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जमालपुर और अररिया… क्यों चुनीं पूर्व IPS शिवदीप लांडे ने ये दो सीटें? बिहार के ‘सिंघम’ की चुनावी एंट्री से बढ़ी हलचल

बिहार के सिंघम के नाम से चर्चित पूर्व IPS शिवदीप लांडे भी विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। वो अररिया और जमालपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। लेकिन सवाल है कि लांडे ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के लिए यही दो सीटें क्यों चुनी। तो आइए हम आपको बताते हैं कि शिवदीप लांडे का इन इलाकों से जुड़ाव कैसे हुआ...

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पटना

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Anand Shekhar

Oct 09, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजनीति में एक नया, लेकिन बेहद चर्चित नाम गूंजने लगा है पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे। वो नाम, जो कभी अपराधियों के लिए डर और जनता के लिए भरोसे का दूसरा नाम था, अब चुनावी मैदान में उतर चुका है।पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने बुधवार शाम सोशल मीडिया पर घोषणा की कि वह दो विधानसभा सीटों मुंगेर जिले के जमालपुर और सीमांचल के अररिया से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे।

मुंगेर की धरती से शुरू हुआ था ‘सिंघम’ का सफर

अगर बिहार के पुलिस इतिहास में सबसे ज़्यादा भावनात्मक जुड़ाव के साथ लिए जाने वाले नामों में से एक है शिवदीप लांडे। मूल रूप से महाराष्ट्र के अकोला जिले के रहने वाले लांडे 2006 बैच में बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। उनकी पहली पोस्टिंग मुंगेर जिले में हुई थी, और यहीं से बिहार के सिंघम के रूप में जाने जाने वाले इस अधिकारी की कहानी शुरू हुई।

लांडे को उनके प्रोबेशन पीरियड में ही धरहरा-खड़गपुर थाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। उस समय बिहार में नक्सलवाद अपने चरम पर था। लेकिन लांडे ने नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर न सिर्फ़ ऑपरेशन चलाए, बल्कि ग्रामीणों के साथ एक ऐसा रिश्ता भी बनाया जो आज भी कायम है।

ग्रामीणों के लिए शिवदीप लांडे सिर्फ पुलिस वाले नहीं थे, वो भरोसे का दूसरा नाम थे। चाहे बेटी की शादी में मदद करनी हो या स्कूली बच्चों को किताबें देना हो, लांडे भैया हमेशा उनके साथ खड़े रहते थे। लांडे ने जमालपुर के नक्सल प्रभावित पहाड़ी इलाकों में शांति स्थापित की। लोग कहते हैं कि उस दौर में अपराधी और नक्सली, दोनों ही लांडे सर के नाम से खौफ खाते थे।

जमालपुर से शिवदीप लांडे का लगाव

लांडे का जमालपुर से लगाव सिर्फ एक पोस्टिंग की कहानी नहीं है। वो जगह उनके दिल में एक इमोशनल अटैचमेंट बन चुकी है। पुलिस सेवा से रिटायरमेंट के बाद भी वह अक्सर जमालपुर के लोगों से मिलने जाते रहे। लांडे ने इस इलाके की गरीब लड़कियों की शादी का खर्च तक उठाया, स्कूल-कॉलेज के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप फंड बनाया और कई स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन भी किया। इस वजह से जमालपुर में उन्हें आज भी जनता का बेटा कहा जाता है।

लांडे खुद भी सोशल मीडिया पर कई बार जमालपुर का ज़िक्र करते हुए कहते रहे हैं, 'जमालपुर मेरे लिए सिर्फ पोस्टिंग नहीं, एक भावनात्मक रिश्ता है। वह जगह मेरी सेवा की शुरुआत और मेरे जीवन की सीख दोनों का प्रतीक है।'

अररिया की मिट्टी से उपजा भरोसा

जमालपुर के बाद, लांडे अररिया ज़िले में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हुए। वहीं से, एक जनता के पुलिस अधिकारी के रूप में उनकी ख्याति पूरे बिहार में फैल गई। अररिया के लोग आज भी याद करते हैं कि कैसे लांडे ने एक बार बिना किसी दबाव के एक अंतरराष्ट्रीय तस्कर के खिलाफ कार्रवाई की थी। कहा जाता है कि जब कोलकाता के एक प्रमुख व्यवसायी के खिलाफ हाथी दांत की तस्करी के सिलसिले में मामला दर्ज हुआ, तो प्रभावशाली लोगों ने लांडे पर दबाव बनाने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने न तो झुकना सीखा और न ही डरना।

उन्होंने कहा, 'कानून से ऊपर कोई नहीं है।' अररिया में रहते हुए, लांडे ने नशीली दवाओं, हथियारों और पशु तस्करी पर नकेल कसी, जिससे सीमांचल में अपराध दर ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर आ गई। लोग उन्हें जनता का एसपी कहते थे, और जब उनका तबादला हुआ, तो हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए।

महिलाओं के लिए बन गए सिंघम भैया

लांडे न केवल अपराधियों के दुश्मन थे, बल्कि महिलाओं और छात्राओं के रक्षक भी थे। वे कॉलेजों और स्कूलों में जाते थे, लड़कियों को अपना मोबाइल नंबर देते थे और उनसे आग्रह करते थे कि अगर कोई उनके साथ छेड़छाड़ करे तो तुरंत फ़ोन करें। वे अक्सर घटनास्थल पर पहुँचकर अपराधियों को रंगे हाथों पकड़ लेते थे। इसी वजह से उन्हें महिलाओं के भाई की छवि मिली।

राजनीति में क्यों उतरे लांडे?

लांडे ने जब वीआरएस लिया, तब उन्होंने कहा था, 'मैंने सिर्फ वर्दी उतारी है, सेवा नहीं। अब मैं जनता के बीच आकर उनके दर्द को सीधे सुनना चाहता हूं।' उनका कहना है कि सिस्टम को सिर्फ बाहर से कोसा नहीं जा सकता, उसे अंदर जाकर सुधारा जा सकता है। इसलिए उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। 2025 में उन्होंने हिंद सेना नामक एक संगठन की नींव रखी जो राष्ट्रवाद, सामाजिक समानता और ईमानदारी के मूल्यों पर आधारित है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में वे किसी पार्टी के टिकट से नहीं, बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ेंगे।

क्यों चुनीं जमालपुर और अररिया?

इस सवाल का जवाब खुद लांडे ने देते हुए कहा, “जमालपुर मेरी सेवा का पहला अध्याय है, और अररिया मेरी जनता के विश्वास का दूसरा। मैं वहां से लड़ना चाहता हूं, जहां लोग मुझे जानते हैं, मुझ पर भरोसा करते हैं।” उन्होंने कहा कि दोनों सीटें उनके दिल के बेहद करीब हैं, जमालपुर उनके संघर्ष की शुरुआत की प्रतीक है, और अररिया उनके सेवा के स्वर्णकाल की।


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