
सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2023 की इस माह आई ताजा रिपोर्ट ने भारत की जनसांख्यिकीय तस्वीर में एक नया मोड़ दिखाया है। रिपोर्ट के अनुसार देशभर में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर 1.9 हो गई है। यह बच्चों की संख्या के उस (प्रतिस्थापन) स्तर 2.1 से भी कम है, जिस पर आबादी समान बनी रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहली बार टीएफआर लगभग प्रतिस्थापन स्तर के निकट आ गई है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह और भी कम होकर लगभग 1.5 पर दर्ज हुई है। ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे, श्रम-शक्ति संरचना और दीर्घकालिक विकास नीतियों के लिए गंभीर संकेत प्रस्तुत करते हैं। इसे यों समझें कि जहां हर महिला औसतन 2.5 बच्चे पैदा करती है, वहां की आबादी लगातार बढ़ती है, वहीं जहां यह औसत 1.9 है तो वहां की आबादी धीरे-धीरे घटती है।
पिछले कुछ वर्षों में यह धारणा बनने लगी थी कि प्रजनन दर का गिरता ग्राफ किसी बिंदु पर स्थिर हो गया है। विशेषकर वर्ष 2020-22 की अवधि में ग्रामीण टीएफआर करीब 2.2 पर कुछ हद तक यथावत दिखाई दी और शहरी टीएफआर लगभग 1.6 के आसपास टिके रहे। इसी ठहराव के आधार पर कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि अब भारत प्रतिस्थापन स्तर के आसपास स्थिर हो गया है लेकिन वर्ष 2023 के आंकड़ों ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह स्थिरता संभवतः अल्पकालिक थी और गिरावट का सिलसिला पुनः जारी है। ग्रामीण टीएफआर में जो मामूली लेकिन स्पष्ट अवरोह नजर आया, वही राष्ट्रीय औसत को 1.9 तक धकेलने का कारण बना।
हालांकि यह समझने वाली बात है कि प्रजनन दर में गिरावट समान रूप से पूरे देश में नहीं है बल्कि यह भिन्नताएं राज्यवार हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश में यह टीएफआर अभी भी प्रतिस्थापन स्तर के ऊपर है, जबकि दिल्ली, केरल या तमिलनाडु में यह अत्यंत कम स्तरों पर पहुंच चुकी है। उदाहरण के लिए बिहार में महिलाओं के बच्चे पैदा करने की दर अभी भी ज्यादा है, जबकि कई शहरों में प्रति महिला बच्चों की संख्या बहुत कम पाई गई है। राजस्थान का हाल भी दिलचस्प है। यहां ग्रामीण इलाकों में जन्मदर अभी अपेक्षाकृत ऊंची बनी रहने से यहां टीएफआर करीब 2.3 बच्चे प्रति महिला है, जबकि शहरी परिवारों में बच्चों की संख्या तेजी से घटकर राष्ट्रीय औसत से भी नीचे पहुंच चुकी है।
टीएफआर में सतत गिरावट के साथ ही जनसंख्या संरचना में ऐतिहासिक बदलाव भी उभरकर सामने आ रहे हैं। शून्य से चार वर्ष की आयु वर्ग का प्रतिशत घट रहा है और 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों का अनुपात बढ़ रहा है। अर्थ साफ है कि यदि यह प्रवृत्ति बनी रहती है तो आने वाले दशकों में श्रम-योग्य आबादी का अनुपात घटेगा और वृद्ध आबादी पर सामाजिक-आर्थिक दबाव बढ़ेगा। पेंशन, वृद्ध-देखभाल, स्वास्थ्य-सेवाओं की मांग और दीर्घकालिक देखभाल प्रणालियों पर भार बढ़ने की संभावना तेज हो जाएगी। यह कहा जा सकता है कि एक या दो साल के आंकड़ों से अतिशय निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा लेकिन एसआरएस 2023 ने स्पष्ट कर दिया है कि देश प्रतिस्थापन स्तर के आसपास या उससे नीचे आ गया है। यह तथ्य नीतिगत, आर्थिक और सामाजिक रूप से तात्कालिक ध्यान मांगता है। भारत के लिए अब यह चुनना होगा कि बदलती जनसांख्यिकीय तस्वीर को कैसे अवसर में बदलें और जोखिमों का प्रबंध कैसे करें। यदि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार निवेश समय पर और प्रभावी रूप से बढ़ाए जाएं, तो कम प्रजनन दर को मानव विकास के लिए लाभकारी मोड़ में बदला जा सकता है। अन्यथा, तेजी से घटती प्रजनन दर भविष्य में आर्थिक वृद्धि, सामाजिक सुरक्षा और श्रम-बाजार में बड़े व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
अंततः, ‘ग्राफ रुक गया’ जैसा कहना शायद अतिसाधारण होगा लेकिन एसआरएस 2023 यह पहचान कराता है कि भारत एक संक्रमण काल में है। प्रतिस्थापन से नीचे पहुंचने की स्थिति में और यही बात नीतियों, संसाधनों और समाज के लिए नए अर्थ और चुनौतियां प्रस्तुत कर रही है।
Updated on:
17 Sept 2025 04:44 pm
Published on:
17 Sept 2025 03:06 pm
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