
अल-फलाह यूनिवर्सिटी (फोटो- मेजर जनरल राजू चौहान एक्स पोस्ट)
राजधानी दिल्ली में सोमवार को हुए धमाके की जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही है हरियाणा के फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। यह वहीं यूनिवर्सिटी है जहां इस धमाके कों अंजाम देने वाले डॉक्टरों का समूह पढ़ाता था। आज ही केंद्र सरकार ने इस यूनिवर्सिटी के फंडिंग के सोर्स का पता लगाने के लिए ईडी को गहन जांच के आदेश दिए है। जिसके बाद अब अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी जावेद अहमद सिद्दीकी भी जांच के घेरे में आ गए है।
सिद्दीकी को जांच के दायरे में इसलिए लाया गया है क्योंकि उन्होंने धमाके के तीन मुख्य संदिग्धों में से दो, डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन सईद को नौकरी पर रखा था। सिद्दीकी के विशाल कॉर्पोरेट नेटवर्क और एक पुराने आपराधिक मामले के चलते जांचकर्ताओं का ध्यान उसकी तरफ गया है। इस आपराधिक मामले में सिद्दीकी और उसके साथी जावेद अहमद पर धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात, जाली दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करने और आपराधिक साज़िश रचने जैसे आरोप लगे थे।
सिद्दीकी का जन्म मध्य प्रदेश के मऊ में हुआ है और वह नौ कंपनियों से जुड़े है। ये सभी नौ कंपनियां अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ी है जो कि अल फलाह यूनिवर्सिटी के कामकाज की देखरेख करता है। यह कंपनियां शिक्षा, सॉफ्टवेयर, वित्तीय सेवाएं, और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में काम करती है। इन कंपनियों को शक के घेरे में लाने वाली पहली बात यह है कि इनमें से अधिकांश का पंजीकृत पता एक ही है। यह पता दिल्ली के जामिया नगर इलाके में स्थित अल-फ़लाह हाउस का है।
इनमें से ज्यादातर कंपनियां 2019 तक सक्रिय थीं, जिसके बाद या तो वे बंद हो गईं या निष्क्रिय हो गईं। हालांकि अल-फलाह मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन एक सफलता साबित हुई। इसकी शुरुआत 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में की गई थी और अब यह एक 78 एकड़ के कैम्पस में संचालित होता है। लेकिन दिल्ली धमाकों के बाद यह मेडिकल फाउंडेशन शक के घेरे में आ गया और इसे नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल की जांच का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं बात की जाए सिद्दीकी के खिलाफ दर्ज पूराने मामले की तो यह दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। इसमें सिद्दीकी और अन्य लोगों पर फर्जी निवेश योजनाएं चलाने के आरोप लगाया गया था। आरोपों के अनुसार, इन योजनाओं के जरिए लोगों को बेवकूफ बना कर अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज में पैसा जमा कराया जाता था। इसके जरिए इन लोगों ने 7.5 करोड़ रुपये जमा किए जिन्हें बाद में आरोपियों के निजी खातों में ट्रांसफर कर दिया गया।
इसी मामले के चलते 2001 में सिद्दीकी को गिरफ्तार किया गया था और मार्च 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि फोरेंसिक सबूतों से यह साबित हुआ था कि कि शेयर सर्टिफिकेट्स पर किए गए हस्ताक्षर जाली थे। इसके बाद जब सिद्दीकी ने धोखाधड़ी कर के निवेशकों से हासिल किए पैसे लौटाने पर सहमती जताई तो 2004 में उसे जमानत मिली।
Updated on:
13 Nov 2025 05:08 pm
Published on:
13 Nov 2025 05:05 pm
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