राजनीति में नेताओं की कथनी और करनी में अंतर को लेकर सवाल उठते रहते हैं। आपातकाल के बाद हुए चुनावों में विभिन्न घटकदलों से मिलकर बनी जनता पार्टी जब सत्ता में आई तो कुछ माह बाद ही नेताओं में आपसी मतभेद के किस्से गाहे-बगाहे सामने आने लगे थे। गांधी जयंती के मौके जनता पार्टी में अंदरुनी खींचतान और चुनाव खर्च को लेकर सवाल उठाते
2 अक्टूबर 1978 को कुलिश जी के अग्रलेख के अंश जिसकी गूंज चार दिन बाद ही राजस्थान विधानसभा में हुई।
जनता पार्टी के नेता भी कमाल के हैं। जिस दिन राजघाट पर जनता सांसदों ने एक होकर शासन चलाने को शपथ खाई, उसी दिन से आपस मेें लड़ रहे हैं। इस युद्ध से हार मानकर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने हाल ही में छह महीने की मोहलत और मांग ली। उन्होंने कहा है कि छह माह बाद जनता पार्टी में फूट समाप्त हो जाएगी। जनता सांसदों ने गांधीजी के बताए हुए रास्ते पर चलने की सौगन्ध भी खाई थी, परन्तु लगा कि मिथ्याचार को समाप्त करने में जनता सरकार की कोई रुचि नहीं है। मिथ्याचार का सबसे बड़ा नमूना यह है कि हर कोई विधायक और लोकसभा सदस्य अपने चुनाव में लाखों रुपए खर्च करके चुनाव आयोग को खर्च का झूठा हिसाब पेश करते हैं। चार हजार से अधिक ये मिथ्याचारी विधायक विधानसभाओं में और लोकसभाओं में बैठकर कानून बनाते हैं और शासन चलाते हैं। मिथ्याचार और काले धन पर आधारित लोकतंत्र कितना सत्यानुगामी होगा, यह आंखों के सामने हैं। इस नेतृत्व से किसी सुखद परिवर्तन की आशा करना भी दुराशा ही है। यदि काले धन की इतनी अनिवार्यता है तो क्यों न उसे उद्योग- व्यवसाय में लगाने की छूट दे दी जाए। इससे उत्पादन व रोजगार तो बढ़ेगा, वरना यह पड़ा-पड़ा समाज को सड़ाता रहेगा। मजाक यह है कि जो कुछ हो रहा है गांधी जी के नाम पर हो रहा है। बड़ा मजाक तो यह हुआ जब मोरारजी भाई ने कहा कि उनके मंत्रीमंडल का कोई भी सदस्य शराब नहीं पीता। धन्य हो गांधीवाद !
विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव
राजस्थान विधानसभा में इस आलेख के प्रकाशित होने के बाद 6 अक्टूबर 1978 को प्रेस की आजादी और विधायकों के विशेषाधिकार को लेकर तीखी व लम्बी बहस चली। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह ने राजस्थान पत्रिका के संपादक कर्पूर चन्द्र कुलिश के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव पर चर्चा की अनुमति दे दी थी। प्रस्ताव के समर्थक विधायकों का कहना था कि विधायकों को आलेख में मिथ्याचारी बताया गया है। यह जनप्रतिनिधियों का अपमान है। इस आलेख से विधायकों का मनोबल गिरा है और उनके कर्तव्यपालन में बाधा पड़ी है। यह भी कहा गया कि पत्रकार इस तरह से नहीं लिख सकता। ऐसे पत्र के संपादक को कानूनी सजा दी जानी चाहिए। वहीं प्रस्ताव के विपक्ष में बोलने वालों का कहना था कि कुलिश जी ने वही लिखा है जो जयप्रकाश नारायण और दूसरे लोग कहते हैं। बड़े से बड़े नेताओं ने यह कहा कि चुनाव व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए। प्रस्ताव के विरोध में यह भी कहा गया कि राजस्थान पत्रिका के संपादक ने अपने आर्टिकल में इस चारदीवारी के अंदर जो कार्यवाही होती है उस पर कोई आपत्ति नहीं की जो कि विशेषाधिकार के परव्यू में आती हो। विधायकों को आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए तथा अपना आचरण सुधारना चाहिए ताकि उन पर कोई अंगुली नहीं उठा सके।
( राजस्थान विधानसभा की 6 अक्टूबर 1978 की कार्यवाही के संपादित अंश)
प्रस्ताव के पक्ष में
सदन की गरिमा का सवाल
उन्होंने सारे सदन को मिथ्याचारी कहा और उसके बाद लिख दिया कि इनसे क्या आशा की जा सकती है कि ये कुछ हमारी जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेंगे। यहां पर सदन की गरिमा का सवाल है, यह कोई पार्टी का सवाल नहीं है। सदन के सदस्यों का यह अपमान है। क्योंकि सदन के सदस्यों को मिथ्याचारी लिखा, मिथ्याचार और कालेधन पर चलने वाला लोकतंत्र लिखा। - मूल चंद डागा, कांग्रेस
यह अपमानजनक बात
मुझे ऐसा लगा कि इसमें फतह सिंह का नहीं, एक विधायक का अपमान हुआ। यह संपादक महोदय लिखते हैं कि मिथ्याचार का सबसे बड़ा नमूना यह है कि हरेक विधायक और लोकसभा सदस्य अपने चुनावों में लाखों रुपए खर्च कर चुनाव आयोग को खर्च का झूठा स्टेटमेंट पेेश करते हैं। हो सकता है, करते हों लेकिन हर कोई विधायक ऐसा करता हो यह बिल्कुल अपमानजनक बात है - मेजर फतह सिंह, जनता पार्टी
प्रस्ताव के विरोध में
जनता आपका साथ नहीं दे रही
हमें छुई-मुई की तरह कोमल और नाजुक नहीं होना चाहिए। मैं पूछता हूं आपसे कि अगर आपकी प्रतिष्ठा जनता के अंदर होती, अगर जनता को कोई आपत्ति होती मिथ्याचारी मानने में तो राजस्थान पत्रिका की कितनी कॉपियां जलाई गईं होती, कितनी कॉपियां फाड़ी गई होती। जनता के एक भी व्यक्ति ने यह नहीं कहा कि यह क्यों लिख दिया? जनता आपका साथ नहीं दे रही है। - रामकृष्णदास गुप्ता, जनता पार्टी
सदन का समय खराब न करें
जितने भी विधायक हैं उनकी आत्मा, भारत के जितने भी सांसद- विधायक हैं, उनकी आत्मा यह जानती है कि चुनाव के अंदर कितना खर्च होता है। एक अखबार वाले ने लिखा है तो क्या हम उस अखबार वाले का गला घोटने की चेष्टा करें। यह कठोर ही नहीं, कटु सत्य है। इन छोटीे-छोटी बातों पर विशेषाधिकार का प्रस्ताव लाकर सदन का समय खराब नहीं करें। - कौशल किशोर जैन, जनता पार्टी
विधानसभा अध्यक्ष- लक्ष्मण सिंह
यह प्रश्न विशेषाधिकार के हनन का है और विशेषाधिकार समिति के सुपुर्द किया जाएगा। अंततोगत्वा यह सदन ही निर्णय लेगा कि क्या करना है और क्या नहीं करना। विशेषाधिकार समिति अपना प्रतिवेदन आगामी सत्र के प्रथम सप्ताह में प्रस्तुत कर दे। यह मेरा निर्णय है, यह मेरा आदेश है।
Published on:
02 Oct 2025 08:26 pm
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