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मूंग खरीद की टाल-मटोल में किसान बेहाल: तारीख तय नहीं होने से घाटे का सामना

सरकार ने पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की, लेकिन 10 फीसदी किसानों का भी नहीं हुआ रजिस्ट्रेशन, प्रति क्विंटल डेढ़ से दो हजार रुपए कम मिल रहे भाव

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नागौर. प्रदेश में सबसे अधिक मूंग उत्पादन करने वाले नागौर जिले के किसानों को सरकार की ढिलाई व उदासीनता के कारण एमएसपी से नीचे दामों पर मंडी में मूंग बेचनी पड़ रही है। चुनावों में एमएसपी पर मूंग खरीदने का दावा करने वाली सरकार ने अब तक एमएसपी पर खरीद की तारीख निर्धारित नहीं की है और न ही संबंधित अधिकारी संतोषजनक जवाब दे रहे हैं। हालांकि सरकार ने एमएसपी पर मूंग खरीदने के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया गत 18 अक्टूबर से शुरू कर दी, लेकिन सर्वर की गति धीमी होने व समय से पहले ही लिमिट पूरी बताकर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया बंद करने से जिले के 10 फीसदी किसानों के भी रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाए हैं।

करीब 4 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में मूंग बुआई

गौरतलब है कि नागौर जिले में इस बार करीब 4 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में मूंग की बुआई की गई थी, लेकिन पहले समय पर बारिश नहीं होने व फसल पकने के दौरान बेमौसम व अतिवृष्टि होने से ज्यादातर फसल खराब हो गई। किसानों के हाथ अब जो फसल लगी है, उसे बेचने पर भी उचित दाम नहीं मिल रहे हैं।

शुक्रवार को नागौर कृषि उपज मंडी में मूंग के भाव 4000 से 8200 रुपए प्रति क्विंटल रहे।किसानों का कहना है कि मूंग के औसत दाम 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल ही मिल रहे हैं। सामान्य मूंग, जो एमएसपी पर बिक सकता है, उसके भाव मंडी में 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं मिल रही है। ऐसे में किसानों को प्रति क्विंटल 1500 से 2000 हजार रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार ने रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया तो शुरू कर दी, लेकिन खरीद को लेकर अभी तक कोई तारीख तय नहीं की है, ऐसे में किसान मजबूरन मंडी में मूंग बेच रहे हैं, जबकि हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर में खरीद शुरू हो चुकी है। एक ही प्रदेश में किसानों के भेदभाव किया जा रहा है।

मंडी में बड़ी मात्रा में पहुंच रहा मूंग

मंडी सचिव रघुनाथराम सिंवर ने बताया कि गुरुवार को नागौर मंडी में मूंग की आवक 25 हजार कट्टे हुई, यानी साढ़े 12 हजार क्विंटल मूंग नागौर मंडी में एक दिन में आया। यह आवक आगामी दिनों में बढ़ने वाली है। इसके साथ मेड़ता मंडी में मूंग की आवक इससे भी अधिक हो रही है। किसानों के लिए मूंग को ज्यादा दिन तक घर में रखना संभव नहीं है, क्योंकि उन्हें रबी की बुआई के साथ खरीफ की सीजन के खाद-बीज के साथ ट्रैक्टर का भाड़ा भी चुकाना है।

देरी से खरीद का खमियाजा भुगतते किसान

हर वर्ष सरकार मूंग की खरीद देरी से शुरू करती है। इसका खमियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। एक तो खरीद देरी से शुरू होती है और फिर धीमी गति होने से जनवरी- फरवरी माह तक खरीद चलती रहती है, जिसके कारण कई किसान रजिस्ट्रेशन करवाने के बावजूद मजबूरी में मंडी में मूंग बेच देते हैं। खरीद में देरी से नम्बर आता है और फिर भुगतान में 15-20 दिन लगा देते हैं। यानी फसल निकालने के बाद छह महीने तक किसानों को भुगतान नहीं मिल पाता।