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संपादकीय: नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में बढ़ते कदम

देश के 182 जिलों तक फैला नक्सलवाद आज 11 जिलों तक सिमट गया है।

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जयपुर

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ANUJ SHARMA

Nov 20, 2025

आंध्र प्रदेश में सुरक्षा बलों द्वारा देश के सबसे खूंखार नक्सली नेताओं में शामिल माड़वी हिड़मा और मेट्टुरी जोगा राव उर्फ टेक शंकर का खात्मा केवल एक बड़ी सफलता नहीं, बल्कि यह बताता है कि दशकों से दहशत का पर्याय बना लाल आतंक अब अंतिम सांसें ले रहा है। हिड़मा और टेक शंकर नक्सलियों की हिंसक रणनीति, पुलिस व सुरक्षाबलों पर हमलों और विकास कार्यों में बाधा का प्रतीक बन चुके थे। उसका अंत जनाधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं को चुनौती देने वाले तंत्र पर गहरा प्रहार है।


देश के 182 जिलों तक फैला नक्सलवाद आज 11 जिलों तक सिमट गया है। यह केवल आंकड़ों का उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि सरकार की रणनीतिक दृढ़ता, सुरक्षा बलों के साहस और स्थानीय समुदायों के सहयोग का परिणाम है। इससे साफ है कि केंद्र और राज्य सरकारों की बहुआयामी नीति सुरक्षा, स्थानीय सहभागिता और विकास की सही दिशा में आगे बढ़ रही है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि सरकार की कोशिशों के बाद बड़ी संख्या में नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं, जो बताता है कि बंदूक का रास्ता अब उनके लिए बेअसर साबित हो रहा है। केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को समाप्त करने की समय सीमा तय कर दी है और उस दिशा में तेजी से कदम बढ़ रहे हैं। लेकिन ऐसी लड़ाई केवल बंदूक से नहीं जीती जाती, असली जीत तब होगी जब दशकों तक भय, खामोशी और पिछड़ेपन को झेलने वाले इलाकों में विकास की रोशनी पहुंचेगी। हालांकि सरकार इन इलाकों में विकास कार्यों में जुटी है।

सड़क, बिजली, चिकित्सा, शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यही वे हथियार हैं, जो किसी भी विचारधारा से अधिक ताकतवर साबित होते हैं। खास बात है कि पिछले दिनों नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़ा परिवर्तन देखा गया। जिन इलाकों में मतदान बूथ तक पहुंचना कभी जोखिम भरा था, वहां अब लोग उत्साह से वोट डालते हैं। यह बदलाव केवल शासन का नहीं, बल्कि जन-चेतना का भी है। वे समझ चुके हैं कि हिंसा, बंदूक और भय से न उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, न ही आने वाली पीढिय़ों का। याद रखना चाहिए कि लोकतांत्रिक भागीदारी किसी भी समाज की सबसे बड़ी ताकत होती है और नक्सलवाद के कमजोर पडऩे के साथ यह ताकत और मजबूत होगी।


हालांकि इन इलाकों में चुनौतियां अब भी मौजूद हैं। नक्सली विचारधारा कुछ इलाकों में सक्रिय है। इसलिए सुरक्षा, संवाद, विकास और सामाजिक जुड़ाव से मुद्दों पर लगातार कार्य करना होगा। युवाओं को रोजगार, किसानों को स्थिर आय और स्थानीय समुदायों को सम्मानजनक भागीदारी मिलेगी, तभी नक्सलवाद की जड़ें हमेशा के लिए सूख पाएंगी। हिड़मा और टेक शंकर का अंत एक हिंसक अध्याय का समापन है। इसके साथ ही नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उम्मीद की एक नई सुबह उदय होगी, जहां रास्ते सुरक्षित होंगे, स्कूलों में बच्चों की हंसी गूंजेगी और विकास की रोशनी हर गांव तक पहुंचेगी।