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व्यक्तिगत स्वास्थ्य से सामाजिक संतुलन तक की कड़ी ‘स्वस्थ आहार’

राजेन्द्र राठौड़, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधानसभा

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स्वस्थ और संतुलित आहार केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है बल्कि यह मानव गरिमा, आर्थिक प्रगति, सामाजिक संतुलन और पर्यावरणीय स्थिरता का भी अहम हिस्सा है। भारतीय ग्रंथों, वेदों और पुराणों में भोजन की शुद्धता और संतुलन पर बल देते हुए कहा गया है कि अधिक खट्टे, तीखे, नमकीन, गर्म या मसालेदार भोजन का सेवन शरीर को हानि पहुंचाता है और रोगों का कारण बन सकता है।

पिछले कुछ वर्षों में हमारे समाज में भोजन की आदतों को लेकर बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पारंपरिक आहार से अलग होकर लोग तेजी से पाश्चात्य भोजन शैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। कई जगहों पर इसे ‘स्टेटस सिंबल’ के रूप में भी देखा जाने लगा है। इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में टीवी, सोशल मीडिया और बड़े-बड़े विज्ञापन अभियान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। खासकर बच्चे और युवा वर्ग इन आकर्षक विज्ञापनों और स्वादिष्ट दिखने वाले उत्पादों से प्रभावित होकर फास्ट फूड की ओर अधिक झुक रहे हैं।

तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास और सुविधाओं की चाह ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की मांग में भारी इजाफा कर दिया है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इन उत्पादों की खपत सालाना 13% से अधिक बढ़ रही है। सब्जियों और फलों में कीटनाशकों का उपयोग स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है।

भिंडी, टमाटर, मिर्च, गोभी, आम, पपीता और केले में कीटनाशकों का उपयोग सबसे अधिक होता है। दुर्भाग्य से कई लोग बिना धोए इन्हें सीधे उपयोग कर लेते हैं, जिससे उच्च रक्तचाप, अस्थमा, डायबिटीज जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए दुनियाभर में नॉन कम्युनिकेबल डिजीज तेजी से बढ़ रही है। सेम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) के अनुसार भारत में होने वाली कुल मौतों में करीब एक-तिहाई (31 प्रतिशत) हृदय संबंधी रोगों के कारण होती है। देश में बीमारियों से होने वाली कुल मौतों में 56.7 प्रतिशत गैर-संक्रामक रोगों की वजह से ही होती हैं। आज के दौर में नॉन कम्युनिकेबल रोगों जैसे डायबिटीज, मोटापा, हृदय रोग और कुपोषण से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका मोटे अनाजों का सेवन है। भारत में मोटे अनाजों की खेती हजारों वर्षों से होती आ रही है। सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3000 ईसा पूर्व) में भी इनके उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इन अनाजों को फिर से मुख्यधारा में लाने के लिए कई पहलें की गई हैं।

‘श्री अन्न योजना’ के तहत इनकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जबकि 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र से पारित करवाया गया। कभी ‘गरीबों का भोजन’ कहे जाने वाले ये अनाज आज ग्लूटेन-मुक्त सुपरफूड के रूप में वैश्विक लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। सरकारी स्तर पर खाद्य सुरक्षा से संबंधित कड़े मानक लागू करने चाहिए। नियमित जांच और छापेमारी करनी चाहिए। पैक्ड खाद्य पदार्थों पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य होनी चाहिए। स्कूलों में पोषण के बारे में पढ़ाया जाए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व ग्राम सभाओं को जागरूकता कार्यक्रमों से जोड़ऩा चाहिए। पोषण योजनाओं के लिए पर्याप्त बजट व संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।

उपभोक्ताओं को खाद्य लेबल पढ़ना, भोजन को अच्छी तरह धोकर पकाना और स्वस्थ विकल्पों का चयन करना सीखना होगा। किसानों को जैविक खेती, फसल चक्र और सुरक्षित भंडारण के तरीकों पर प्रशिक्षित करना आवश्यक है। जब सरकार, समाज और व्यक्ति मिलकर जागरूकता, शिक्षा और स्वास्थ्यकर आदतों को अपनाएंगे तभी स्वस्थ समाज की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं।