गोबर से दीपक, माता लक्ष्मी के पंगलिये, श्रीयंत्र आदि बनाकर रंगों से सजाती महिला। फोटो- पत्रिका
राजीव दवे/सुरेश हेमनानी
पाली। जब दीपावली की रात रोशनी से जगमगाएगी, तब इस बार बहुत से घरों में यह रोशनी गोबर से बने दीपकों की होगी। जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जड़ों से भी जुड़े हैं।
पाली के कारीगरों ने इस बार एक लाख से अधिक गोबर के दीपक, धूपबत्ती, लक्ष्मी के पगलिये, श्रीयंत्र और बांदरवाल तैयार किए हैं, जो देशभर में भेजे जा रहे हैं। दीपक ऐसे है, जिनमें घी या तेल डालकर जलाने पर मिट्टी के दियों की तरह काले हो सकते हैं, लेकिन जलेंगे नहीं।
दीपिका मोहबारशा और उनकी टीम की यह कोशिश बताती है कि गोबर सिर्फ अपशिष्ट नहीं, बल्कि संस्कृति का संवाहक है। गो माता में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। गोबर से पुराने जमाने में दिवाली पर घर में आंगन लीपा जाता था।
इस कार्य से जुड़े सौरभ भट्ट और मनोहर मोहबारशा ने बताया कि उन्होंने गोबर से केवल दीपक ही नहीं, सजावट की सामग्री और आभूषण तक तैयार किए हैं। वे देखने में लकड़ी से तैयार किए गए लगते हैं। पाली में इस बार करीब 1 लाख दीपक तैयार किए गए हैं। जो पाली के साथ देशभर में भेजे जा रहे हैं। इसके साथ ही गोबर से अलग-अलग महक वाली धूप बत्ती भी तैयार की है।
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पूजन सामग्री व दीपक बनाने के लिए गोबर ऐसे गो-पालकों से खरीदा जा रहा है, जिनकी गायें पक्के फर्श पर रखी जाती है। जिससे गोबर में किसी तरह की अवांछित सामग्री मिट्टी, कचरा आदि शामिल नहीं हो। इसके बाद गोबर को विभिन्न प्रोसेस से गुजारकर सामग्री तैयार की जाती है।
गोबर से सामग्री बनाने का विचार करीब दो साल पहले आया। हमने इस पर अध्ययन शुरू किया और अब गोबर से दीपक, प्रतिमाएं, बांदरवाल, धूप बत्ती, गोबर के आभूषण के साथ अन्य कई चीजें बना रहे हैं। हमारा उद्देश्य भारत की पुरातन संस्कृति से रूबरू करवाना है।
Updated on:
17 Oct 2025 09:25 pm
Published on:
17 Oct 2025 09:24 pm
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