
मंत्री के ‘मत्स्य बीज प्रवाह कार्यक्रम’ पर सवालों की बौछार (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group )
Fish Death Controversy: गोमती नदी में मत्स्य संवर्धन के उद्देश्य से आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम ने सोमवार को बड़ा विवाद खड़ा कर दिया, जब यह सामने आया कि जिन प्लास्टिक बैगों से मंत्री स्वयं मछलियों को नदी में प्रवाहित कर रहे थे, उनमें से बड़ी संख्या पहले से ही मृत थी। लखनऊ के लक्ष्मण झूला पार्क स्थित गोमती रिवर फ्रंट पर आयोजित इस कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने बताया कि पानी में छोड़ी गई कई मछलियां तुरंत ही नीचे चली गई और बिल्कुल नहीं हिलीं, जिससे स्पष्ट हो गया कि वे कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही मर चुकी थी।
सोमवार को हुए इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मत्स्य मंत्री संजय निषाद, प्रमुख सचिव मुकेश मिश्राम और विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए मंच सजा था, मीडिया मौजूद थी और फोटो शूट भी जमकर हुआ। मंत्री ने किनारे पर खड़े होकर और बाद में नाव में बैठकर भी मछलियों को नदी में छोड़ते हुए कई फोटो खिंचवाईं। लेकिन कार्यक्रम के कुछ मिनटों बाद ही नदी के किनारे मृत मछलियों का तैरना इस सजी-संवरी सरकारी तैयारियों पर भारी पड़ गया।
कार्यक्रम के दौरान मौजूद स्थानीय लोगों ने देखा कि पैकेटों से निकाली गई कई मछलियां पानी में जाते ही निष्प्राण होकर नीचे बैठ गईं। यह दृश्य देखकर उनमें नाराज़गी और हैरानी दोनों दिखाई दी। कुछ लोगों ने टिप्पणी की कि "अगर मछलियां पहले से ही मरी पड़ी थीं, तो यह कार्यक्रम महज दिखावा है।
वहीं, मौके पर मौजूद मछुआरों ने भी इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। उनका कहना था कि प्लास्टिक बैगों में मछलियों को कई घंटों तक बंद रखने से उनकी स्थिति खराब हो जाती है। मछुआरों के अनुसार, लगभग 10 प्रतिशत मछलियां बैग के भीतर ही मर जाती हैं। नदी में पहुंचने के बाद लगभग 50 प्रतिशत मछलियां गंदे पानी की वजह से कुछ घंटों में ही दम तोड़ देती हैं। कुल मिलाकर मुश्किल से 40 प्रतिशत ही जीवित रह पाती हैं। उनका कहना था कि “नदी का पानी इतना गंदा है कि स्वस्थ मछलियां भी मुश्किल से जीवित रह पाती हैं, और यहां तो जो मछलियां छोड़ी जा रही थीं, उनमें कई पहले से आधी मृत थीं।”
मत्स्य विभाग के अनुसार, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली उत्पादन बढ़ाने और नदी में मत्स्य संसाधनों को पुनर्जीवित करने के लिए इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंत्री संजय निषाद ने दावा किया कि पहले नदियों में छोड़ी गई मछलियों की मृत्यु दर लगभग 30 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 10 प्रतिशत रह गई है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मछुआरा समाज को मजबूत करने और प्रदेश में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है। इस तरह के कार्यक्रम उसी दिशा में एक प्रयास हैं।
मंत्री के दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच इस कार्यक्रम ने बड़ा अंतर उजागर कर दिया। मछुआरों और स्थानीय लोगों का मानना है कि पैकेटों में मछलियों को घंटों भर कर रखने से ऑक्सीजन बेहद कम हो जाती है। रिवर फ्रंट क्षेत्र में पानी अक्सर स्थिर रहता है, जिसमें ऑक्सीजन लेवल और भी कम होता है। नदी में गंदगी, सीवेज और कचरे के कारण जलीय जीवन पहले ही संकट में है। ऐसे में बिना वैज्ञानिक देखभाल के इस तरह मछलियां छोड़ना सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाता है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में भी देखा जा सकता है कि नदी के किनारे और बीचोंबीच कई मरी हुई मछलियां तैर रही हैं। वीडियो वायरल होने के बाद लोग सरकार के ऐसे आयोजनों को “दिखावटी कार्यक्रम” बताने लगे हैं।
और बार-बार मछलियों को पानी में छोड़ते हुए तस्वीरें खिंचवाना। इन सबने यह प्रभाव छोड़ा कि कार्यक्रम प्रचार प्राथमिकता को ध्यान में रखकर आयोजित किया गया, न कि वास्तविक संवर्धन को। इसी बीच जब पानी में उतराई हुई मछलियां नज़र आईं, तो लोगों ने कहा कि फोटो ज्यादा खींची गईं, मछलियों की हालत कम देखी गई।
कार्यक्रम में मौजूद विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी मछलियों की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं की। न पैकेटों की स्थिति देखी गई,न मछलियों की सक्रियता,न नदी के पानी की गुणवत्ता को ध्यान में रखा गया। पूरे कार्यक्रम के दौरान अधिकारी मंच और मीडिया समन्वय में अधिक व्यस्त नजर आए, जिससे यह सवाल उठे कि क्या ऐसे कार्यक्रम का उद्देश्य वास्तव में नदी में जीवन बढ़ाना है या महज सरकारी रिपोर्टों को भरना।
गोमती नदी की स्थिति पहले से ही खराब है।
इन सबकी वजह से नदी में जीव-जंतु तेजी से घट रहे हैं। ऐसे में यह कार्यक्रम बिना किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के केवल प्रतीकात्मक साबित हुआ।
Published on:
17 Nov 2025 11:28 pm
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