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किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 54 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (12 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 54 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 54 .... बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (12 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 54 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

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जयपुर

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Tasneem Khan

Nov 22, 2025

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 54 .... बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (12 नवंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 54 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।

पछतावा
रिशिता टहलयानी, उम्र— 10 वर्ष

एक समय की बात है। दो मित्र थे एक का नाम रिंकू था और दूसरे का नाम मेघा था। वह दोनों बास्केटबॉल के लिए चुनी गई और रिंकू को कप्तान बनाया गया। यह देखकर मेघा को अच्छा नहीं लगा। वह सोचती कि काश मैं ही कप्तान बन जाती। फिर वह दोनों रोज विद्यालय में जाकर खेलते थे। एक दिन रिंकू को तेज बुखार आ गया, जिसके कारण वह विद्यालय नहीं जा पाई और उसकी टीम कमजोर बनती जा रही थी। एक दिन रिंकू ने मेघा से कहा कि तुम क्यों कप्तान नहीं बन जाती। यह सुनकर मेघा की आंखें नम हो गई यह सोचते हुए कि जिस मित्र की वह जगह लेना चाहती थी, आज वह खुद उसे मौका दे रही है। और अब मेघा के ख्याल एवं आत्मविश्वास बढ़ाने से रिंकू ठीक हो गई जिससे वह विद्यालय आती और अपनी टीम के साथ रोज अभ्यास करती और उसकी टीम जीत गई।

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दोस्ती का कमाल
हेमाक्षी जांगिड, उम्र— 8 वर्ष
मीतू और नीतू दो सहेली थी। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। एक बार जब नीतू का जन्मदिन आया तो उसने मीतू को अपने घर बुलाया। मीतू जन्मदिन पर जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। वह रात में सोने से पहले सबसे नई वाली फ्रॉक पहनने के लिए तैयार करके सोई। परन्तु सुबह उठी तब उसे बहुत तेज बुखार था। वह नीतू के घर जा नही पाई। जब यह बात नीतू को पता चली तो वह दौड़ी—दौड़ी घर आई और बोली मैं तेरे साथ ही जन्मदिन मनाऊंगी तो मीतू के पापा केक लेकर आए और दोनों ने साथ केक काटा। नीतू पूरे दिन मीतू के पास रही। दोनों बहुत खुश थीं। अगले दिन मीतू एकदम ठीक हो गई।

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दो बहनें
उदित राज सिंह, उम्र —6 वर्ष
एक बार रिया और सिया नामक दो बहनें थीं। वह हमेशा बहुत प्यार से रहती थीं। एक बार रिया ने एक नई फ्रॉक खरीदी जो बहुत सुंदर थी। सिया भी वैसी ही फ्रॉक के लिए जिद करने लगी। लेकिन माता-पिता उसे नहीं दिला पा रहे थे, जिससे वह बीमार हो गई। रिया ने अपनी बहन की खूब सेवा की और नई फ्रॉक उसे पहनने के लिए दी। इस तरह बहन की सेवा और फ्रॉक पाकर वह बहुत खुश हुई और वह जल्द ही ठीक हो गई। एक बहन हमेशा दूसरी बहन की मदद करती है।

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बड़ों की सीख
गुंजिता व्यास, उम्र- 7 वर्ष
प्रेरणा तथा प्रगति के माता-पिता उस दिन घर का सामान खरीदने बाहर गए थे। घर पर दोनों बहनें अकेली थीं। प्रेरणा ने अपनी छोटी बहन प्रगति से कहा जब तक मम्मी-पापा घर पर न आ जाए तुम बाहर खेलने मत जाना। यह कह कर प्रेरणा अपने स्कूल का कार्य करने में व्यस्त हो गई। मौका पाते ही प्रगति घर के बाहर अपने दोस्तों के साथ खेलने चली गई। खेलते-खेलते प्रगति के दोस्त अर्जुन ने उसे धक्का मार दियाए जिससे वह सड़क पर जा गिरी और उसके सिर पर चोट आई। यह देख उसके सभी दोस्त डर के मारे वहां से भाग निकले। प्रगति चोट लगते ही बहुत जोर से चिल्लाई। उसकी आवाज सुनकर प्रेरणा भाग कर बाहर आई और देखा की प्रगति सड़क पर गिरी पड़ी है और उसके सिर से खून निकल रहा है। यह देख प्रेरणा प्रगति को उठाकर घर के अन्दर ले कर आई। उसे पलंग पर लिटाया और उसके सिर पर दवा लगाकर पट्टी बांधी। प्रेरणा ने प्रगति को डांट लगाते हुए बोला- तुम से कहा था ना, घर से बाहर नही जाना है। फिर क्यों गई थी। देख लिया ना, बड़ों की बात न मानने का नतीजा। मम्मी-पापा भी घर पर नहीं है, यदि तुम्हें ज्यादा चोट लग जाती तो कौन तुम्हें अस्पताल लेकर जाता। अपनी बड़ी बहन की बात अब प्रगति को समझ आ गयी थी। उसने प्रेरणा से माफी मांगते हुए कहा - दीदी मुझे माफ कर दीजिए। अब मुझे समझ आ गया है कि बड़ों का कहना नहीं मानने का क्या परिणाम होता है। आगे से मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूंगी। उस दिन के बाद प्रगति हमेशा अपने बड़ों का कहना मानने लगी।

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बुखार हुआ काफूर

दिव्यांशी पोषक, उम्र— 7 वर्ष
एक दिन, मीरा की छोटी बहन तारा बहुत बीमार पड़ गई। उसे बहुत तेज़ बुखार था। मीरा उसे देखकर बहुत दुखी हुई। उसने मां से पूछा, मां, मेरी बहन कब ठीक होगी? मां ने मीरा को गले लगाया और कहा, जब हम दोनों मिलकर इसकी देखभाल करेंगे, तो यह जल्दी ठीक हो जाएगी। फिर मीरा ने मां की मदद से तारा के माथे पर ठंडी पट्टी रखी और उसे दवाई दी। वह पूरी रात तारा के पास बैठी रही और उसका ध्यान रखा। अगली सुबह तक तारा पहले से काफी बेहतर महसूस कर रही थी।
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राधा और वंश की कहानी
मनीष नायक, उम्र 13 वर्ष

राधा अपने छोटे भाई वंश की देखभाल कर रही है, जो बिस्तर पर सो रहा है। वंश की तबीयत थोड़ी खराब है और राधा उसके सिर पर हाथ रखकर उसे सहला रही है। राधा वंश को जल्दी ठीक करने के लिए दवाई देगी और उसकी देखभाल करेगी। वह वंश के पास बैठी हुई है, और उसके चेहरे पर प्यार और चिंता का भाव है। वंश जल्द ही ठीक हो जाएगा, और दोनों भाई-बहन फिर से खेलेंगे और खुश रहेंगे।
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गुलाबी फ्रॉक का इंतजार
ऋषभ शर्मा, उम्र—11 वर्ष

एक छोटे से घर में लिली और उसकी प्यारी बहन डेज़ी रहती थीं। कुछ दिन पहले ही उनकी मां एक खूबसूरत गुलाबी फ्रॉक लाई थी, जिसे देखकर डेज़ी बहुत खुश हुई थी। वह उस फ्रॉक को रविवार को होने वाली पड़ोस की पार्टी में पहनना चाहती थी। फ्रॉक को सावधानी से कमरे में बने एक स्टैंड पर टांग दिया गया था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। शनिवार की सुबह डेज़ी अचानक बीमार पड़ गई। उसे तेज़ बुखार था और उसका शरीर दर्द कर रहा था। मां काम पर जाने के लिए तैयार हो रही थीं, उन्होंने चिंता के साथ गुलाबी फ्रॉक की ओर देखा और फिर लिली से डेज़ी का ध्यान रखने को कहा। मां के जाने के बाद, लिली डेज़ी के पास कुर्सी पर बैठ गई। डेज़ी उदास होकर उस गुलाबी फ्रॉक को देखे जा रही थी। उसने धीमी आवाज़ में लिली से कहा, दीदी, मैं यह फ्रॉक पहनकर पार्टी में जाना चाहती थी। लिली ने प्यार से डेज़ी का हाथ पकड़ा और कहा, चिंता मत करो, तुम जल्दी ठीक हो जाओगी। हम अगली पार्टी में ज़रूर इसे पहनेंगे। लिली ने डेज़ी के माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखी, उसे दवा दी और सूप पिलाया। उसने डेज़ी को कहानियां सुनाईं और हंसाने की कोशिश की, ताकि उसका ध्यान बीमारी से हटे। डेज़ी धीरे-धीरे बेहतर महसूस करने लगी। शाम को मां वापस आईं। डेज़ी ने आंखें खोलीं और मुस्कुरा दी। वह बुखार से उबर रही थी। मां ने राहत की सांस ली। लिली ने मां से कहा, मां, डेज़ी ने आज गुलाबी फ्रॉक को बहुत देर तक देखा। वह उसे पहनना चाहती थी। मां ने प्यार से डेज़ी का माथा चूमा और कहा, मेरी प्यारी बच्ची, सेहत सबसे पहले है। जब तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगी, तो हम सिर्फ तुम्हारे लिए एक छोटी सी पार्टी घर पर ही रखेंगे और तुम यह फ्रॉक पहनकर उसमें सबसे सुंदर लगोगी। डेज़ी की आंखों में चमक आ गई। उस गुलाबी फ्रॉक ने दोनों बहनों और मां के बीच के प्यार और उम्मीद को गहरा कर दिया था।
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मेरी प्यारी दीदी
प्रांजल ओझा, उम्र— 13 साल
एक दिन मैं स्कूल से घर लौटी तो मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा था। मम्मी-पापा ऑफिस गए थे, इसलिए मेरी दीदी ने मुझे आराम करने को कहा। उसने मेरे माथे पर हाथ रखा तो बोली, तुझे तो बुखार है! फिर उसने तुरंत मेरे लिए गुनगुना पानी लाकर दिया और मेरी दवाई ढूंढने लगी। दीदी ने मेरा तकिया ठीक किया, मुझे रज़ाई ओढ़ाई और माथे पर ठंडी पट्टी रख दी। जब मैं करवट लेकर बोली, दीदी, तुम थक गई होगी न? तो वो मुस्कुराकर बोली, अरे पगली, छोटी बहन बीमार हो और मैं आराम करूं? थोड़ी देर बाद उसने मुझे सूप बनाकर दिया। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं सोचने लगी कि जब भी दीदी बीमार होती है, तो मैं भी उसकी वैसे ही सेवा करूंगी। रात को मम्मी-पापा आए तो उन्होंने देखा कि मैं सो रही हूं और दीदी मेरे पास कुर्सी पर बैठी है। मम्मी ने प्यार से कहा, मेरी बेटियां तो सच्ची दोस्त हैं। अगले दिन जब मैं ठीक हुई, तो मैंने दीदी को एक छोटा-सा कार्ड बनाया दुनिया की सबसे अच्छी दीदी के लिए। दीदी ने मुझे गले लगा लिया। उस दिन मैंने समझा कि सच्चा प्यार वही है, जो बिना कहे दूसरों की मदद करता है।
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बहनों की दोस्ती
श्रीराम, उम्र— 12 वर्ष

मीरा अपनी छोटी बहन रिया के पास बैठी है, जो बिस्तर पर बीमार लेटी है। रिया के माथे पर पट्टी बंधी है और पास में दवाइयां रखी हैं। मीरा कुर्सी खींचकर प्यार से रिया का हाल पूछती है। वह रिया का माथा छूकर देखती है कि बुखार कितना है। मीरा अपनी छोटी बहन को दिलासा देती है और उसे हिम्मत देती है कि वह जल्दी ठीक हो जाएगी। मीरा ने उस दिन एक छोटी नर्स की तरह अपनी बहन की सेवा की। इस तस्वीर में बहनों का गहरा प्यार दिखता है, जहां देखभाल और सांत्वना ही सबसे बड़ी दवा है।
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बड़ी बहन का फर्ज
आराध्या सोनी, उम्र : 7 वर्ष
आराध्या और ऐश्वर्या दोनों बहनों के माता-पिता किसी काम की वजह से घर के बाहर गए थे। दोनों बहनें साथ खेल रही थी कि छोटी बहन ऐश्वर्या को तेज बुखार चढ़ गया और उसे उठा भी नहीं जा रहा था। आराध्या से ऐश्वर्या की यह हालत देखी नहीं गई और उसने ऐश्वर्या को अपनी गोदी में भरकर पलंग पर लिटाया और उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टी लगाकर उसको बुखार उतारने की दवाई पिलाई। आराध्या ने बिल्कुल मां की तरह ऐश्वर्या की सेवा की और अपने पिताजी को फ़ोन करके घर बुलाया। माता-पिता ने आने पर जब आराध्या को ऐश्वर्या का ध्यान रखते देखा तो उन्हें बहुत खुशी हुई और उन्होंने खुश होकर आराध्या को शाबाशी दी।

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कहानी दो बहनों की
लक्षित राजपुरोहित, उम्र— 9 वर्ष
एक समय की बात है। एक घर में दो बहनें अपने मम्मी-पापा के साथ रहती थीं। बड़ी बहन का नाम श्रिया और छोटी बहन का नाम प्रिया था। एक दिन उनके मम्मी-पापा को किसी ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ा। उसी दिन अचानक छोटी बहन प्रिया बीमार हो गई। बड़ी बहन श्रिया को चिंता होने लगी। तब श्रिया ने अपनी मम्मी को फ़ोन लगाकर पूछा — मम्मी, प्रिया की तबीयत बहुत ख़राब हो गई है, अब मैं क्या करूं? मम्मी ने कहा- अस्पताल से डॉक्टर को बुला लो। डॉक्टर देखकर बताएंगे कि कौन सी दवाइयां देनी हैं। श्रिया ने तुरंत डॉक्टर को फ़ोन किया। डॉक्टर आए और प्रिया को देखकर बताया कि उसे बुखार है और कौन-सी दवाइयां देनी हैं। डॉक्टर के चले जाने के बाद, श्रिया ने प्रिया को दवाइयां दीं। अगले दिन प्रिया बिल्कुल ठीक हो गई। उसी समय उनके मम्मी-पापा भी घर लौट आए। उन्होंने श्रिया की समझदारी की बहुत तारीफ़ की।

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दो बहनों का प्यार
उमंग दांवा, उम्र— 7 वर्ष
दो बहने थीं। उनका नाम पूजा और खुशी था। एक दिन खुशी बीमार हो गई। पूजा ने उसे दवाइयां दी, उसे खाना खिलाया और एक कमरे में चारपाई पर सुला दिया। कुछ दिनों में खुशी ठीक हो गई। पूजा खुशी के मारे झूम उठी। खुशी बोली- चलो पहले हम अच्छा खाना खाते है, फिर खेलेंगे। पूजा बोली- ठीक है, फिर वो खाना खाते हैं और खेलते हैं। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दोस्त हो या बहन-भाई एक-दूसरे की देखभाल करनी चाहिए।

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ऐसी हों बहनें
कृतिका मीना, उम्र— 8 वर्ष

एक बार दो बहने थीं। एक का नाम अमायरा, दूसरी बहन का नाम स्नेहा था। एक दिन स्नेहा बीमार पड़ गई अमायरा को यह बात पता चली और वह भागी-भागी स्नेहा के लिए दवाई लेकर आई। वह कमरे में पहुंची और स्नेहा के सिर पर गीला रूमाल रखा और दवाई दे दी। तभी वहां पर लटकी हुई फ्रॉक अमायरा ने देखी और उसने सोचा मैं इसको ले लेती हूं। इसमें मैं बहुत सुंदर लगूंगी लेकिन वह फ्रॉक स्नेहा की थी। अमायरा ने स्नेहा से पूछा— क्या मैं यह फ्रॉक ले सकती हूं। स्नेहा को भी वह फ्रॉक बहुत पसंद थी, लेकिन स्नेहा ने हां कर दिया। क्योंकि वह अपनी बहन से बहुत प्यार करती थी और स्नेहा को खुशी भी हुई। क्योंकि उसने अपनी बहन को खुश देखा।

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प्यार की ताकत
रचित जोशी, उम्र— 11 वर्ष

रीना और मीना दो प्यारी बहनें थीं। एक दिन मीना को तेज बुखार आ गया। रीना ने उसे इस हालत में देखा तो बहुत चिंतित हुई और उसकी देखभाल करने लगी और डॉक्टर से दवाई लाकर समय पर दी और उसके सिर पर ठंडी पट्टी की और मीना के पास बैठकर हमेशा उसकी पसंदीदा किताबें पढ़ती रही। कुछ ही दिनों मे मीना का बुखार एकदम ठीक हो गया और डॉक्टर ने कहा कि मीना जल्दी ठीक हुई क्योंकि रीना ने उसकी सेवा पूरे मन से की।