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किसानों के लिए वरदान बनेगी ‘ढैंचा’ की खेती, कम पानी में फसल तैयार, अगली उपज का सहारा

Dhaincha Farming: नागौर में गगवाना गांव के प्रगतिशील किसान दातार सिंह ने आठ बीघा खेत में ढैंचा बोकर 50 दिन बाद जुताई कर हरी खाद तैयार की। यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण से मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। पढ़ें श्रवण डिडेल की रिपोर्ट...

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नागौर

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Arvind Rao

Oct 02, 2025

Dhaincha Farming

Dhaincha Farming

Dhaincha Farming: राजस्थान के नागौर जिले में गांव गगवाना के प्रगतिशील किसान दातार सिंह ने टिकाऊ खेती और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनुकरणीय पहल की है। उन्होंने अपने आठ बीघा खेत में इकड़ (ढैंचा) की फसल बोई और करीब 50 दिन बाद ट्रैक्टर से जुताई कर इसे खेत में दबा दिया। इससे बनी खाद आगामी फसल के लिए वरदान साबित होगी।


इकड़ (ढैंचा) की हरी खाद मिट्टी के कटाव को रोकती है। रासायनिक खादों के उपयोग को कम करके जलाशयों और नदियों में होने वाले रासायनिक प्रदूषण को घटाती है। यह फसल नाइट्रोजन स्थिरीकरण के जरिए रासायनिक उर्वरकों की जरूरत कम करती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटता है। यह लाभकारी कीटों और सूक्ष्मजीवों के लिए अनुकूल वातावरण बनाकर जैव विविधता को बढ़ावा देती है।


किसान ले रहे हैं प्रेरणा


खानपुर मांजरागांव के किसान जयपाल सिंह ने दातार सिंह से प्रेरित होकर अपने खेत में इकड़ की बुवाई शुरू की। जयपाल कहते हैं, दातार सिंह की पहल ने मुझे भरोसा दिलाया कि यह फसल मिट्टी को ताकत देगी, पर्यावरण को स्वच्छ रखेगी और हमारे स्वास्थ्य को सुरक्षित रखेगी।

इकड़ (ढैंचा) जैसी फसलें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और किसानों की लागत घटाने का प्राकृतिक तरीका हैं। इसके पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो मिट्टी को 15-18 किलो नाइट्रोजन प्रदान करते हैं, जो 40 किलो यूरिया के बराबर है। इससे फसल स्वस्थ रहती है और खाद्य पदार्थों में हानिकारक रसायन नहीं मिलते।


इनका कहना है…


दातार सिंह ने बताया कि मथुरा निवासी सहकर्मी प्रभु दयाल सिंह ने इकड़ की खेती की सलाह दी और बीज उपलब्ध करवाए। किसान ने बताया, इकड़ की बुवाई आसान है। बीज को यूरिया की तरह बिखेरकर ट्रैक्टर से बोया जाता है।


कम बारिश में भी यह फसल तैयार हो जाती है। पहले 8 बीघा खेत के लिए 2-3 कट्टे डीएपी और 25 मजदूरों की जरूरत पड़ती थी। अब इकड़ से बनी हरी खाद 2-3 साल तक मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखेगी।
-शंकरराम सियाक, सहायक निदेशक, कृषि विस्तार, नागौर