
विजय गर्ग, आर्थिक विशेषज्ञ - हाल में महाराष्ट्र के नागपुर में एक किसान आंदोलन के दौरान शहर के प्रमुख हाईवे को लगभग 30 घंटों तक रोका गया। हालांकि, हाईवे या मुख्य मार्ग रोके जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन आम नागरिकों को परेशान करने वाली जरूर है। दरअसल, भारत एक जीवंत लोकतंत्र है। यहां असहमति को स्थान मिलता है, विरोध को सम्मान और संवाद को मार्ग मिलता है।पिछले कुछ वर्षों में भारत ने विरोध के अनेक स्वर देखे हैं। किसानों का आंदोलन, आरक्षण और रोजगार से जुड़े धरने, नागरिकता कानून या मूल्य वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन, इन सभी का प्रभाव न केवल सामाजिक रहा, बल्कि आर्थिक भी। आंदोलन के नाम पर जब सड़कें, रेलमार्ग और राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध होते हैं, तब यह सवाल उठता है कि क्या किसी समूह का विरोध जताने का अधिकार, पूरे राष्ट्र की गति रोक सकता है? किसान आंदोलन (2020-21) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। दिल्ली की सीमाएं लगभग 380 दिनों तक अवरुद्ध रहीं।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार केवल टोल बंद रहने से सरकार को 814.4 करोड़ रुपए का सीधा राजस्व नुकसान हुआ। एसोचैम के अनुमान के मुताबिक देश को प्रतिदिन 3,000 से 3,500 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हो रहा था। यह हानि केवल माल ढुलाई तक सीमित नहीं थी, बल्कि उद्योग, कृषि, निर्यात और खुदरा बाजार सभी पर इसका प्रभाव पड़ा। भारतीय उद्योग परिसंघ ने एक विश्लेषण में बताया कि लंबी अवधि के ऐसे अवरोधों से जीडीपी में 0.2% से 0.3% तक की गिरावट आ सकती है। यह प्रतिशत भले छोटा लगे, लेकिन जब इसे भारत की 3.6 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था पर लागू करें तो नुकसान का आकार 70,000 करोड़ रुपए से अधिक बैठता है। यह किसी छोटे राज्य के वार्षिक बजट जितना है।
देश में राजमार्गों पर हर दिन लगभग 85 लाख से अधिक वाहन गुजरते हैं, जिनमें 60% मालवाहक ट्रक होते हैं। हर ट्रक की औसतन देरी से हुई लागत (ईंधन, ड्राइवर भत्ता, खराब माल आदि) 4,000 से 7,000 रुपये तक मानी जाती है। यदि केवल 10,000 ट्रक एक दिन रुके तो नुकसान कम से कम 40 से 70 करोड़ रुपये होता है। नुकसान का एक बड़ा हिस्सा अदृश्य होता है, जैसे फल, सब्जी और डेयरी उत्पाद आदि वस्तुएं खराब हो जाती हैं। किसानों को भुगतान नहीं मिलता और उपभोक्ताओं को ऊंचे दाम चुकाने पड़ते हैं। वर्ष 2021 की पहली तिमाही में दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ बाजारों में सब्जियों की औसत कीमत में 12-18% तक की वृद्धि दर्ज की गई थी। दवाओं और ईंधन की आपूर्ति पर भी असर पड़ा। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार उस अवधि में कई राज्यों में ईंधन ढुलाई औसतन 15% घट गई थी। जब प्रमुख मार्ग महीनों तक अवरुद्ध रहते हैं तो यह संकेत देता है कि भारत में नीति-प्रदर्शन का संतुलन अभी कमजोर है। इससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग और निवेशों के भरोसे पर अप्रत्यक्ष असर पड़ता है। सवाल यह नहीं कि विरोध क्यों हो, बल्कि यह कि विरोध कैसे हो? लोकतंत्र की शक्ति संवाद है और संवाद के बिना कोई आंदोलन नहीं हो सकता। सरकारों को चाहिए कि आंदोलन या हड़ताल की स्थिति बनने से पहले वार्ता का ढांचा सक्रिय करें। हर राज्य में स्थायी संवाद मंच बनाया जा सकता है। इसके साथ प्रशासन को भी ट्रैफिक प्रबंधन के लिए तैयार रहना होगा। वहीं, समाज को भी अपनी भूमिका समझनी होगी। सड़कों को रोकने से सरकारें नहीं रुकतीं, लेकिन राष्ट्र की गति जरूर ठहर जाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि केवल सात दिन तक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध रहें तो देश को कुल मिलाकर 25,000-30,000 करोड़ रुपये तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है।
यह नुकसान किसी एक वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र का होता है।अब समय है कि भारत संवाद आधारित विरोध की संस्कृति अपनाए। सड़कों को रोकना, पुलों को बंद करना या ट्रेनों को रोकना किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं। भारत की शक्ति उस सड़कों में नहीं, बल्कि उन सड़कों पर चलने वाले विवेकशील नागरिकों में है। जब जनता अपने अधिकारों के साथ दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करती है, तभी लोकतंत्र सशक्त होता है।
Published on:
14 Nov 2025 03:30 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
