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किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 53 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (05 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 53 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 53 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (05 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 53 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

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जयपुर

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Tasneem Khan

Nov 14, 2025

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 53 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (05 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 53 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 53 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (05 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 53 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

दोस्ती का जादू
प्रिंसी साहू, 12 वर्ष
प्रिया, चिंकी और गोलू घास के ढेर पर खेल रहे थे। वे लोग काफी समय तक खेल रहे थे। अचानक, उन्हें एक अजीब चीज़ दिखाई दी। वे तीनों उत्सुक हो गए और उस चीज़ को देखने के लिए पैरे के देर में खुदाई करने लगे। वे लोग काफी देर तक मेहनत कर रहे थे, आखिरकार कुछ देर बाद उन्हें एक पुराना खजाना मिला। वे तीनों खुशी से उछल पड़े और खजाने को आपस में बांटने का फैसला किया। लेकिन तभी उन्हें, एक अजीब सी आवाज सुनाई दी, वे तीनों को डर गए। लेकिन उनकी उत्सुकता ने उनके डर को दूर कर दिया। उन्होंने आवाज को पीछा किया और एक पुराने पेड़ के पास पहुंचे। वहां उन्हें एक छोटा सा दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजा खुला और एक छोटा सा जिन्न निकला। जिन्न ने कहा— तुम्हारी और उत्सुकता ने मुझे आजाद किया है। मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूं। तीनों दोस्तों ने एक साथ कहा— हमें एक ऐसा वरदान चाहिए जिससे हम अपने गांव के लोगों की मदद कर सकें। जिन्न नहीं मुस्कुराते हुए कहा- तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। तुम्हारे गांव में कभी भी पानी की कमी नहीं होगी और फैसले हमेशा अच्छी होगी। और ऐसा ही हुआ। गांव में पानी की कमी दूर हो गई, और फैसले अच्छी होने लगी। गांव के लोगों ने तीनों दोस्तों को धन्यवाद दिया और वे तीनों हमेशा के लिए अच्छे दोस्त बन गए।
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सच्ची खुशी का मतलब
अवनी मालवीय, 12 वर्ष

एक दिन तीन बच्चे खेतों के आसपास खेलने गए। वहां उन्हें सूखी घास का एक बड़ा ढेर दिखा। उन्होंने सोचा, चलो खेलते हैं। तीनों ने उसे पैर फिसल कर खूब हंसी मजाक किया। थोड़ी देर में उनके कपड़े गंदे हो गए, पर उनके चेहरे पर मुस्कान थी। रास्ते में जाते एक बूढ़े किसान में यह नजारा देखा और मुस्कुरा दिया। उसने कहा- बेटा यही होती है सच्ची खुशी। जब मन साफ हो और दिल हंसे। बच्चों में सोचा खुश रहने के लिए बड़ी चीजों की नहीं, सच्चे साथ और सरल पलों की जरूरत होती है।
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बूढ़ी दादी का प्यार
कनिष्का यादव, 12 वर्ष
मयंक, चिंकी और चीनू भाई—बहन थे। उन्हें भूसे पर खेलना अच्छा लगता था। वह खेलने के लिए अपनी मम्मी से पूछने के लिए गए। लेकिन उनकी मम्मी ने मना कर दिया। वे नाराज होकर चुपचाप बैठ गए। तभी उनकी बूढ़ी दादी आई और उसने पूछा क्या हुआ? तब उन्होंने सारी बात बताई। तब उनकी दादी ने उन्हें खेलने के लिए भेज दिया थोड़ी देर बाद उनकी मम्मी आकर उन्हें कहती है- तुम्हें किसने खेलने के लिए कहा? फिर उनकी दादी कहती है कि मैंने कहा। बच्चे खेलना चाहते थे इसलिए। मयंक, चिंकी और चीनू फिर से मस्ती से खेलने लगे। बच्चों की खुशी देखकर बूढ़ी दादी बहुत खुश हुई।
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घास के ढेर पर मस्ती
प्रत्युष सिंह भदौरिया, 9 वर्ष
गांव के बाहर एक बड़ा-सा घास का ढेर था। दोपहर की धूप में वह सुनहरी लग रही थी। छुट्टियों में गर्वित, नेहा और सोनू रोज वहीं खेलने आते थे। एक दिन नेहा बोली— चलो, आज घास के ढेर से फिसलते हैं। सब हंस पड़े और ऊपर चढ़ गए। सोनू सबसे पहले फिसला- ऊई… कितना मज़ा आ रहा है। वह बोला। गर्वित और नेहा भी उसके पीछे-पीछे फिसलने लगे। तीनों खिलखिलाते हुए नीचे गिरे, उनके कपड़ों पर घास लग गई, पर चेहरे पर मुस्कान थी। पास से गुजरती दादी ने हंसते हुए कहा- अरे शरारती बच्चों, अब यही ढेर तुम लोगों का झूला बन गया है? गर्वित बोला- हां दादी, यह हमारा ‘घास का स्लाइड’ है। सब हंस पड़ें। उस दिन बच्चों ने सीखा खुशियां चीजों में नहीं, मन की मस्ती में होती हैं।
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पहाड़ी पर खेलते बच्चे
तन्मय सिंह राजावत, 9 वर्ष
एक सुंदर दिन था, जब तीन बच्चे एक पहाड़ी पर खेल रहे थे। एक बच्ची ऑरेंज और नीली टी-शर्ट पहने हुए थी और वह अपनी बाहें फैलाकर पहाड़ी से नीचे दौड़ रही थी। एक बच्चा पीले रंग की ड्रेस में था और वह पेट के बल लेटकर पहाड़ी से फिसल रहा था। एक और बच्चा नीली शर्ट और शॉर्ट्स पहने हुए घास पर बैठकर अपने दोस्तों को देख रहा था। सभी बच्चे खुश थे और मजे कर रहे थे। बच्ची की हंसी और बच्चे की खुशी का ठिकाना नहीं था। यह दृश्य बच्चों की मासूमियत और खुशी को दर्शाता है, जो खेलने और एक-दूसरे के साथ समय बिताने में सबसे ज्यादा खुशी पाते हैं।
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घास पर एक दिन
कविता सिंह, 9 साल
एक छोटे से गांव में किशोर, गुंजन और भुपेन्द्र नाम के तीन अच्छे दोस्त रहते थे। उसी गांव के बाहर मिट्टी के छोटे-छोटे टीलों थे, जो बारिश के समय छोटी-छोटी घास से ढकी हुई थी। ये तीनों रविवार के दिन अपने के साथ भेड़-बकरियां चराने के लिए साथ में जाते हैं। वहां पर खेलने के लिए मिट्टी के टीलों पर घास पर फिसलने के साथ हंसी-मजाक व डर भी महसूस कर रहे थे। नीचे आने के बाद घुटनों के बल चलना। जो पहले नीचे आ जाता वो दूसरे साथियों के आने का इंतजार करता है। ये तीनों उस रविवार के दिन का हर पल आनंद ले रहे थे।
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नीचे पहुंचने की दौड़
इश्मीत, 13 वर्ष
एक गांव में तीन दोस्त रहते थे। राधा, मीरा और पंकज। गर्मियों की छुट्टी में वे अक्सर गांव के बाहर एक छोटी पहाड़ी पर खेलने जाया करते थे। एक दिन, वे तीनों पहाड़ी पर चढ़ गए। राधा ने कहा- आज हम पहाड़ी से नीचे सरककर देखेंगे कि कौन सबसे पहले नीचे पहुंचता है। मीरा और पंकज उत्साहित हो गए। राधा घास पर बैठकर नीचे की ओर सरकने लगी। वह बहुत खुश थी। मीरा भी उसके पीछे-पीछे सरकने लगी। पंकज ने सोचा कि वह दौड़कर नीचे जाएगा, लेकिन वह फिसलकर घुटनों के बल गिर गया।
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हरा-भरा गांव
सिद्धांत पटेल, 13 वर्ष
एक बार की बात है, एक हरे-भरे गांव में तीन दोस्त रहते थे- मोहन, रिया और अमित। गर्मियों की छुट्टियों में उनके पास खेलने के लिए बहुत समय था। एक दिन, उन्होंने गांव के बाहर एक ऊंचे टीले पर जाने का फैसला किया। यह टीला घास से ढका था और दूर से हरी मखमली चादर जैसा दिखता था। जब वे टीले पर पहुंचे, तो ताजी हवा और खूबसूरत नज़ारे देखकर बहुत खुश हुए। मोहन को एक शरारती विचार आया। उसने रिया से कहा- चलो, हम इस पर से लुढ़कते हैं। रिया पहले तो डर गई, लेकिन फिर उत्साहित होकर तैयार हो गई। सबसे पहले मोहन ने ज़मीन पर लेटकर अपने शरीर को गेंद की तरह गोल किया और ढलान से नीचे लुढ़कना शुरू कर दिया। वह हंसता हुआ नीचे की ओर चला गया। यह देखकर रिया की हिम्मत बढ़ी। उसने भी वैसा ही किया और मोहन के पीछे-पीछे लुढ़कती हुई चली गई। अमित, जो अब तक टीले पर बैठा यह सब देख रहा था, खुद को रोक नहीं पाया। उसकी आंखों में चमक थी। उसने भी झट से लेटकर अपने दोस्तों का पीछा किया। तीनों दोस्त एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए नीचे लुढ़क रहे थे। कभी मोहन गिरता, तो कभी रिया और अमित। वे घास और मिट्टी से लथपथ हो गए थे, पर उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जब वे नीचे पहुँचे, तो खुशी से चिल्लाने लगे। उन्होंने महसूस किया कि सबसे बड़ा मज़ा तो साथ मिलकर खेलने और हँसी-मजाक करने में है। वे तीनों फिर से ऊपर चढ़ने लगे, ताकि यह खेल दोबारा खेल सकें।
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सुनहरी फिसलपट्टी
वंशिका चौधरी, 13 साल

गांव के बाहर एक घास की ढेरी लगी थी। सूरज की किरणें उस पर पड़ते ही वह सुनहरी सी चमकने लगती थी। छुट्टियों में जब सभी बच्चे खाली रहते, तो वहीं खेल खेलने आ जाते। आज भी रीना, मोनू और पूजा वहां खेलने आए थे। उन्होंने मिलकर उस घास की ढेरी को अपनी फिसलपट्टी बना लिया। रीना सबसे पहले ऊपर चढ़ी और नीचे फिसल गई। उसके पीछे मोनू और पूजा भी हंसते हुए नीचे आ गए। सबके कपड़े घास से भर गए, लेकिन उनकी हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। थोड़ी देर बाद मोनू फिसलते समय गिर गया, पर उसे चोट नहीं लगी। रीना ने जल्दी से उसका हाथ पकड़ा और उठाया। सबने फिर से खेलने का वादा किया, पर साथ ही यह भी तय किया कि वे सावधानी से खेलेंगे। जब शाम हुई, तो सबके माता-पिता ने उन्हें घर बुला लिया। तीनों ने आसमान की ओर देखां— सूरज ढल रहा था, लेकिन उनके चेहरे पर खुशी की चमक अब भी बाकी थी। यह दिन उनके बचपन का सबसे यादगार दिन बन गया।
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तीन दोस्तों की पिकनिक
आरवी भाटिया, 8 वर्ष
राम, रोशनी और ध्रुव रोज़ पार्क में खेलते थे। एक दिन सबने खेल-खेल में सोचा— क्यों न आज पिकनिक पर चलें। सभी बहुत खुश हो गए। उन्होंने अपनी-अपनी मां से पूछा। मां ने मुस्कुराते हुए कहा— ठीक है, लेकिन सावधानी से जाना। सब बच्चे पिकनिक के लिए तैयार हुए और निकल पड़े। ध्रुव थोड़ी देर से आया, पर उसने भी जल्दी अपनी चीज़ें लेकर सबके पीछे दौड़ लगाई। पार्क से बाहर निकलते ही उन्हें एक बड़ा सुंदर बगीचा दिखा। वहां बहुत सारे फूल, तितलियां और झरना था। सब खेलने और खाने में मस्त हो गए। जब ध्रुव पहुंचा तो बाकी सब बच्चे दूर खेल रहे थे। वह उन्हें ढूंढने लगा, पर रास्ता थोड़ा अलग हो गया। उधर मांएं जब बच्चों को न देखकर चिंतित हो गईं, तो वे भी उनके पीछे निकल पड़ीं। आख़िरकार, सब एक-दूसरे को मिल गए और खूब हंसे। उस दिन बच्चों ने सीखा कि बिना बताए कहीं नहीं जाना चाहिए। मज़ा तभी पूरा होता है जब सब साथ हों और सुरक्षित हों।