
तिफरा काली मंदिर (फोटो सोर्स- पत्रिका)
Navratri special: तिफरा स्थित मां काली मंदिर आज केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रतीक बन चुका है। हजारों-लाखों श्रद्धालुओं की भावनाएं यहां हर दिन साकार होती हैं।
इस मंदिर की नींव लगभग वर्ष 1975 में रखी गई, जब यहां नियमित पूजा-पाठ का प्रारंभ हुआ। उस समय किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि आने वाले समय में यह स्थान इतना विशाल और ख्यातिप्राप्त तीर्थस्थल बन जाएगा। सन् 1990 से बाबा भवानीदास उदासीन महाराज की अगुवाई में मंदिर का निरंतर विस्तार और भव्य निर्माण कार्य होता रहा है। महाराज ने न केवल इस पीठ की आध्यात्मिक महत्ता बढ़ाई, बल्कि इसे जन-जन की आस्था का केंद्र भी बना दिया।
प्रारंभिक काल से ही तिफरा काली मंदिर एक तांत्रिक पीठ के रूप में प्रसिद्ध रहा है। मान्यता है कि यहां की गई साधना और आराधना से विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देशभर से साधक यहां तंत्र साधना करने आते हैं और मां काली की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को दिशा देते हैं।
मंदिर परिसर में तीन विशेष यज्ञकुंड बनाए गए हैं। यहां पर अमावस्या की रात्रियों में यज्ञ और साधनाएं की जाती हैं। इन यज्ञों के समय वातावरण मंत्रोच्चार और अग्निहोत्र की दिव्यता से गूंज उठता है। श्रद्धालु मानते हैं कि इन अनुष्ठानों से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और साधक को आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
मंदिर के गर्भगृह में मां काली की विशाल और भव्य प्रतिमा विराजमान है। भक्तों का मानना है कि यहां मां काली के दर्शन से शक्तिशाली ऊर्जा और आंतरिक शांति प्राप्त होती है। गर्भगृह के चारों ओर विभिन्न देवी-देवताओं के कक्ष भी बनाए गए हैं। इनमें भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान राम-सीता-लक्ष्मण, भगवान कृष्ण, भगवान हनुमान, देवी दुर्गा और अन्य स्वरूपों की स्थापना की गई है।
बाबा भवानीदास महाराज द्वारा 1990 में केदारनाथ और बद्रीनाथ से लाई गई अखंड ज्योत आज भी निरंतर जल रही है। मंदिर सेवकों के अनुसार, शुरुआती दौर में नवरात्र के दौरान एक अद्भुत घटना घटी थी। भारी वर्षा के बावजूद मंदिर परिसर में ज्योति कलश निरंतर जलता रहा और आश्चर्यजनक रूप से मंदिर की परिधि में जमीन सूखी रही। इस घटना के बाद भक्तों का विश्वास और भी गहरा हो गया। मानो वहां पर बारिश हुई ही न हो। इस घटना के बाद से भक्तों का विश्वास और भी गहरा हो गया और मंदिर एक शक्तिशाली तांत्रिक पीठ के रूप में विख्यात हो गया।
धार्मिक महत्व से इतर तिफरा काली मंदिर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी केंद्र है। कीर्तन, भजन संध्या और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से समाज में भाईचारे और सौहार्द्र का संदेश दिया जाता है। मंदिर के द्वार हर समुदाय के लोगों के लिए खुले हैं। यही कारण है कि यह स्थल केवल एक धार्मिक केंद्र ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सद्भाव और सामाजिक एकता का प्रतीक बन गया है। नवरात्रि, दीवाली और अमावस्या की रात्रियों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
मंदिर में स्थापित मां काली की आकर्षक प्रतिमा हर भक्त को अपनी ओर खींच लेती है। प्रतिमा का दिव्य रूप श्रद्धालुओं के हृदय में भक्ति और ऊर्जा का संचार करता है। भक्त मानते हैं कि उनकी मनोकामनाएं यहां पूरी होती हैं, यही कारण है कि विशेष अवसरों पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है।
नवरात्रि और काली पूजन के अवसर पर मंदिर प्रांगण में मेले जैसा वातावरण रहता है। दूर-दराज़ से लोग यहां पहुंचते हैं और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। जाति, वर्ग और समुदाय से परे लोग यहां केवल भक्ति और विश्वास की डोर से बंधे नजर आते हैं।
Published on:
25 Sept 2025 01:04 pm
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