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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – मनमानी की उड़ानें

पर्यटन-होटल उद्योग के बाद इस कड़ी की बड़ी सेवा है- हवाई यात्रा। आजकल इनकी दादागिरी खूब चर्चा में है। यात्री की स्थिति बस के यात्री से भी निरीह है।

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Gulab Kothari

फोटो: पत्रिका

पर्यटन-होटल उद्योग के बाद इस कड़ी की बड़ी सेवा है- हवाई यात्रा। आजकल इनकी दादागिरी खूब चर्चा में है। यात्री की स्थिति बस के यात्री से भी निरीह है। यात्री भारतीय और सेवादार विदेशी। फ्लाइट कितनी भी लेट हो जाए ये 'असुविधा के लिए खेद हैं' जैसे रसहीन शब्दों से औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। यात्री सड़क पर जाम में फंस जाए तो 'काउण्टर बंद'। फिर उनकी भाषा का कमाल सुनते रहिए। कुछ एयरलाइन्स तो समय पूर्व ही रवाना हो जाती हैं। कोई मरीज आपातकाल में कहीं चिकित्सा के लिए जा नहीं सकता। मरने की छूट है। इसी का दूसरा चेहरा यह भी है कि लगभग सभी हवाई सेवाओं के उड़ान समय बढ़ा दिए। उतरने पर गाल फुलाते हैं कि हमने आपको समय पूर्व ला छोड़ा।

आजकल सभी हवाई अड्डों पर एक नोटिस पढ़ने को मिलता है कि सुरक्षा कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार करें। क्या ये सुरक्षा कर्मियों के व्यवहार का प्रमाण नहीं है? उनका रुक्ष व्यवहार, अलग-अलग हवाई अड्डों पर अलग नियम क्या एक नागरिक को भ्रमित नहीं करता। कहीं घड़ी खोलिए, कहीं बेल्ट तो कहीं जैकिट, कहीं जूते उतारिए। महिलाओं के पर्स खुलवाना-गहने चैक करना-उड़ान समय की कोई चिन्ता नहीं करना तो अब आम बात हो गई। यात्री साधारणतया उनके साथ बहस नहीं करते। फिर इस प्रकार का नोटिस क्या संदेश देता है?

विमान में यात्री को निश्चित किलोभार तक का एक कैरी बैग ले जाने की अनुमति है। लेकिन यात्री अपने साथ एक बैग विमान में ले जा रहा है या ज्यादा कोई देखने वाला नहीं होता। रसूखवाले बेरोकटोक एक से ज्यादा बैग विमान में ले जाते नजर आते हैं। जिन यात्रियों को व्हील चेयर की सुविधा की जरूरत पड़ती है वे भी परेशानियां कम नहीं भुगतते। एयरपोर्ट पर कोई दो घंटे पहले पहुंच गया तो व्हील चेयर का वास्ता सिर्फ यात्री को लाने-ले जाने तक ही सीमित रहता है। यात्री को कहीं खान-पान व सुविधाओं के इस्तेमाल की जरूरत हो तो किसे परवाह? किसी भी सेवा का सीधा मतलब संवेदना है। लेकिन यहां सर्विस के मामले में संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पग-पग पर नजर आती है।

आए दिन उड़ानों के समय में फेरबदल की जानकारी सामने आती है। कभी ज्यादा ट्रैफिक होने की वजह से तो कभी विमान में तकनीकी समस्याओं के कारण। यात्री को ऐन मौके पर पता चलता है कि वह समय बचाने का जो उद्देश्य लेकर हवाई यात्रा कर रहा है वह इन अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया है। ज्यादा परेशानी उन यात्रियों को होती है जिन्हें कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़नी हो। अलग-अलग कारणों से जब उड़ानों का डाइवर्जन होता है तो यह और कष्टकारी होता है। विमान सेवाओं में सुरक्षा का बिन्दु तो अलग है ही। उड़ानों के समय में बिना सूचना दिए बदलाव करने व यात्रियों से दुर्व्यवहार के मामले सामने आते हैं तो कई बार हंगामे की नौबत भी आ जाती है।

अभी एक नया अनुभव हुआ। सामान ले जाने का नियम भी एक मुसीबत बन गया। अधिकतम अनुमत भार 15 किलो। इसके ऊपर फिर अतिरिक्त शुल्क के साथ। इस बार तो दो अनुभव हुए। एक-यदि 17 किलो भार है तो उसे 15 किलो ही करना पड़ेगा। अतिरिक्त शुल्क के बाद भी नहीं ले जाने देंगे। आप क्या दो किलो वहां खड़े-खड़े निकालेंगे, उसको कहां रखेंगे, यह आपकी चिन्ता। एक जगह- यात्री है तो तीन नग-चौथा अतिरिक्त भार देकर भी नहीं लेते। क्यों? हवाई जहाज छोटा है। आप परदेशी हैं। चौथे सूटकेस को किसको देंगे? साथ कैसे लेकर जाएंगे? उनका विषय नहीं है।

अभी पूना हवाई अड्डे पर कुछ खुला सामान प्लास्टिक में पैक कराने गए। सर्विस बन्द हो गई। चैक-इन पर तैनात कार्मिक कहती है-प्लास्टिक लॉक भी आजकल बंद हो गए। आपको खुला सामान ही बुक करना पड़ेगा। 'प्रायोरिटी' टैग भी बंद हो गए। महंगा सामान हो, गहने हों, अतिरिक्त भार पैसा लेकर भी लेने को तैयार नहीं हो तो यात्री अपना सिर पीट लेने के अलावा क्या करे? सामान चोरी हो जाए तो कौन लाएगा? बीमा की स्थिति नहीं। हम लोग क्या-क्या नहीं भुगत चुके। सरकार में सब साहूकार, बाकी सब चोर। सरकार एक रुपया कम नहीं लेती, अग्रिम टिकट लो। खुद भुगतान करने में दलाली मांगती है।

अब यात्री के अलावा अन्य का प्रवेश बंद है। कितने लोग छोड़ने-लेने आते-जाते हैं। किसी के बैठने की, सुविधाओं की कोई चिन्ता नहीं दिखती। कम्प्यूटर उड़ान फुल बता रहा है, टिकट उपलब्ध नहीं है, फिर भी सीटें भीतर खाली मिल जाती हैं। किराया तो मौसम के साथ बदलता है। अंग्रेजों की तर्ज पर लूटते हैं। एयरपोर्ट पर पार्किंग से ही लूट शुरू हो जाती है। मनमाना शुल्क वसूलना आम है। चार-पांच हजार वाली टिकट कब 40-50 हजार हो जाएं, पता नहीं। क्या ये सेवा कहलाएगी? मानो पूरी सेवा व्हील चेयर पर उपलब्ध हो!

gulabkothari@epatrika.com

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