
जवारा स्नान से संतान प्राप्ति का विश्वास (फोटो सोर्स- पत्रिका)
Navratri Special: बेमेतरा जिले के नवागढ़ तहसील के ग्राम बूचीपुर में हाफ नदी के तट पर स्थित महमाया मंदिर पूरे अंचल और प्रदेश का प्रमुख आस्था केन्द्र है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है बल्कि इसके साथ जुड़ी जनश्रुतियाँ और मान्यताएँ इसे और भी दिव्यता प्रदान करती हैं।
सन् 1994 से इस मंदिर में अखंड ज्योत प्रज्ज्वलित हो रही है, जो निरंतर आस्था और विश्वास का प्रतीक बनी हुई है। भक्त मानते हैं कि मां महमाया के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस बार भक्तों ने 1354 तेल मनोकामना ज्योति और 108 घृत ज्योति समेत कुल 1462 मनोकामना ज्योतियां प्रज्ज्वलित की हैं।
मंदिर स्थापना के पीछे एक रोचक प्रसंग जुड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि मालगुजार ओंकारपुरी गोस्वामी के मुक्तियार ठाकुरराम वर्मा को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर निर्माण का निर्देश दिया। मुक्तियार ने यह बात मालगुजार को बताई, जिसके बाद नवागढ़ तालाब से प्राप्त प्रतिमा को लाकर प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई। इस प्रकार 18वीं सदी में यह मंदिर अस्तित्व में आया, जो आज भव्य स्वरूप में खड़ा है और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
इस मंदिर से जुड़ी सबसे प्रमुख जनश्रुति संतानहीन दंपतियों से संबंधित है। मान्यता है कि नवरात्रि में जवारा विसर्जन के दिन माता के जवारा को गुंडी या हांडी में जल भरकर स्नान कराने से संतान की प्राप्ति होती है। अनेक दंपतियों ने इस परंपरा को निभाकर अपने जीवन में संतान सुख प्राप्त करने का दावा किया है।
श्री सिद्ध शक्ति पीठ मां महामाया देंवी मंदिर में तीन प्रकार की ज्योति प्रधान ज्योति, अखण्ड ज्योति तथा नवरात्रि में भक्तों द्वारा जलाई गई ज्योति प्रज्ज्वलित होती है। 1994 से अखण्ड ज्योति स्थायी रूप से प्रज्वलित है। माताजी के मंदिर के नीचे तलघर हैं, जिसमें महाकाली की मूर्ति विद्यमान है। मंदिर के ऊपर प्रथम माले पर अष्टभुजी देवी की प्रतिमा है तथा द्वितीय माले पर त्रिपुर सुंदरी देवी की प्रतिमा है। दोनों ही स्वत: प्राण-प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के समीप ही शनिदेव तथा शिव मंदिर स्थापित है तथा साथ में नौ ग्रह भी विराजमान हैं। प्रति वर्ष की तरह इस वर्स भी मेला का आयोजन किया जा रहा है। नवरात्रि में तिथि के अनुसार तथा अन्य दिनों में परंपरानुसार माता को भोग चढ़ाया जा रहा है।
मंदिर की ख्याति बेमेतरा जिले की सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई है। भाटापारा, मुंगेली, कवर्धा, रायपुर और बिलासपुर जैसे जिलों से बड़ी संख्या में भक्त यहां माता के दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। नवरात्रि के दिनों में तो यह आस्था का महासागर बन जाता है।
मंदिर में धार्मिक गतिविधियों को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए 1980 में समिति का गठन हुआ। अगले ही वर्ष 1981 में यहां 18 ज्योतियां प्रज्ज्वलित की गईं, जिसने मंदिर के धार्मिक महत्व को नई दिशा दी।
Published on:
30 Sept 2025 01:40 pm
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