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क्यों खास है भितिहरवा आश्रम? जहां प्रशांत किशोर आज रखेंगे 24 घंटे का मौन उपवास

भितिहरवा आश्रम से पदयात्रा शुरू करने वाले प्रशांत किशोर आज फिर उसी ऐतिहासिक धरती पर लौटे हैं। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद PK गुरुवार को भितिहरवा आश्रम में 24 घंटे के सामूहिक मौन उपवास पर बैठेंगे।

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पटना

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Anand Shekhar

Nov 20, 2025

भितिहरवा आश्रम

भितिहरवा आश्रम (फोटो -बिहार टुरिज़म )

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में करारी हार के बाद जनसुराज संस्थापक प्रशांत किशोर आज (गुरुवार) पश्चिम चंपारण के ऐतिहासिक भितिहरवा आश्रम में 24 घंटे का सामूहिक मौन उपवास शुरू करने जा रहे हैं। यह वही स्थान है जहां से उन्होंने 2 अक्टूबर 2022 को अपनी राज्यव्यापी पदयात्रा की शुरुआत की थी। अब हार के बाद वे इसी जगह लौटकर आत्ममंथन करेंगे। उनका कहना है कि इतनी बड़ी हार के बाद खुद से सवाल पूछना और आत्मचिंतन करना ज़रूरी है और इसके लिए गांधी की भूमि से बेहतर जगह कोई नहीं।

महात्मा गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा आश्रम

भितिहरवा आश्रम सिर्फ एक आश्रम नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता संघर्ष का वह अहम हिस्सा है, जहां से 1917 में महात्मा गांधी ने पहली बार सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी। यह वही जगह है जहां से अंग्रेजी शासन के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह ने पूरे भारत को हिला दिया था। बापू ने इसी आश्रम से किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की थी और तीन कठिया प्रथा समाप्त करने की लड़ाई भी यहीं से शुरू हुई। यहीं पर गांधी ने स्वच्छता, आत्मनिर्भरता और सत्याग्रह की जमीनी लड़ाई छेड़ी थी।

गांधी ने यहीं देश का पहला बुनियादी विद्यालय शुरू किया, जिसका मकसद था, ग्रामीण स्वावलंबन और रोजगारपरक शिक्षा। आश्रम परिसर में आज भी गांधी स्मृति भवन, चरखा कक्ष, ऐतिहासिक दस्तावेज, प्रदर्शनी और गांधी जी के जीवन से जुड़ी कई दुर्लभ वस्तुएं मौजूद हैं। इसके आलवा आश्रम की दीवारों पर गांधी जी के संदेश भी लिखे हैं। आश्रम में घुसते ही पत्थर पर गांधी जी का एक संदेश भी लिखा है, “यदि युवक अच्छे तौर-तरीके नहीं सीखते हैं, तो उनकी सारी पढ़ाई बेकार है।”

प्रशांत किशोर के लिए भितिहरवा आश्रम क्यों विशेष?

महात्मा गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा आश्रम प्रशांत किशोर एक लिए भी काफी खास है। यह वही आश्रम है जहां से प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 को बिहार में बदलाव के संकल्प के साथ अपनी 3 हजार किलोमीटर की पदयात्रा शुरू की थी। लगभग दो वर्षों तक चले इस अभियान के केंद्र में वही राजनीति-विरोधी, व्यवस्था-परिवर्तन की बातें थीं, जिनका बीज उन्होंने भितिहरवा से बोया था।

इसी आश्रम में उन्होंने जनता की बात सुनने, बिहार के गांवों में घूमने और अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का संकल्प लिया था। अब, करारी हार के बाद वे उसी धरती पर लौटकर अपने राजनीतिक पुनर्मूल्यांकन का प्रयास कर रहे हैं।

क्या होगा उपवास के दौरान

जन सुराज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती ने कहा है कि प्रशांत किशोर का मौन उपवास जन सुराज आंदोलन की विचारधारा का विस्तार है। उन्होंने बताया कि राजनीति सिर्फ भाषण, रैलियों और आरोप-प्रत्यारोप का माध्यम नहीं है बल्कि संकल्प और आत्मशुद्धि भी राजनीति का एक अहम हिस्सा हैं। मनोज ने पार्टी कार्यकर्ताओं से शांतिपूर्ण और अनुशासित तरीके से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की अपील की। उन्होंने ये भी बताया कि उपवास के दौरान कोई भाषण, नारे या राजनीतिक घोषणा नहीं की जाएगी, केवल मौन, उपस्थिति और संकल्प ही इस कार्यक्रम की आत्मा है।

जनसुराज के कार्यकर्ता भी जुटेंगे

आश्रम परिसर के पास बड़ा टेंट लगाया गया है, जहां भारी संख्या में जनसुराज कार्यकर्ता भी जुटेंगे। PK ने साफ कहा है कि जिस संगठन को सिर्फ 3.5% वोट मिले हों, उसे अपने प्रयास, तरीकों और संदेश को लेकर गंभीर समीक्षा करनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी हार के बाद खुद से सवाल पूछना और आत्मचिंतन करना ज़रूरी है।

PK ने माना है कि जनसुराज आंदोलन का लक्ष्य था व्यवस्था परिवर्तन और सत्ता परिवर्तन। लेकिन दोनों में से कोई नहीं हो सका। उन्होंने कहा, बिहार की राजनीति में कुछ भूमिका बनी, लेकिन जनता तक बात पहुंचाने में चूक रह गई और संभव है कि विचार या तरीके में उनसे कोई गलती हुई हो। PK ने चुनाव जीतने वाले सभी नेताओं को बधाई दी और कहा कि अब नीतीश कुमार और भाजपा की जिम्मेदारी है कि वे रोजगार, भ्रष्टाचार और पलायन जैसे मुद्दों पर काम करें।


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