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क्या बिहार के मतदाताओं ने दिया नीतीश को फेयरवेल गिफ्ट? क्या है ‘जोड़ी मोदी-नीतीश के हिट हो गइल’ के पीछे की वजहें

बिहार विधानसभा चुनाव में NDA को बंपर जीत मिली, लेकिन इसके बाद इस चुनाव को नीतीश का फेयरवेल चुनाव कहा जाने लगा। क्या है इसके पीछे की हकीकत, पढ़ें पूरी खबर...

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CM nitish

सीएम नीतीश कुमार (फोटो-जदयू सोशल मीडिया)

2005 से अब तक बिहार की सियासत नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के ईर्द गिर्द घूम रही है। 2025 के चुनावी नतीजे भी यही साबित करते हैं कि बिहार में नीतीश का पर्याय कोई नहीं है। NDA को 202 सीटों पर जीत मिली। यह साल 2010 के बाद नीतीश के नेतृत्व में मिली दूसरी सबसे बड़ी सफलता है, लेकिन क्या यह नीतीश का आखिरी चुनाव है? क्या नीतीश को बिहार की जनता ने फेयरवेल दिया है? सोशल मीडिया पर इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। इन कयासों के पीछे नीतीश की उम्र और सेहत भी एक बड़ी वजह है। दरअसल, नीतीश की उम्र 73 हो गई है। अगला विधानसभा चुनाव 2030 में होना है। तब उनकी उम्र 78 हो जाएगी। वह लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी जूझ रहे हैं।

क्या कहना है एक्सपर्ट्स का

सीनियर पत्रकार प्रवीण बागी ने कहा कि राजनीति में कोई रिटायर नहीं होता। लेकिन, उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा है कि नीतीश कुमार बीच में ही सत्ता अपने किसी मनपसंद व्यक्ति को सौंपकर रिटायर हो सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह सही मौका भी होगा। क्योंकि इस दफा नीतीश कुमार और एनडीए को जो बंपर बहुमत मिला है, ऐसा कभी कभी हुआ करता है। इसलिए वो बीच में ही सीएम की कुर्सी छोड़ सकते हैं। लेकिन, यह कहना कि यह उनका फेयरवेल चुनाव है उचित नहीं है। क्योंकि इस प्रकार की घोषणा तो न ती सीएम नीतीश कुमार की ओर से की गई है और न ही उनके दल की ओर से की गई है।

सीनियर पत्रकार अरूण कुमार पांडेय का कहना है कि फेयरवेल चुनाव कहना गलत होगा। उम्र और स्वास्थ्य की वजह से वो अपनी कुर्सी किसी और को दे दें, यह अगल बात है।

तब कुछ और कह रहे थे बीजेपी नेता

साल 2025 की शुरुआत में भाजपा के नेता कह रहे थे कि हम नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे, लेकिन सीएम फेस NDA के विधायक तय करेंगे। जून महीने में अमित शाह ने भी यह बात कही, लेकिन नवंबर महीने के शुरुआती कुछ दिनों में पहले फेज के चुनाव से पहले NDA के सभी नेता अमित शाह, राजनाथ सिंह, दिलीप जायसवाल, जीतन राम मांझी कहने लगे कि नीतीश ही सीएम थे, हैं और रहेंगे।

दरभंगा की रैली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि दिल्ली में पीएम पद और पटना में सीएम पद खाली नहीं है। केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक रैली में कहा कि नीतीश सीएम थे, हैं और रहेंगे। महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी के सीएम फेस होने का ऐलान होने के बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भरी सभा में कहा था- 25 से 30 फिर से नीतीश मोदी।

जीत के बाद क्या बोले जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान संजय झा ने कहा कि 2020 के चुनाव में हम 43 सीटों पर सिमट गए थे। इसके बाद से हमने जमीन पर अपना फोकस बढ़ाया और नतीजा सकारात्मक रहा। हम पिछली बार के मुकाबले दोगुनी सीट (85) जीतने में कामयाब रहे। पार्टी की जबरदस्त जीत के बाद उन्होंने कहा कि बिहार अब उड़ान भरने के दौरा में है। अब राज्य के लोग पूछ रहे हैं कि हम औद्योगिकरण में पिछड़ क्यों रहे हैं। उन्होंने कहा कि डबल इंजन की सरकार होने के कारण हम इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए बेहतर स्थिति में हैं।

कांग्रेस का वोट चोरी मुद्दा हवा हवाई

जमीन पर मौजूद पत्रकार और एक्सपर्ट्स ने कहा कि कांग्रेस का वोट चोरी का मुद्दा हवा-हवाई साबित हुआ। इसके साथ ही, उन्होंने राजद के नैरेटिव को भी ध्वस्त कर दिया। जमीन पर एक भी व्यक्ति कांग्रेस के हित में बात करते न तो दिखाई दिया न ही वोट चोरी का मुद्दा सुनाई पड़ा।

जंगलराज की यादें ताजा

एक्सपर्ट्स ने कहा कि जंगलराज की यादें अब भी जहन में ताजी है। राजद ने बेहद एग्रेसिव तरीके से चुनावी कैंपन किया। उनके जोशीले कार्यकर्ताओं की कई गैरजरूरी हरकतों ने EBC और दलितों को डरा दिया। सवर्ण पहले से ही उनके खिलाफ हैं। ऐसे में EBC ने नीतीश का साथ नहीं छोड़ा।

इसके साथ ही, महिलाओं को नीतीश ने सबसे पहले 2005 में सरकार में आने बाद साधने की कोशिश की थी। उन्होंने 2005 में सरकार आने के बाद जिन स्कूली छात्राओं को साइकिल दी थी। आज वह व्यस्क वोटर हैं। जीविका दीदी समूह भी नीतीश की अदृश्य शक्ति हैं, जिन्हें 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद ने महिलाओं को नीतीश के लिए लामबंद किया।

बीजेपी की अपनी सीमाएं

नीतीश के बरकख्श बीजेपी में उनके कद का कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी ने काफी बार कोशिशें की, लेकिन वह चेहरे कभी पूरे बिहार के नेता के तौर पर स्वीकार्य नहीं किए गए। 2005 में भी बीजेपी के दिग्गज नेता कैलाशपति मिश्रा कभी नहीं चाहते थे कि नीतीश को चेहरा के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। उस समय भाजपा के पास सुशील मोदी जैसा चेहरा था, लेकिन उन्होंने नीतीश का डिप्टी बनना मंजूर कर लिया। उसके बाद से बीजेपी ने कई असफल प्रयोग किए।

स्वास्थ्य चिंताओं को चुनौती दी

इस साल नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर सबसे अधिक चर्चा रही। राहुल गांधी ने भी नीतीश के स्वास्थ्य का मजाक उड़ाते हुए कहा कि वह “अमित शाह के हाथों की कठपुतली” हैं। विपक्ष के आरोपों के बावजूद नीतीश डटे रहे। नीतीश ने 74 साल की उम्र में 84 रैलियां कीं, तेजस्वी से सिर्फ एक कम। बारिश के समय उन्होंने सड़क मार्ग के जरिए यात्रा की। जो सुर्खियों में रही।

जदयू में उत्तराधिकार का सवाल?

नई सरकार बनाने की तैयारी के साथ ही उत्तराधिकार का मुद्दा उठना तय है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि नीतीश समय आने पर इस पर फैसला करेंगे। नीतीश ने अभी तक किसी को भी उत्तराधिकारी बनाने का संकेत नहीं दिया है, लेकिन पार्टी के भीतर एक तबका ऐसा भी है जो नीतीश के बेटे निशांत को सक्रिय राजनीति में लाने के लिए पूरी जोर शोर से जुटा है।

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