
राजनीतिक इतिहासकार प्रो. शम्सुल इस्लाम
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) द्वारा लिखित भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को 150 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर बीजेपी ने यह आरोप लगाया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के आदेश पर राष्ट्रगीत वंदे मातरम् (Vande Matram Song) से दुर्गा स्तुति के छंदों को हटा दिया गया था। बीजेपी का यह कहना है कि कांग्रेस ने वंदे मातरम् को विकृत किया है।
यह विवाद थमा भी नहीं था कि बीजेपी सांसद ने राष्ट्रगान को लेकर यह बयान दे दिया कि रवींद्रनाथ (Rabindranath Thakur) ने अंग्रेजों के स्वागत में जन, गण, मन गीत (Jana Gana Mana Songs) लिखा था। आइए जानते हैं क्या है सच।
इस विवाद पर जानेमाने राजनीतिक इतिहास विश्लेषक और प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम (Shamsul Islam) ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि यह भ्रम फैलाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रगान जॉर्ज पंचम के स्वागत में लिखा गया था तो इसे आरएसएस और बीजेपी के लोग इतने वर्षों तक क्यों गाते रहे?
शम्सुल इस्लाम ने बताया कि इसके उलट वंदे मातरम् गीत के लेखक बंकिमचंद्र ने तो 33 साल ब्रिट्रिश सरकार के समय नौकरी की। उन्हें अंग्रेजों ने सीआईई (Companion of the Order of the Indian Empire) की पदवी दी। यह शाही उपाधि उन्हें एक सरकारी अधिकारी के रूप में उनकी सेवाओं के सम्मान में प्रदान की गई थी, जहां से वे तीन दशकों से अधिक सेवा के बाद 1891 में डिप्टी मजिस्ट्रेट और डिप्टी कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें राय बहादुर की उपाधि भी प्रदान की गई थी।
बीजेपी के आरोपों के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि 1905 में बंगाल विभाजन से लेकर हमारे वीर क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति देने तक वंदे मातरम् के नारे खूब जोरशोर से लगाए।
यह विवाद थमा भी नहीं था कि भाजपा सांसद और कर्नाटक राज्य विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित भारतीय राष्ट्रगान 'जन गण मन' औपनिवेशिक शासन के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के लिए एक स्वागत गीत था। उन्होंने वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की थी।
कागेरी ने कहा, "मैं इतिहास को दोबारा खंगालने की कोशिश नहीं करूंगा। अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो वंदे मातरम् हमारा राष्ट्रगान होना चाहिए था लेकिन हमारे पूर्वजों ने यह तय किया कि वंदे मातरम को जन गण मन (जो ब्रिटिश अधिकारियों का स्वागत गीत है) के साथ ही रखा जा सकता है और हमने इसे स्वीकार कर लिया है।"
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के मंत्री प्रियांक खरगे ने इन टिप्पणियों को 'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' की उपज बताकर खारिज कर दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर कागेरी की टिप्पणी के बाद चल रही बहस को "सरासर बकवास" करार दिया और कहा, "एक और दिन, आरएसएस का एक और 'व्हाट्सएप इतिहास' पाठ।"
प्रियांक ने बताया, "रवींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में "भारतो भाग्यो बिधाता" भजन लिखा था और इसी का पहला छंद "जन गण मन" बना। इसे पहली बार 28 दिसंबर 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में गाया गया था, किसी शाही श्रद्धांजलि के रूप में नहीं। टैगोर ने 1937 और 1939 में यह भी स्पष्ट किया था कि उनका गीत "भारत के भाग्य विधाता" की स्तुति करता है और "यह जॉर्ज पंचम, जॉर्ज षष्ठम या किसी अन्य जॉर्ज कभी नहीं हो सकता।"
प्रियांक ने यह भी कहा, "सांसद कागेरी कहते हैं कि वह इतिहास में नहीं जाना चाहते। लेकिन मैं भाजपा और आरएसएस के हर नेता, कार्यकर्ता और स्वयंसेवक से आग्रह करता हूं कि वे आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र के संपादकीय पढ़कर इतिहास की समीक्षा करें और जानें कि आरएसएस की संविधान, तिरंगे और राष्ट्रगान का अपमान करने की एक बड़ी परंपरा रही है।"
राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल और वरिष्ठ भाजपा नेता कल्याण सिंह ने 2015 में यह कहा था कि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की रचना "जन गण मन" में दरअसल ब्रिटिश शासकों की प्रशंसा की गई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि "अधिनायक जय हे", जिसका शाब्दिक अर्थ "नेता की जय हो" होता है, को हटाकर "मंगलदायक" शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है "कल्याणकारी"। इस बयान को लेकर उस समय काफी विवाद खड़ा हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने भी 2015 में यह लिखा था कि जन गण मन, जो 1950 में भारत का राष्ट्रगान बना, दरअसल जॉर्ज पंचम की "चापलूसी के तौर पर रचा और गाया गया" था।
रवींद्रनाथ ठाकुर ने यह गीत 11 दिसंबर 1911 को लिखा था। अगले ही दिन दिल्ली दरबार का आयोजन हुआ था। इस सभा में जॉर्ज पंचम को भारत का सम्राट घोषित किए जाने पर जनसभा आयोजित की गई थी। रवींद्रनाथ द्वारा लिखे गए राष्ट्रगीत को पहली बार 28 दिसंबर 1911 को कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन में गाया गया था।
प्रसिद्ध इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य कहते हैं कि यह मिथक है कि राष्ट्रगीत की रचना जॉर्ज पंचम के स्वागत में की गई थी। उन्होंने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया है कि इसे फरवरी 1912 में रवींद्रनाथ के लिखे इस गीत को हिंदू धर्म के एक सुधारवादी और पुनर्जागरण आंदोलन, आदि ब्रह्म समाज के स्थापना दिवस समारोह में भी गाया गया था और उनके भजन संग्रह में शामिल किया गया था।
उन्होंने यह भी बताया कि नवंबर 1937 में रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने संपादक पुलिन बिहारी सेन को एक पत्र में लिखकर स्पष्ट किया था कि यह किसी पंचम के स्वागत में नहीं लिखा गया है। यह भारत भाग्य विधाता के लिए लिखा और गाया गया था।
Published on:
14 Nov 2025 06:00 am
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