
गौतमबुद्ध नगर में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने महिला से जबरन शादी और दुष्कर्म के आरोपी को बरी किया।
Fast Track Court: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां अपने पति से प्रताड़ित महिला ने प्रेमी और उसके परिवार पर बंदूक दिखाकर जबरन शादी करने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज कराया। इतना ही नहीं, महिला ने मुकदमे में ये भी आरोप लगाया कि जबरन शादी के बाद युवक ने उसके साथ दुष्कर्म किया। इससे वह गर्भवती हो गई तो उसे गर्भपात की दवा खिला दी गई। इससे उसका गर्भपात हो गया। हालांकि अदालत में सुनवाई के दौरान मामला पूरी तरह फर्जी पाया गया। जिसके बाद अदालत ने प्रेमी को बा-इज्जत बरी कर दिया है। साथ ही शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का आदेश दिया है।
यह मामला गौतमबुद्ध नगर की एडिशनल सेशंस और फास्ट-ट्रैक कोर्ट में चल रहा था। शिकायतकर्ता महिला ने साल 2020 में सुभाष नामक अपने प्रेमी पर मुकदमा दर्ज कराया था। पांच साल पहले दर्ज मुकदमे में सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मामला झूठा था और शिकायतकर्ता महिला ने अदालत में गलत बयान दिए। इसके चलते कोर्ट ने जहां आरोपी सुभाष को बा-इज्जत बरी कर दिया, वहीं शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 344 के तहत झूठी गवाही देने का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट् के अनुसार, जुलाई 2020 में गौतमबुद्धनगर निवासी एक महिला ने अपने प्रेमी सुभाष, उसके भाई राजेंद्र और बहन उधा देवी पर गंभीर आरोप लगाते हुए रबूपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। महिला ने आरोप लगाया था कि सुभाष, उसके भाई राजेंद्र और बहन उधा देवी ने बंदूक के दम पर उसका अपहरण किया। इसके बाद उसकी सुभाष से जबरन शादी कराई गई और सुभाष ने कई महीनों तक उसके साथ बलात्कार किया। उसने यह भी दावा किया था कि गर्भवती होने के बाद उसे गर्भपात की दवा दी गई।
महिला की शिकायत पर रबूपुरा पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू की। पुलिस जांच के दौरान इस मामले में राजेंद्र और उधा देवी की किसी भी प्रकार की संलिप्तता नहीं पाई गई। इसपर जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने सिर्फ सुभाष के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया और 4 अगस्त 2020 को गिरफ्तारी के बाद सुभाष को जेल भेज दिया। अदालत ने 27 मई 2022 को इस मामले पर संज्ञान लिया और मुकदम की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई शुरू की गई।
फास्ट-ट्रैक कोर्ट में गवाही के दौरान शिकायतकर्ता ने अपने पहले के सभी आरोपों को वापस ले लिया। महिला ने कहा कि उसने सुभाष, राजेंद्र या उधा देवी के खिलाफ कोई गलत काम नहीं देखा और न ही सुभाष ने उसके साथ बलात्कार किया। उसने अदालत को बताया कि अपने पति की प्रताड़ना से परेशान होकर वह अपने बच्चों के साथ खुद सुभाष के पास गई थी। महिला ने यह भी स्वीकार किया कि उसके पति ने झूठी शिकायत तैयार की थी और पुलिस को देने से पहले उस पर उसका अंगूठा लगवाया गया था। उसने बताया कि पति और पुलिस के दबाव में उसने गलत बयान दर्ज कराया। प्रॉसिक्यूशन के एक अन्य गवाह ने भी महिला के आरोपों की पुष्टि करने से इनकार कर दिया।
अभियोजन पक्ष ने महिला के मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज धारा 164 सीआरपीसी के बयान को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन अदालत ने इसे मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली स्टेट बनाम श्री राम लोहिया (AIR 1950 SC) मामले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 164 के तहत दर्ज बयान को केवल विरोधाभास या खंडन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, न कि पुष्ट साक्ष्य के रूप में। अदालत ने साफ कहा कि केवल इस आधार पर कि बयान न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज किया गया था, उसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अंततः कोर्ट ने सुभाष को सभी आरोपों से बरी करते हुए शिकायतकर्ता के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 344 के तहत कार्रवाई का आदेश दिया।
भारतीय कानून के अनुसार, न्यायालय में झूठी गवाही देना एक गंभीर अपराध है। दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 191 के तहत झूठी गवाही देना “झूठी साक्ष्य देना” कहलाता है, जिसके लिए धारा 193 में सजा का प्रावधान है। इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति न्यायिक कार्यवाही में झूठी गवाही देता है, तो उसे सात साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। वहीं सीआरपीसी की धारा 344 अदालत को यह अधिकार देती है कि वह ऐसी गवाही देने वाले व्यक्ति के खिलाफ तत्काल मुकदमा चलाकर दंड दे सके। अदालत का यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखने की दिशा में एक सख्त संदेश देता है कि न्यायालय के समक्ष झूठ बोलने वालों को कानून से कोई छूट नहीं मिलेगी।
Published on:
13 Oct 2025 11:54 am
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