टेंडर किया गया। यह काम खुशीराम एंड कंपनी को 2001 में काम दिया गया। जमीन कम दिए जाने, समय पर ड्राइंग डिजाइन आदि न दिए जाने के चलते ठेका कंपनी व नगर निगम में 2005 से विवाद शुरू हो गया। विवाद की वजह ठेकेदार को 10 हजार स्क्वायरफीट जमीन कम दी गई, कहीं और दिए जाने फाइल चली, मामला परिषद में भी पहुंचा, लेकिन जमीन नहीं मुहैया कराई गई। विवाद बढ़ता गया और नौबत यह आ गई। ड्राईंग डिजाइन न मिलने से प्रमोटर ने द्वितीय व तृतीय फ्लोर नहीं बनाया गया। नगर निगम के अधिकारी जानबूझकर यह नहीं दिए, क्योकि प्रमोटर ने क्षेत्रफल कटने का क्लेम किया था। नगर निगम ने आर्बिटेटर, हाइकोर्ट, जिला कोर्ट व सर्वोच्च न्यायालय से केस हार चुकी है।
वर्जन
न्यायालय के पास नगर निगम के खातों का जो ब्यौरा है वह संचित निधी का है, इसे कुर्क नहीं किया जा सकता। हमने न्यायालय में आपत्ति लगाई है। 24 नवंबर तक का न्यायालय से समय मांगा गया है। न्यायालय से कॉम्पलैक्स को ही कुर्क कराकर प्रमोटर की राशि अदायगी कराने निवेदन किया गया है।
शैलेष गुप्ता, उपायुक्त नगर निगम।
Published on:
19 Nov 2025 10:11 pm
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