
नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहा SIR का काम (Photo- X @jothims)
चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान इन दिनों विवादों में आ गया है। आरोप है कि काम के दबाव के चलते कई बूथ लेवल अफसरों (BLOs) ने जान दे दी। कहा जा रहा है कि 20 दिन में दो दर्जन से ज्यादा बीएलओ की मौत हुई है। ख़ुदकुशी करने वाले एक बीएलओ की जेब से एसआईआर के काम का दबाव होने के चलते जान देने संबंधी नोट मिलने की भी बात सामने आई है।
हमने कुछ बीएलओ से बात करने की कोशिश की तो वे बात करने से कतराए। एक महिला बीएलओ ने बस इतना कहा कि मेरा बच्चा दिन भर भूखा रह जाता है। उन्होंने इससे आगे कुछ भी बात करने से इनकार कर दिया। विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना रहा है। चुनाव आयोग ‘सब कुछ ठीक है’ का संदेश-संकेत दे रहा है। लेकिन क्या वाकई सब कुछ ठीक है? बीएलओ पर काम का दबाव है? या बीएलओ आराम से अपना काम कर रहे हैं? इन सवालों का जवाब कुछ तथ्यों की रोशनी में ढूंढने की कोशिश करते हैं।
चुनाव आयोग इन दिनों नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) करवा रहा है। प्रक्रिया की शुरुआत (4 नवंबर) के वक्त चुनाव आयोग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 321 जिलों के 1843 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 51 करोड़ मतदाताओं की सूची अपडेट होगी। 5.3 लाख से ज्यादा बीएलओ, 7.64 लाख बीएलए (बूथ लेवल एजेंट), 10448 ईआरओ/एईआरओ और 321 डीईओ इस काम में लगे हुए हैं। 27 नवंबर को चुनाव आयोग की ओर से जारी डेली बुलेटिन में बीएलओ की संख्या 5,32,828 और बीएलए की संख्या 11,40,598 बताई गई है।
चुनाव आयोग के मुताबिक इस प्रक्रिया के दौरान बीएलओ को प्रतेयक मतदाता के घर तीन-तीन बार जाना होगा। 51 करोड़ मतदाता हैं और एक घर में चार मतदाता मान लिए जाएं तो करीब 12.75 करोड़ घर जाना होगा। एक बीएलओ के हिस्से 239 घर आएंगे। 30 दिन के हिसाब से उन्हें रोज 8 घर जाना होगा। अगर तीन बार का हिसाब लगाएं तो कह सकते हैं कि 24 घर जाना पड़ेगा। अगर मान लिया जाए कि 50 फीसदी मतदाताओं (जो बहुत ज्यादा है) ने ऑनलाइन फॉर्म भरा तो भी रोज 12 का हिसाब बनता है। यह कम से कम तीन-चार घंटे का काम है।
एक बीएलओ के हिस्से में करीब 957 फॉर्म आते हैं। अगर मान लिया जाए कि 50 फीसदी लोगों ने ऑनलाइन फॉर्म भरा, फिर भी करीब 500 फॉर्म प्रत्येक बीएलओ को अपलोड करना होगा। मतलब रोज का 16 फॉर्म। ऑनलाइन भरे गए फॉर्म को भी बीएलओ को वेरिफाई करना होता है। कम से कम डेढ़-दो घंटे इसके भी मान लीजिए। मतलब सामान्य तौर पर एक बीएलओ को छह घंटे काम करना पड़ेगा।
एक व्यावहारिक सच यह है कि बीएलओ सभी मतदाताओं के घर नहीं जाते। वे बीएलए की मदद से मतदाताओं को फॉर्म भिजवा देते हैं और उन्हीं से भरा हुआ फॉर्म वापस भी ले लेते हैं। अगर बीएलए से बीएलओ का आधा काम हो जाता है, फिर भी उसे रोज तीन-चार घंटे निकालने होंगे। बीएलओ को यह वक्त अलग से देना होगा, क्योंकि उन्हें अपना मूल काम (अपने पदस्थापित विभाग का काम) प्रभावित किए बिना एसआईआर का काम करना है।
चुनाव आयोग के निर्देशों के मुताबिक कोशिश यही रहनी चाहिए कि एक बीएलओ को मतदाता सूची के एक भाग की ही जिम्मेदारी दी जाए। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि आदमी कम पड़ने पर एक बीएलओ को ज्यादा से ज्यादा मतदाता सूची के दो हिस्सों की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
शिक्षकों के लिए कहा गया है कि उन्हें बीएलओ कम से कम रखा जाए और अगर रखा जाए तो काम पर तभी लगाया जाए जब वह पढ़ाने का काम नहीं कर रहे हों या स्कूल में छुट्टी हो। बाकी सरकारी कर्मचारियों के लिए भी यह कहा गया है कि उनसे बीएलओ का काम इस तरह लिया जाए कि उनके मूल विभाग का काम प्रभावित न हो।
चुनाव आयोग के निर्देशों के मुताबिक बीएलओ को अपने हिस्से के मतदाताओं के इलाके में नियमित रूप से जाते रहना चाहिए और समय-समय पर मृत/बाहर चले गए/दो जगह वोटर लिस्ट में नाम रखने वाले मतदाताओं की जानकारी इकट्ठी कर मतदाता सूची को संशोधित करवाते रहना चाहिए। वोटर लिस्ट में शामिल ऐसे मतदाताओं की पहचान करना बीएलओ का मुख्य काम है।
चुनाव आयोग के किसी भी विशेष अभियान के दौरान मतदाताओं के घर-घर जाकर उसमें योगदान देना बीएलओ का कर्तव्य है।
बीएलओ का काम अपने क्षेत्र के मतदान केन्द्रों पर जाकर फोटो और लोकेशन अपलोड करना भी होता है।
सारे फॉर्म को गरुड़ ऐप के जरिए डिजिटाइज करना और किसी फॉर्म में किसी तरह की गड़बड़ी न जाए, यह सुनिश्चित करना भी बीएलओ का ही काम है।
मतदाताओं से फोटो, फोन नंबर, ई मेल जैसी जानकारियां इकट्ठी करना, मतदाता सूची का ड्राफ्ट जगह-जगह नोटिस बोर्ड पर लगाना, बूथ लेवल एजेंट के साथ तालमेल बिठाना, चुनाव पाठशाला से संबंधित काम करना, चुनाव के समय वोटर स्लिप बांटना भी बीएलओ की ज़िम्मेदारी है।
मतदान के दिन बुजुर्ग और दिव्याङ्ग मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने और वापस छोड़ने की व्यवस्था करना भी उन्हीं का काम होता है।
इसके अलावा, ईआरओ और आरओ जो भी काम सौंपें, उसे पूरा करना बीएलओ का दायित्व होता है।
बीएलओ राज्य सरकार के कर्मचारी होते हैं, लेकिन चुनाव आयोग के लिए काम करते हैं। बीएलओ चुनावी प्रक्रिया में सबसे नीचे के स्तर का अधिकारी होता है। इनकी नियुक्ति जिला निर्वाचन अधिकारी या डीईओ की मंजूरी पर ईआरओ (Electoral Registration Officer) करते हैं। करीब सौ करोड़ मतदाताओं की सूची को सटीक और सही बनाने में सबसे ज्यादा अहम रोल ईआरओ और बीएलओ का ही होता है।
चुनाव आयोग शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पटवारी, अमीन, लेखपाल, पंचायत सचिव, वीएलडबल्यू, बिजली विभाग का मीटर रीडर, डाकिया, एएनएम, स्वास्थ्य कर्मचारी, निगम के टैक्स वसूली करने वाले कर्मचारी, क्लर्क में से ही बीएलओ नियुक्त करने के लिए कहता है। अगर इनमें से उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिलता है तो केन्द्रीय कर्मचारियों, ग्रुप बी के अफसरों या रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों में से बीएलओ चुना जा सकता है।
चुनाव आयोग अब तकनीक का भी खूब इस्तेमाल कर रहा है और डिजिटाइजेशन पर भी जोर है। इस लिहाज से आयोग बीएलओ की ट्रेनिंग करवा रहा है। 26 मार्च, 2025 से यह ट्रेनिंग शुरू हुई है। अगले कुछ सालों में एक लाख बीएलओ (औसतन हर दस बूथ पर एक बीएलओ) को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया है।
ट्रेनिंग में बीएलओ को 1950 के जन प्रतिनिधित्व कानून, 1960 की निर्वाचक नियमावली (Elector Rules) और चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत इनके काम और जिम्मेदारियों के बारे में बताया जाएगा। साथ ही, यह भी बताया जाएगा कि इन्हें पूरा कैसे किया जाए। इससे संबंधित आईटी उपकरण चलाने व प्रक्रिया की जानकारी भी दी जाएगी। ये विधानसभा क्षेत्र के लेवल पर मास्टर ट्रेनर होंगे और देश भर बीएलओ को ट्रेनिंग देंगे।
Published on:
28 Nov 2025 06:00 am
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